Inflation: मुद्रास्फीति से जूझती अर्थव्यवस्थाएं।
Inflation: मुद्रास्फीति से जूझती अर्थव्यवस्थाएं। Social Media
अर्थव्यवस्था

Inflation: मूल्य स्तर में वैश्विक वृद्धि अतीत के विपरीत, 2022 भारत के लिए चुनौतीपूर्ण

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स

  • मुद्रास्फीति से जूझती अर्थव्यवस्थाएं

  • तीन प्रमुख केंद्रीय बैंक जूझ रहे संकट से

  • केंद्रीय बैंक BoE ने बढ़ाई नीतिगत ब्याज दर

राज एक्सप्रेस। एक वैश्विक घटना के रूप में मुद्रास्फीति (Inflation) ने पिछली बार 1970 के दशक में सुर्खियां बटोरी थीं। हाल ही में मिले संकेतों से दृष्टिगोचर है कि; हमें जल्द ही फिर से दौड़ना पड़ सकता है लेकिन इस दफा एक अंतर के साथ। इसके अंतर्निहित कारण अलग हैं और केंद्रीय बैंकरों के बीच विचारधारा प्रचलित है कि हम अतल समुद्र में अनजान स्थिति में हैं।

दुनिया के तीन प्रमुख केंद्रीय बैंक - इस विषय पर विस्तार से जानने एक यह तरीका आसान होगा कि यह देखा जाए कि दुनिया के तीन केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve), बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England/BoE) और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई/RBI) हाल ही में क्या कर रहे हैं।

इनमें से किसी भी अर्थव्यवस्था ने महामारी से पूर्ण आर्थिक सुधार की दहलीज को पार नहीं किया है, लेकिन उनके केंद्रीय बैंकों ने या तो खुले तौर पर या सूक्ष्म रूप से स्थिति में बदलाव किया है।

BoE फर्स्ट - BoE पिछले हफ्ते मुद्रास्फीति से निपटने के लिए अपनी नीतिगत ब्याज दर बढ़ाने वाला पहला प्रमुख केंद्रीय बैंक बन गया। कुल 2% के मुद्रास्फीति लक्ष्य को देखते हुए, BoE को यूके की CPI मुद्रास्फीति में केवल दो महीनों में दो प्रतिशत की वृद्धि का सामना करना पड़ा, जो नवंबर में 5.1% थी।

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भारत में WPI - उसी महीने, अमेरिकी मुद्रास्फीति की रीडिंग 6.8% थी, जो 39 साल का उच्च स्तर रहा। हाल ही में फेड (Fed) के अध्यक्ष ने संकेत दिया कि वे उच्च मुद्रास्फीति को "क्षणिक" स्थिति के रूप में वर्गीकृत करना बंद कर देंगे। भारत में, नवंबर में होलसेल प्राइज इंडेक्स (Wholesale price index/WPI) 14.23% था, जो 12 साल का उच्च स्तर रहा।

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इसके प्रमुख कारण - इस बार अंतर्निहित कारण मांग और आपूर्ति (demand and supply) दोनों पक्षों का दबाव है। महामारी में विकसित अर्थव्यवस्थाओं को बड़े पैमाने पर राजकोषीय समर्थन को अनियंत्रित करते देखा गया।

हालांकि, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाओं का सामान्यीकरण शुरू हुआ, न केवल आपूर्ति में व्यवधान ने विनिर्मित उत्पादों के मूल्य स्तर को बढ़ा दिया बल्कि, डिजिटल संरचना में संक्रमण की संकुचित गति ने अर्धचालक (semiconductors) जैसे उत्पादों में स्थिति को और पेचिदा कर दिया।

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भारतीय आपूर्ति श्रृंखला - भारत वैश्विक विकास से खुद को अलग नहीं कर सकता क्योंकि भारत की आपूर्ति श्रृंखला इनपुट के लिए आयात पर निर्भर है। सीधे शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि वर्ष 2022 में आरबीआई का काम और मुश्किल हो जाएगा क्योंकि हमने कोविड से प्रेरित झटके से स्थायी वसूली दर्ज नहीं की है। यह राजकोषीय क्षेत्र में फैल जाएगा क्योंकि मुद्रास्फीति में तेजी से राष्ट्रीय आय वितरण के परिणाम होंगे।

RBI के प्रयास - आरबीआई (RBI) ने पिछले दो वर्षों में बाजार की ब्याज दरों को निम्न स्तर पर धकेलने के लिए ब्याज दर समायोजन और तरलता (adjustments and liquidity) उपकरण दोनों के संयोजन का उपयोग किया है।

इसने (RBI) पहले ही अपने चलनिधि (liquidity) उपायों को समायोजित करके इस स्थिति से एक कदम पीछे हटने का संकेत दिया है।

आर्थिक विश्लेषकों की राय है कि; आगे चलकर चुनौती विशेष रूप से यूएस फेड द्वारा लाए गए परिवर्तनों के प्रभाव पर निर्भर होगी। कुछ प्रभाव विदेशी मुद्रा (foreign exchange) और ऋण बाजारों (debt markets) के माध्यम से प्रेषित किए जाएंगे।

यह ऐसे समय में आरबीआई की नीतिगत दर में बदलाव को उत्प्रेरित कर सकता है जो लोकप्रिय बाजार अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है। साल 2022 भारत के आर्थिक नीति निर्माताओं के लिए एक चुनौती साबित होने वाला है।

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डिस्क्लेमर आर्टिकल मीडिया रिपोर्ट्स और आंकड़ों पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित जानकारी जोड़ी गई हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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