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वेदांता के साथ सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने से पीछे हटा फॉक्सकॉन, देश में उत्पादन के प्रयास को लगा झटका

Aniruddh pratap singh

राज एक्सप्रेस । भारत में सेमीकंडक्टर बनाने की योजना को तगड़ा झटका लगा है। खबर है कि ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन ने वेदांता के साथ शुरू होने वाले संयुक्त उद्यम से बाहर होने की घोषणा की है। ताइवान की कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम भारत में सेमीकंडक्टर्स के उत्पादन के लिए किया गया था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ताइवानी कंपनी ने कहा कि उसके लिए वेदांता के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में काम करना फिलहाल संभव नहीं है। कंपनी ने कहा कि वह वर्तमान में वेदांता से संयुक्त उद्यम से फॉक्सकॉन नाम हटाने के लिए काम कर रही है।

मोबाइल से पेमेंट करते, गाड़ी चलाते या फिर फ्लाइट से यात्रा के समय हमें कभी इस आधे इंच की चीज सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप का ख़याल नहीं आता। हाल के दिनों में तेज़ी से डिजिटल होती हमारी दुनिया में हर तरफ सेमीकंडक्टर का दखल हो गया है-लैपटॉप से लेकर फिटनेस बैंड तक और महीन कंप्यूटिंग मशीन से लेकर मिसाइल तक हर जगह एक ही चीज केंद्रीय भूमिका निभा रही है- उसे ही सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप कहा जाता है।

मेक इन इंडिया प्रोग्राम में नहीं आएगी रुकावट

फॉक्सकॉन ने कहा अगर वेदांता ऑरिजनल नाम को बनाए रखती है तो इससे बेवजह हितधारकों के बीच एक गलत सूचना जाएगी और तमाम तरह की गलतफहमियां पैदा होंगी। फॉक्सकॉन कंपनी ने भारत के सेमीकंडक्टर विकास को लेकर भरोसा जताया है। फॉक्सकॉन ने कहा है कि वह भारत सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को अपना पूरा समर्थन देगी। वेदांता ने कहा कि वह अपने हितधारकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोकल भागीदारों के साथ काम करेगा। फॉक्सकॉन और वेदांता ने पिछले साल गुजरात में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले प्रोडक्शन प्लांट बनाने के लिए 19.5 बिलियन डॉलर का निवेश करने के लिए एक डील पर हस्ताक्षर किए थे।

बेकार नहीं जाएगी एक साल तक की गई मेहनत

कंपनी के अपने एक बयान में बताया है कि एक साल से अधिक समय तक फॉक्सकॉन और वेदांता ने सेमीकंडक्टर के लिए कड़ी मेहनत की है। इस दौरान हमने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। कंपनी ने कहा कि ये कोशिशें बेकार नहीं जाने वालीं। वेदांता भारत में सेमीकंडक्टर बनाने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है। हमें पूरी उम्मीद है कि वेदांता द्वारा शुरू की गई कोशिश, भारत में सेमीकंडक्टर उत्पादन की दिशा में अहम पड़ाव साबित होगा। निश्चित ही यह एक फलदायी अनुभव रहा है, जिसका दोनों कंपनियों को आगे बढ़ने में सहायता मिलेगी।

नए जमाने का आयल कहा जाता है सेमीकंडक्टर

सेमीकंडक्टर को 'न्यू ऑयल' कहा जाता है। भारत डिजिटलाइजेशन के हाई वे पर दौड़ रहा है, लेकिन इसके लिए ज़रूरी 'ऑयल' बाहर से मंगाया जाता है। सिलिकॉन से बनी इस बेहद छोटी चिप की अहमियत का अहसास तब होता है, जब दुनिया भर में गाड़ियों का प्रोडक्शन थम जाता है, मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट महंगे हो जाते हैं, डेटा सेंटर डगमगाने लगते हैं, घरेलू अप्लायंस के दाम आसमान छूने लगते हैं, नए एटीएम लगने बंद हो जाते हैं और अस्पतालों में टेस्टिंग मशीनों का आयात रुक जाता है।

कोविड के दिनों में इसके बिना ठहर गई थी जिंदगी

कोविड के पीक के दिनों में जब इन सेमीकंडक्टर्स या माइक्रोचिप्स की सप्लाई धीमी हो गई थी, तो दुनिया भर की दिग्गज कंपनियों के अरबों डॉलरों का नुकसान उठाना पड़ा था। उस समय चीन, अमेरिका और ताइवान जैसे माइक्रोचिप्स के सबसे बड़े निर्यातक देशों की कंपनियों को भी प्रोडक्शन रोकना पड़ा था, इसकी वजह से पूरी दुनिया में जिंदगी जैसे ठहर गई थी। उसी दौर में पीएम नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान के तहत भारत में सेमीकंडक्टर के उत्पादन का संकल्प लिया था। वेदांता और फॉक्सकॉन के बीच स्थापित संयुक्त उद्यम ने भी इसी अभियान के तहत आकार लिया था।

हर साल 24 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर आयात करता है भारत

भारत की सेमीकंडर से जुड़ी जरूरतें आयात के माध्यम से ही पूरी होती हैं। मौजूदा समय में भारत करीब 24 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर आयात करता है, जो 2025 तक बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे पहले भी सरकार ने सेमीकंडक्टर बनाने के लेकर कंपनियों को प्रस्ताव भेजे थे, लेकिन तब बहुत ही कम कंपनियों ने रुचि दिखाई थी। अब जब सेमीकंडक्टर की कमी से देश ही नहीं बल्कि दुनिया जूझ रही है, तो सेमी कंडक्टर को लेकर भारत को सरकार आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश एक बार फिर से कर रही है।

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