RBI गवर्नर का बयान
RBI गवर्नर का बयान Social Media
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मौद्रिक नीति को लेकर उठाए गए कदमों पर बात करते हुए RBI गवर्नर का महंगाई पर बयान

Kavita Singh Rathore

राज एक्सप्रेस। भारत के सभी बैंकों की कमान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अपने हाथ में रखना है और RBI का कामकाज RBI गवर्नर देखते हैं। वर्तमान समय में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास हैं। जो, समय समय पर वित्त या उससे जुड़ी जानकारी देते हैं। वहीँ, अब उन्होंने महंगाई से लड़ते रहने की बात करते हुए मौद्रिक नीति को लेकर उठाए गए कदम के असर को लेकर जानकारी दी है।

RBI गवर्नर का महंगाई पर बयान :

दरअसल, आज देश में महंगाई के बहुत बड़ा मुद्दा है। यदि इस पर बात कि जाए तो इसपर अच्छी खासी बहस छिड सकती है। क्योंकि, यह किसी जंग से कम नही हैं। जिसका सामना आज भारत का हर एक व्यक्ति कर रहा है। इसी महंगाई की जंग को लेकर RBI गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) ने लड़ते रहने कि बात कही। खबरों की मानें तो, RBI गवर्नर शक्तिकांत दास गुरुवार को मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक का हिस्सा बने उन्होंने इस दौरान जानकारी देते हुए कई बाते कहीं। यहीं उन्होंने कहा है कि,

'महंगाई के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। पिछले एक साल में मौद्रिक नीति को लेकर जो कदम उठाए गए हैं, उसका असर अब भी जारी है। उस पर करीब से नजर बनाए रखने की आवश्यकता है। भले ही रेपो दर (Repo Rate) में वृद्धि नहीं की गई है, लेकिन महंगाई के खिलाफ जारी युद्ध अभी जीता नहीं गया है।'
शक्तिकांत दास, RBI गवर्नर

RBI ने नहीं किया रेपो रेट में कोई बदलाव :

MPC की बैठक 3 से 6 अप्रैल तक चली थी। इस बैठक में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि, '2023-24 में महंगाई में नरमी का अनुमान है। लेकिन, इसके लक्ष्य के दायरे में आने की अवधि धीमी व लंबी हो सकती है। 2023-24 की चौथी तिमाही में महंगाई के कम होकर 5.2% आने का अनुमान है, जो अब भी लक्ष्य से ज्यादा है। इसलिए, मेरा मानना है कि रेपो दर को अपरिवर्तित रखने को लेकर सोच-विचारकर कदम उठाया गया है।' याद दिला दें, RBI ने इस महीने की शुरुआत में पेश मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान नीतिगत दर रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करते हुए इसे 6.5% पर स्थिर रखा था।

MPC के सदस्य का कहना :

MPC में सदस्य के तौर पर शामिल हुए जयंत आर वर्मा ने कहा कि, 'OPEC देशों का क्रूड के उत्पादन में कटौती का फैसला और मानसून चुनौती बना हुआ है। उत्पादन में कटौती से ज्यादा खतरनाक वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण मांग में कमी है।'

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