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आर्थिक विकास की दिशा में बढ़ा अहम कदम साबित हो सकती है राजकोषीय घाटे में कमी

Aniruddh pratap singh

हाईलाइट्स

  • भारत का राजकोषीय घाटा अप्रैल से अक्टूबर के सात माह की अवधि में 8.037 लाख करोड़ रुपये रहा है।

  • राजकोषीय घाटा वार्षिक अनुमान का 45% है, यह पिछले साल की इसी अवधि के 45.6% से मामूली रूप से कम है।

राज एक्सप्रेस। लेखा महानियंत्रक (सीजीए) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत का राजकोषीय घाटा अप्रैल से अक्टूबर के सात माह की अवधि में 8.037 लाख करोड़ रुपये रहा है। यह वार्षिक अनुमान का 45% है। महत्वपूर्ण बात यह है कि राजकोषीय घाटा पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के 45.6% से मामूली रूप से कम है। सरकार इस वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4% से घटाकर 5.9% तक लाना चाहती है। 2023-24 के लिए केंद्र सरकार ने राजकोषीय घाटा 17.86 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 5.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।

बढ़ता या घटता है। सरकार के खर्च और राजस्व के बीच के अंतर को मापने वाले राजकोषीय घाटे में कमी के लिए बेहतर कर वसूली और सब्सिडी भुगतान में कमी आने को जिम्मेदार माना जा सकता है। इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन और राजस्व प्रबंधन जैसे कई अन्य कारण भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। राजकोषीय घाटे में आई इस मामूली कमी को हमारी अर्थव्यवस्था के एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। यह बताता है कि सरकार अपनी वित्तीय प्रबंधन से जुड़ी प्रतिबद्धताओं को लेकर गंभीर है, वह अपना काम जिम्मेदारी से कर रही है और उधार पर निर्भरता को कम करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। हालांकि, राजकोषीय घाटा अब भी सरकार के लक्ष्य से अधिक है।

इस पर निगरानी रखने की जरूरत है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसमें और अधिक बढ़ोतरी न होने पाए। ऐसे समय में जबकि विकास देश की पहली प्राथमिकता बना हुआ है, राजकोषीय घाटे में कमी आना अर्थव्यवस्था को ताकत देने वाला महत्वपूर्ण बदलाव है। और यह हमारे उस अनुभव से एकदम उलट है कि सरकारें बेहिसाब खर्च करके अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाने का काम करती हैं। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा आइए इसे समझने का प्रयास करें। पहली बात तो यह कि अपनी उधार आवश्यकताओं को कम करके, सरकार निजी निवेश के लिए अधिक संसाधन मुक्त कर सकती है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगी।

कम राजकोषीय घाटा का एक मतलब यह भी है कि यह ब्याज दरों पर डाउनवर्ड दबाव डाल सकता है, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं को पैसे उधार लेने में सुगमता होगी। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही कम राजकोषीय घाटा भारत की साख में सुधार कर सकता है, जिससे सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम ब्याज दरों पर पैसा उधार लेना आसान हो सकता है। इससे सरकार के उधार लेने की कुल लागत में कमी आएगी। कुल मिलाकर देश के राजकोषीय घाटे में कमी आना एक सकारात्मक विकास है। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर कुछ चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबले के लिए केंद्र सरकार कदम उठा रही है।

सरकार द्वारा शुरू किए गए उपाय यदि जारी रहे, तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि अगले दिनों में इसके भारतीय अर्थव्यवस्था पर बेहद सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। वित्तवर्ष की शेष अवधि के लिए भारत के राजकोषीय घाटे को लेकर दृष्टिकोण फिलहाल अनिश्चित है। एक तरफ, अर्थव्यवस्था मजबूत होने कीू वजह से सरकार का कर संग्रह बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर विकासमान अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए खर्च बढ़ाने का दबाव है। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह राजकोषीय घाटे को प्रबंधित करने के लिए इन दोनों परस्पर विरोधी लक्ष्यों के बीच किस तरह संतुलन कायम करे।

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