Reserve Bank of India
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ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट फंड का गलत प्रयोग रोकने को रिजर्व बैंक ने जारी की नई गाइडलाइन

Aniruddh pratap singh

हाईलाइट्स

  • केंद्रीय बैंक आरबीआई ने कहा एआईएफ रूट का किया जा रहा है गलत इस्तेमाल।

  • एआईएफ रूट से नियमों का उल्लंघन करके फॉल्टरों को भी दिए जा रहे हैं लोन।

  • जिस कंपनी को कर्ज दिया उसकी एआईएफ योजना में नहीं किया जा सकेगा निवेश।

राज एक्सप्रेस। एआईएफ या ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट फंडों द्वारा नियमों के उल्लंघन की शिकायतों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों और नान बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (एनबीएफसी) पर शिकंजा कसने की पहल की है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एआईएफ रूट के गलत इस्तेमाल और डिफॉल्टरों को भी लोन देने पर रोक लगाने के मकसद से बैंकों और फाइनेंशियल कंपनियों के लिए नए दिशा निर्देश जारी किए हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक के नए दिशा-निर्देशों के अनुसार बैंक, नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां (एनबीएफसी) और नाबार्ड और सिड्बी जैसे अन्य वित्तीय संस्थान एआईएफ की ऐसी किसी योजना में निवेश नहीं कर सकेंगे, जिनका बैंक-एनबीएफसी की देनदार कंपनी में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निवेश है। इसका मतलब है कि अगर किसी बैंक या एनबीएफसी ने किसी कंपनी को पिछले 12 महीने के दौरान कर्ज दिया है, तो वह उस कंपनी की एआईएफ योजना में निवेश नहीं कर सकता।

उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसे समय यह दिशा निर्देश जारी किए हैं, जब बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने एआईएफ योजनाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां किए जाने की बात कही है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछले माह बताया था कि मार्केट रेगुलेटर ने उन एआईएफ को लेकर आंकड़े जारी किए थे, जिनका उद्देश्य वित्तीय क्षेत्र की संपत्तियों में एनपीए की पहचान छिपाना रहा है।

सेबी ने इस पर कहा कि हमने रिजर्व बैंक के साथ इस डेटा को शेयर किया है और रिजर्व बैंक हमारे आकलन से सहमत है। हमने अनेक मामलों में पाया है कि एआईएफ का इस्तेमाल फेमा नियमों के उल्लंघन में किया गया है। फेमा प्रावधानों के तहत किसी खास इकाई को सामान्य तरीके से निवेश की अनुमति नहीं होती है, लिहाजा वे एआईएफ का प्रयोग करते हैं।'

एआईएफ से जुडे़ अधिकारियों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले से तात्कालिक तौर पर निवेश में बड़े पैमाने पर गिरावट देखने को मिल सकती है। रिजर्व बैंक के अनुसार अगर केंद्रीय बैंक द्वारा संचालित इकाई 30 दिनों में अपना निवेश लिक्विटेड करने में सक्षम नहीं है, तो उसे ऐसे निवेश पर 100 फीसदी प्रोविजनिंग करनी पड़ेगी।

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