लैंगिक समानता के लिए TCS ने बदली वर्क पॉलिसी
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लैंगिक समानता के लिए TCS ने बदली वर्क पॉलिसी, अब क्या होगा?

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स :

  • टाटा समूह की कार्य नीति में ऐतिहासिक बदलाव

  • TCS ने बढ़ाए लैंगिक समानता की दिशा में अहम कदम

  • महिला-पुरुष और अन्य लिंगीय मानव श्रम हित में बदली वर्क पॉलिसी

राज एक्सप्रेस। भारत में रोजगार के कठिनतम दौर में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस-TCS) ने लैंगिक समानता की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। कंपनी ने अपने महिला-पुरुष के अलावा अन्य लिंग के मानवीय श्रम योगदान के प्रति भी सम्मान दर्शाने अपनी वर्क पॉलिसी बदली है।

इंश्योरेंस अधिकार-

TCS ने अब लेस्बियन, गे, बायोसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर्स कर्मचारी के साझेदार (पार्टनर) को भी इंश्योरेंस पॉलिसी के अधिकार में शामिल करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा कंपनी में अब काम करने वाले वर्कर की यदि इच्छा हुई तो लिंग परिवर्तन कराने के लिए उसे कंपनी से 2 लाख रुपये तक की मदद मिलेगी।

टाटा कंसल्टंसी सर्विसेज में ये कवायद जेंडर इक्विलिटी यानी लैंगिक समानता के मकसद से की जा रही है। कंपनी अब अपनी जीवन बीमा पॉलिसी में चेंज करते हुए एलजीबीटी (लेसबियन, गे, बाइसेक्सुअल ट्रांसजेंडर) कर्मचारियों की भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी कवर करेगी।

बदल दी स्पाउस की परिभाषा-

कंपनी ने इसके लिए कर्मचारियों के विवाहित संबंधों की पृष्ठभूमि से जुड़ी कैटेगरी “स्पाउस” के लिए हमसफर “पति-पत्नी” की जानकारी को लेकर भी परिभाषा में बदलाव किया है। टीसीएस की नई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में अब कर्मचारी के पति-पत्नी यानी स्पाउस को 'पार्टनर' के रूप में चेंज किया गया है।

लिंग परिवर्तन पर दो लाख-

कंपनी ने न केवल इन्श्योरेंस पॉलिसी बदली है बल्कि कामकाज की शर्तों में भी बदलाव किया है। इसके मुताबिक टीसीएस में कार्यरत कोई कर्मचारी यदि सर्जरी से लिंग परिवर्तन (जेंडर चेंज) कराना चाहता है, तो इस बदलाव के लिए मेडिकल प्रक्रिया में आने वाले कुल खर्च का आधा खर्च कंपनी उठाएगी, लेकिन यह राशि दो लाख रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। मतलब कंपनी ने इस मदद की सीमा अधिकतम दो लाख रुपया तय की है।

आपको बता दें, भारत में लैंगिक समानता की दिशा में इतना बड़ा फैसला लेने का साहस टाटा समूह की किसी कंपनी ने पहली दफा उठाया है। अनुमानित तौर पर टीसीएस में 4 लाख कर्मचारी नौकरी सेवा-शर्तों पर काम करते हैं।

ई-मेल भेजकर जानकारी-

टीसीएस ने अपने कर्मचारियों को इस अहम बदलाव के बारे में ई-मेल के जरिए सूचना दी है। जिसमें इस बदलाव से LGBT (लेसबियन, गे, बाइसेक्सुअल तथा ट्रांसजेंडर) कर्मचारियों को मिलने वाले फायदों का ज़िक्र है। कंपनी ने बताया है कि, अब कर्मचारियों के अबाउट कॉलम में स्पाउस के बजाए 'पार्टनर' शब्द उपयोग होगा। कंपनी के इस बदलाव के बाद समलैंगिक पार्टनर्स को जीवन बीमा पॉलिसी में शामिल किया जा सकेगा।

टाटा की पहली कंपनी-

सूचना प्रौद्योगिकि में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) प्राइवेट सेक्टर में बड़ा नाम है। कंपनी ने यह बदलाव इसलिए किया है, ताकि उसकी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में कर्मचारियों के सेम-सेक्स रिलेशनशिप को भी शामिल किया जा सके। ऐसा करने वाली टाटा समूह की यह पहली कंपनी होगी।

भारत में चलन नया नहीं-

आरबीएस इंडिया और सिटी बैंक ये वो नाम हैं, जहां पहले से ही गे पार्टनर्स को मेडिकल कवर या फिर फैमिली हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सुविधाओं के लाभ की पात्रता है। कई कंपनियों में लिव-इन पार्टनर को भी जीवन संगी मानकर बीमा कवर दिया जा रहा है।

वैवाहिक स्थिति/पार्टनर-

तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश में टीसीएस ने भी समय से कदमताल करना ठीक समझा है। गौरतलब है कंपनी में इस बदलाव का हाल ही में औपचारिक खाका तैयार किया गया है। इस बदलाव के बाद कंपनी के कर्मचारी की सिर्फ वैवाहिक स्थिति को ही मान्यता नहीं रहेगी, बल्कि कर्मचारी यदि सहमति से किसी के साथ जीवन गुजारने रजामंद है, तो उसके पार्टनर को भी वो तमाम लाभ मिलेंगे जिसके अन्य किसी कर्मचारी के जीवन संगी हकदार होते हैं।

अधिकतम 2 लाख-

टीसीएस का कोई कर्मचारी यदि नई पॉलिसी के तहत सर्जरी करवाकर लिंग चैंज कराना चाहता है, तो उसे कंपनी चिकित्सीय खर्च पर आने वाली कुल लागत का 50 फीसद जो कि, अधिकतम दो लाख से अधिक नहीं होना चाहिए इंश्योरेंस कवर करेगी।

ताकि बरकरार रहे सम्मान-

टीसीएस का मानना है किसी भी व्यक्ति का सम्मान उसके अहम मूल्यों में से एक है। इस कारण कंपनी ने लैंगिक समानता की दिशा में कंपनी की नीतियों में अहम बदलाव का निर्णय लिया है।

“हम ऐसा संगठन बनाने में विश्वास रखते है जहां हर कोई खुद को समावेशित और सम्मानित महसूस करता हो।“
प्रीति डी'मेलो, ग्लोबल डायवर्सिटी हेड, टीसीएस

कंपनी ने इस बदलाव के लिए ऐसे वर्किंग स्ट्रक्चर का हवाला दिया है जहां माहौल पारदर्शी और सबके अनुकूल हो। गौरतलब है इस अहम बदलाव के बाद कंपनी को लिंग परिवर्तन सर्जरी की एक एप्लीकेशन भी मिल चुकी है। कंपनी ने ऐसे संगठन की प्रतिबद्धता जताई है, जहां सभी कोई शामिल, सहभागी और सम्मानित महसूस कर सकें।

गौरतलब है कि, पश्चिमी देशों की तरह ही भारतीय कार्य संस्कृति में भी समलैंगिक संबंधों को प्रधानता देने की मांग लंबे समय से होती रही है। टीसीएस समेत कई संगठनों ने समानता के भाव के मद्देनज़र अपनी नीतियों में बदलाव किया है। ताकि कर्मचारियों का हित प्रभावित न हो।

LGBTQIA-

लेस्बियन, गे, बायोसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वियर, इंटरसेक्स, असेक्सुअल जैसी तमाम परिभाषित रिश्तों की डोर में बंधे रिश्तों से फैमिली मैंबर सरीखा बर्ताव करने देश-विदेश में न केवल वकालत हो रही है बल्कि अधिकारपूर्ति के तमाम प्रबंध भी किए जा रहे हैं। भारत में भी हाल ही में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन बिल पास किया गया है। इस वर्ग के कर्मचारियों को मेडिकल इंश्योरेंस, लिंग परिवर्तन सर्जरी, हारमोन थेरेपी जैसी चिकित्सीय सुविधाओं का अन्य जेंडर्स की तरह लाभ मिल सकेगा।

टीसीएस की भी नई नीति में स्पाउस यानी पति या पत्नी को अब पार्टनर के तौर पर परिभाषित किया जा सकेगा, ताकि समान-जेंडर पार्टनर्स को हेल्थ पॉलिसी में कवर किया जा सके। समान जेंडर सेक्स संबंधों से आकर्षित कर्मचारियों को समानता का अधिकार देने के लिए ही टीसीएस ने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में बदलाव किया है।

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