Thai Massage Review
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Thai Massage Review : बुजुर्गों के अकेलेपन को लेकर बात करती है थाई मसाज

Pankaj Pandey

स्टार कास्ट : गजराज राव, दिव्येंदु

डायरेक्टर : मंगेश हड़ावले

प्रोड्यूसर : इम्तियाज अली, रिलायंस एंटरटेनमेंट

स्टोरी :

फिल्म की कहानी उज्जैन में रहने वाले बैंक से रिटायर हो चुके सत्तर वर्षीय आत्माराम दुबे (गजराज राव) की है जो कि टाइपिंग से किसी भी इंसान का स्केच आसानी से बना सकते हैं। आत्माराम की पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है और अकेलापन उन्हें अब पूरी तरह काट रहा है। आत्माराम की बस अब एक चाह है कि वो किसी के साथ यौन संबंध बनाएं, क्योंकि उनकी भी कुछ जरूरत है। अचानक एक दिन आत्माराम को पता चलता है कि उन्हें इरेक्टल डिस्फंक्शन की बीमारी हो गई है। अपनी इस बीमारी से परेशान होने के चलते आत्माराम खुदकुशी करने का फैसला करते हैं और उन्हें खुदकुशी करते हुए संतुलन कुमार (दिव्येंदु) देख लेता है। संतुलन कुमार आत्माराम को समझाता है कि उनकी इस समस्या का समाधान उसके पास है। संतुलन कुमार आखिरकार आत्माराम की समस्या का समाधान कर देता है और उन्हें बताता है कि उनकी समस्या का समाधान बैंगकॉक में हो जाएगा। आत्माराम संतुलन कुमार के कहे अनुसार बैंगकॉक चले जाते हैं। अब बैंगकॉक पहुंचकर आत्माराम अपनी समस्या का समाधान कर पाते हैं या नहीं। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

डायरेक्शन :

फिल्म को डायरेक्ट मंगेश हड़ावले ने किया है और उनका डायरेक्शन ठीक है। फिल्म का सब्जेक्ट बढ़िया है, लेकिन डायरेक्टर सब्जेक्ट के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाए है। फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी स्लो है, लेकिन सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है। फिल्म का फर्स्ट पार्ट सेकंड पार्ट की अपेक्षा ज्यादा बढ़िया है। फिल्म का म्यूजिक औसत है लेकिन फिल्म के डायलॉग कई जगह पर थोड़े चीप हो गए हैं।

परफॉर्मेंस :

परफॉर्मेंस के तौर पर गजराज राव ने बढ़िया अभिनय किया है। सत्तर वर्षीय बुजुर्ग के किरदार में गजराज राव फिट बैठ रहे हैं। दिव्येंदु ने भी ठीक-ठाक काम किया है। राजपाल यादव ने लाजवाब काम किया है। सनी हिंदुजा और अनिल चरणजीत ने भी ठीक काम किया है। एलिना जेशोबिना और अनुरिता झा ने भी अच्छा काम किया है। फिल्म के बाकी कलाकारों का काम भी ठीक है।

क्यों देखें :

थाई मसाज एक बेहतरीन फिल्म है। फिल्म में अकेलेपन में जी रहे बुजुर्गों के बारे में दिखाया गया है। फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि बुजुर्गों के एक उम्र के पड़ाव पर आने के बाद कुछ जरूरतें होती हैं। उन जरूरतों को वो किसी के साथ शेयर भी नहीं कर सकते इसलिए बुजुर्ग जो भी करें उन्हें करने दें और उन्हें अपना जीवन अपनी इच्छा अनुसार जीने दें क्योंकि उन्हें जिंदगी लंबी नहीं बल्कि अच्छी चाहिए होती है। अगर आप बुजुर्गों से जुड़ी इस समस्या को बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

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