चुनाव में नक्सलवाद का दखल
चुनाव में नक्सलवाद का दखल Syed Dabeer Hussain - RE
छत्तीसगढ़

चुनाव में नक्सलवाद का दखल- दायरा सिमटा पर अब भी समानांतर सरकार चलाने में सक्षम

gurjeet kaur

Naxalism Interference in Elections: भारत में नक्सलवाद 1970 के दशक से ही आतंरिक सुरक्षा को लेकर एक गंभीर समस्या रहा है। हालांकि, अब नक्सली संगठनों का दायरा काफी कम हो गया है। फिर भी छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में इनका ना केवल आम जनजीवन बल्कि राजनीतिक तौर पर भी अच्छा खासा दखल है। इस साल 2023 के नवंबर माह में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2023) प्रस्तावित है और अपनी ताकत दिखाने के लिए नक्सलियों ने कई धमाके और हमले किये हैं। सुरक्षा बलों और नक्सली संगठनों के बीच बीते कुछ दिनों से संघर्ष बढ़ गया है। चुनावों के पहले नक्सलियों ने दन्तेवाड़ा (Dantewada Naxal Attack), जिसे दक्षिण बस्तर जिला भी कहा जाता है, में IED ब्लास्ट के जरिये एक बड़ी घटना को अंजाम दिया है। इस हादसे में 11 जवान शहीद हुए हैं। नक्सली संगठन PLGA (People's Liberation Guerrilla Army) ने प्रेस रिलीज़ जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है।

नक्सल हमला और चुनाव के बीच सम्बन्ध :

पिछले कुछ चुनाव से पहले हुई घटनाओं पर नज़र डालें तो यह पता चलता है कि चुनाव से पहले अक्सर नक्सली छत्तीसगढ़ में बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं। इन वारदातों को अंजाम देने का उद्देश्य आस-पास रहने वाली जनता, सरकार और सरकार के सहयोगियों के बीच दहशत फैलाना है। भारत में नक्सली माओवादी विचारधारा को मानते हैं, अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए ये हिंसा का सहारा लेते हैं। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है तथा निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र का एक अहम पहलू है। कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाले ये नक्सली क़ानून के शासन की जगह अपनी सामानांतर शासन व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं।

चुनाव के पहले धमकी भरे पेम्पलेट जारी करना नक्सलियों द्वारा की जाने वाली आम घटना है। इस बार भी चुनाव से पहले नक्सलियों ने चेतावनी भरे पोस्टर और बैनर लगाएं हैं। कुछ बैनरों में उन्होंने आम लोगों को चुनाव का बहिष्कार करने की हिदायत दी है। यह सब करने के पीछे नक्सली संगठनों का सरकारी तंत्र को सीधा सन्देश है कि, उनकी मौजूदगी प्रदेश में है और बिना उनकी मर्जी से चुनाव करना सरकार के लिए आसान नहीं है।

चुनाव के पहले धमकी भरे पेम्पलेट

छत्तीसगढ़ में चुनाव के पहले बढ़ती नक्सल समस्या :

झारखण्ड के बाद छत्तीसगढ़ वह राज्य है जिसके सबसे अधिक जिले नक्सल प्रभावित हैं। हालाँकि हमलों के नजरिये से देखा जाय तो छत्तीसगढ़ में झारखण्ड से ज्यादा नक्सल हमले हुए हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार छत्तीसगढ़ के 14 जिले- बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, नारायणपुर, राजनंदगांव, सुकमा, कबीरधाम और मुंगेली नक्सल प्रभावित हैं।

चुनावी साल 2013, 2018 और 2023 के आंकड़े :

इस साल नवम्बर या उससे पहले छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव है और अब तक तीन अलग-अलग मामलों में नक्सलियों की सक्रिय भूमिका रही है। इस साल अभी बस 4 महीने ही हुए हैं और अब तक अलग-अलग हमलों में 17 जवान शहीद हो चुके हैं। विगत वर्ष, 2022 के आकड़ों पर नज़र डालें तो यह पता चलता है कि 300 के करीब नक्सल हमलों में 10 जवान शहीद हुए थे। पिछले साल के मुकाबले में चुनावी साल 2023 के ये आंकड़े वाकई चौंकाने वाले हैं।

  • 2018 चुनावी साल, में नक्सली हमले में CRPF के 9 जवान शहीद हुए थे ।

  • छत्तीसगढ़ में अब तक का सबसे बड़ा नक्सल हमला दंतेवाड़ा में 2010 में हुआ था जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए थे।

  • इसके अलावा साल 2013 में नक्सलियों ने झीरम घाटी हमले में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की हत्या की थी। इस हमले का मुख्य टारगेट बस्तर टाइगर, महेंद्र कर्मा थे। “सलवा जुडूम” का नेतृत्व करने की वजह से नक्सली उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। नक्सलियों ने उन पर करीब 100 गोलियां दागीं। इस हमले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल और विद्याचरण शुक्ल जैसे कई बड़े नेता मारे गए थे।

क्या था "सलवा जुडूम" ?

सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ में बीजापुर के कुटरू क्षेत्र से जून 2005 में शुरू हुआ आंदोलन है। जिसे कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा द्वारा चलाया गया था। सलवा जुडूम (Salwa Judum) गौंड भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘शान्ति यात्रा'। इसे माओवादियों से निपटने के लिए शुरू किया गया था। राज्य सरकार ने इस आंदोलन से जुड़ने वाले ग्रामिणों को, नक्सलियों से लड़ने के लिए हथियारों और रसद के साथ-साथ अन्य जरूरी चीजें भी मुहैया कराई थी। शुरुआत में सलवा जुडूम आंदोलन से जुड़े आदिवासियों को पारम्परिक हथियार मुहैया कराये गए थे परन्तु बाद में आधुनिक हथियार भी दिए गए थे। नक्सलियों और आदिवासियों में हिंसा की घटनाएं बढ़ने से ग्रामीण आदिवासियों को कैंप में शरण लेनी पड़ी थी। अभियान के दौरान करीब 55,000 ग्रामीण आदिवासियों को पडोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में शरण ली थी। सलवा जुडूम से नाराज माओवादियों ने 25 मई 2013 को कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा की बर्बरता से हत्या कर दी थी।

नक्सलियों के दबाव के बावजूद नहीं घटा वोटिंग परसेंट :

साल 2013 में हुई घटना के बाद छत्तीसगढ़ में मतदान का प्रतिशत कम होने के आसार बन गए थे। ख़ास तौर से ग्रामीण इलाकों में मतदाता घर से बहार नहीं निकलना चाहता था, लेकिन सरकारी तंत्र के प्रयास से बीते कुछ चुनावों में मतदान का प्रतिशत लगातार बढ़ा है। आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि 2018 में नक्सलियों द्वारा चुनाव का बहिष्कार किये जाने के ऐलान तथा हिंसक हमलों के बावजूद भी वोटिंग परसेंट 76.35 प्रतिशत रहा जो पिछले साल 2013 के विधानसभा चुनाव में हुए 77.40 प्रतिशत वोट से थोड़ा ही कम है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ना केवल शहरी बल्कि कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में भी भारी संख्या में वोट डाले गए थे।

पिछले 5 विधानसभा चुनाव में हुए वोट प्रतिशत :

वर्ष-- वोट प्रतिशत

  • 2018- 76.35

  • 2013- 77.40

  • 2008- 70.61

  • 2003- 71.30

नक्सलवाद की शुरुआत :

नक्सलियों की कार्यप्रक्रिया समझने से पहले इनके इतिहास को जानना ज्यादा जरुरी है। दरअसल नक्स्लवाद कि शुरआत पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव में हुई थी। इसे नक्सलवाद कहा जाता है क्योंकि ये माओवादी विचारधारा को मानते हैं इसलिए इन्हे माओवादी भी कहा जाता है। दरअसल नक्सलवाद, नक्सलबाड़ी में आज़ादी के बाद भी किसानों की दयनीय हालत और विकास के आभाव का नतीजा है। नक्सलवादी भुखमरी, गरीबी, और बेरोज़गारी से आज़ादी की बात करते हैं। नक्सली विचारधारा के अनुसार कोई भी काम हिंसा और हथियारों से कराया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर और दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में नक्सलवाद सुरक्षा से अधिक भुखमरी की समस्या है। कुछ दशक बाद नक्सली संगठन माओवाद से जुड़ गए जिसके बाद और अधिक हिंसक होते चले गए इस दौरान राजनीती में दखल के तरीके भी उन्होंने सीख लिए।

नक्सली संगठन में महिलाओं की भूमिका :

नक्सली संगठनों में महिलाओं का ओहदा पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं है। कई नक्सल संगठनों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं सक्रिय हैं। इन महिला नक्सलियों ने कई हमलों को अंजाम दिया है। महिलाओं को छोटी उम्र से ही नक्सल संगठनों में शामिल कर लिया जाता है। बचपन से ही इन्हे हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि, पुरुषों के मुकाबले ये महिला नक्सली ज्यादा क्रूर और आक्रामक होती हैं।

प्रमुख महिला नक्सली :

पिछले दिनों एक महिला नक्सली सुंदरी काफी चर्चा में थी। सुंदरी उर्फ़ ललिता,15 साल की उम्र से नक्सली संगठन में सक्रिय थीं। इन पर 8 लाख का इनाम था। हालांकि सुंदरी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया और अब डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड के रूप में काम कर रहीं हैं। सुंदरी ने नक्सली संगठन में रहते हुए कई हमलों को अंजाम दिया जिसमें बहुत से सुरक्षाकर्मी मारे गए।

नक्सली महिला मड़काम हूँगी :

एक और उदहारण है, खतरनाक महिला नक्सली मड़काम हूँगी का है जिसे NIA की टीम ने बीजापुर से गिरफ्तार किया था। साल 2021 में तेकुलागुडेम में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में अहम भूमिका थी। इस एक हमले में ही 22 जवान शहीद हुए थे।

नक्सली महिला मड़काम हूँगी

सुनीता उर्फ सोमड़ी मड़ावी :

महिला नक्सली सुनीता उर्फ सोमड़ी मड़ावी छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की रहने वाली थी। ये दलम के सदस्य समूह में थीं। सुनीता पर मध्यप्रदेश में 3 लाख, छत्तीसगढ़ में 5 लाख और महाराष्ट्र मं 6 लाख का इनाम था। ऐसे कुल मिलाकर सुनीता पर 14 लाख का इनाम घोषित था। सुनीता पर मध्यप्रदेश में 10 और छत्तीसगढ़ में 5 इस प्रकार से इस पर कुल 15 अपराधिक मामले दर्ज हैं। ये पुलिस द्वारा किये गए एनकाउंटर में मारी गयी।

करूणा - जमुई :

एक हार्डकोर महिला नक्सली है। झारखंड सरकार द्वारा करुणा पर 25 लाख का इनाम था। पुलिस द्वारा इनकी गिरफ्तारी के बाद यह जानकारी मिली कि ये अत्याधुनिक हथियार रखने वाले दस्ते में शामिल थी। करुणा के विरुद्ध 33 कांड बिहार एवं झारखंड में दर्ज हैं।

करूणा - जमुई

शोभा उर्फ रोजीना खातून:

रोजीना महज 12 साल की उम्र में ही नक्सली संगठन से जुड़ गई थी। ये एक हार्डकोर महिला नक्सली है। जिस समय पुलिस द्वारा इसे गिरफ्तार किया गया उस समय ये नक्सली संगठन के विस्तार में लगी हुई थी। ये मूल रूप से झारखंड के बेंगाबाद की रहने वाली थी, पुलिस को नक्सली वारदात और एक लूट के मामले में लंबे समय से रोजीना की तलाश थी।

कारी देवी - मुंगेर :

ये भी एक हार्डकोर नक्सली है। दिसंबर 2021 में अजीमगंज पंचायत के नवनिर्वाचित मुखिया परमानंद टुड्डू की हत्या मामले में भी कारी देवी नामजद आरोपित थी। गिरफ्तारी के बाद इसे जेल भेज दिया गया। ये मुख्य रूप से नक्सलियों तक पुलिस की सूचना पहुंचाने का कार्य करती थी।

कारी देवी - मुंगेर

इतिहास ऐसी कई महिला नक्सलियों की कहानियों से भरा हुआ है, जिन्होंने नक्सली रहते हुए कई हमले किये पर अब आत्मसमर्पण कर वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए आगे आ रहीं हैं।संगठन में प्रभावशाली होने के बाद भी संगठन में शामिल हुई कई महिला नक्सलियों का उच्च अधिकारियों द्वारा शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया जाता है। संगठन में महिला उत्पीड़न का मामला आये दिन उठता ही रहता है।

प्रश्न उठता है कि इन नक्सलियों की पहुँच हथियारों तक कैसे होती है?

दरअसल छत्तीसगढ़ में इन नक्सलियों की फंडिंग का बड़ा स्त्रोत खनन उद्योग है। नक्सली, खनन उद्योगों से उनके लाभ का कुछ प्रतिशत वसूली के रुप में लेते हैं। यही इनकी कमाई का प्रमुख स्त्रोत है। सरकार द्वारा इन इलाकों तक विकास पहुंचाने के लिए कंपनियों को खनन के अधिकार दिए जाते है। ये औद्योगिक इकाइयां नक्सलियों को सुरक्षा राशि देतीं हैं। इस राशि के प्रयोग से ही ये नक्सली सुरक्षा बल पर हमला करते हैं। इस तरह ये कुचक्र चलता जाता है जिसका अंजाम वहां रहने वाले आम नागरिक भुगतते हैं। हालांकि पिछली सरकारों नें नक्सलवाद को खत्म करने के अथाह प्रयास किये हैं, परन्तु बीते कुछ समय से प्रयासों में आई नरमी के कारण नक्सलियों की गतिविधियों में तेज़ी आयी है। नक्सलियों ने कई राजनीतिक हत्याओं और सुरक्षा बल पर हुए हमले की वारदातों को अंजाम दिया है।

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बल पर विधानसभा चुनावों से पहले होने वाले यह हमले बताते हैं, कि भले ही अब नक्सली सीमित क्षेत्र तक सिमट गए हों पर अभी ये भी बड़ी घटनाओं को अंजाम देने में सक्षम हैं। नक्सलवाद जैसी समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए वहां रहने वाले स्थानीय नागरिकों और सरकारी तंत्र के बीच विश्वास होना आवश्यक है।

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