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जानें जरा हटके : ऐसे देश जो नहीं करते ईवीएम (EVMs) पर विश्वास, वजह जान रह जाएंगे हैरान...

Akash Dewani

राज एक्सप्रेस। ईवीएम का उपयोग पहली बार भारत में साल 1982 में हुआ था। साल 1982 के बाद साल 1998 में पहली बार आम चुनावों में इसका उपयोग किया गया था। भारत में इसका इस्तेमाल होते देख बहुत से देशों ने भी मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम चुनने का फैसला किया था। बहरहाल, वर्तमान में ऐसी कई देश है जिन्होंने ईवीएम को या तो बैन कर दिया है या उसपर विश्वास करना छोड़ दिया है। चलिए जानते है की क्यों इन बड़े और विकसित देशों को नहीं है ईवीएम पर विश्वास।

जर्मनी :

जर्मनी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम को असंवैधानिक करार दिया गया है और उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। चुनाव की जांच समिति के समक्ष असफल शिकायत करने के बाद दो मतदाताओं ने जर्मन संवैधानिक न्यायालय के समक्ष मामला लाया। इस शिकायत के बाद जर्मन संवैधानिक न्यायालय ने वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया।

जापान :

जापान में 2002 में विशेष कानून के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग शुरू की गई थी, लेकिन यह अभी भी केवल स्थानीय चुनावों तक ही सीमित थी। आशा थी कि मशीनें वोटों की गिनती में गति और सटीकता में सुधार करेंगी। 2003 तक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर जापान ने प्रतिबंद लगाया हुआ था। जापानी सरकार को विश्वास था की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से चुनावों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा लेकिन ऐसा हो न सका। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के मेहेंगे होने और पारदर्शी ना होने के कारण 2016-17 में वापस बैलट बॉक्स से मतदान करवाने का फैसला किया।

बांग्लादेश :

बांग्लादेश चुनाव आयोग ने इसी साल अप्रैल में घोषणा की थी कि जनवरी 2024 में होने वाले आगामी 12वें संसदीय चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। यह फैसला प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ कड़े विरोध के बाद आया था। बांग्लादेश में विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल पर पिछले चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है और भविष्य में चुनावी धोखाधड़ी से बचने के लिए एक गैर-पक्षपातपूर्ण सरकार की स्थापना की मांग की है।

नीदरलैंड :

नीदरलैंड एक और देश है जिसने ईवीएमएस के इस्तेमाल पर सवाल उठाया है। देश ने ईवीएम के इस्तेमाल पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि उनमें पारदर्शिता की कमी है। लोगों द्वारा वोटिंग मशीनों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाने के बाद 2008 में डच काउंसिल ने यह निर्णय लिया था। डच टीवी ने एक कहानी दिखाई जिसमें नेडैप वोटिंग मशीन के ईपीरोम में एक बदलाव से आउटपुट बदल गया जिससे लोग इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं।

आयरलैंड :

आयरलैंड ने ईवीएम की स्थापना और राजनीतिक चुनावों के दौरान उनके उपयोग पर लाखों डॉलर खर्च किए। हालाँकि, तीन वर्षों तक 51 मिलियन पाउंड से अधिक खर्च करने के बाद, आयरलैंड आगे बढ़ा और वोटिंग मशीन में विश्वास और पारदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली को खत्म कर दिया।

इंग्लैंड :

इंग्लैंड ने कभी भी ईवीएम के इस्तेमाल को बढ़ावा नहीं दिया। इंग्लैंड उन कुछ देशों में से एक है जो राजनीतिक चुनावों में आधुनिक तरीकों से दूर रहा है और सरकार की योजना भी इसी राह पर आगे बढ़ने की है। जनवरी 2016 में, यूके संसद ने खुलासा किया कि वैधानिक चुनावों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग शुरू करने की उसकी कोई योजना नहीं है, या तो मतदान केंद्रों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग करना या इंटरनेट के माध्यम से दूरस्थ रूप से मतदान करना।

फ़्रांस :

2007 में राष्ट्रीय राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग किया गया था। जबकि देश ने इंटरनेट के माध्यम से मतदान करने का विकल्प चुना है, फ्रांस में ईवीएम का उपयोग नहीं किया गया है। फ्रांस में चुनावों में 2003 में पहली बार रिमोट इंटरनेट वोटिंग का उपयोग किया गया और 2009 में इस विचार को एक प्रथा बना दिया गया क्योंकि लोगों ने कागज के बजाय इंटरनेट वोटिंग प्रणाली को चुना।

उत्तरी मैसेडोनिया :

मैसेडोनिया, जिसे आधिकारिक तौर पर उत्तरी मैसेडोनिया के नाम से जाना जाता है, ने अपने चुनावों में मुख्य रूप से कागज-आधारित मतदान प्रणाली का उपयोग करता है। मैसेडोनिया द्वारा ईवीएम को न अपनाने का कारण इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की सुरक्षा और अखंडता, संभावित तकनीकी मुद्दे और पारदर्शी है। ईवीएम की हैकिंग या हेरफेर की आशंका के बारे में चिंताओं के कारण उत्तरी मैसेडोनिया ने इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में बदलाव को लेकर चिंतित है। इसके अतिरिक्त, उन नागरिकों की ओर से भी विरोध है जो कागजी मतपत्रों की स्पर्शनीय और दृश्यमान प्रकृति को पसंद करते हैं।

भारत में कई राजनेताओं ने कई बार ईवीएम की साख पर सवाल उठाए है। साल 2009 के आम चुनाव के बाद पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा के संस्थापकों में से एक लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। उन्होंने ईवीएम के साथ-साथ पेपर ट्रेल्स के उपयोग का सुझाव दिया था। यही नहीं, भाजपा नेता जी.वी.ल नरसिम्हा राव ने ईवीएम पर किताब लिखी थी जिसका शीर्षक था "लोकतंत्र ख़तरे में! क्या हम अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर भरोसा कर सकते हैं?" इसके आलावा भाजपा के राज्यसभा से सांसद और पेशे से सुप्रीम कोर्ट के वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने भी साल 2012 में ईवीएम पर सवाल उठाए थे। अब देखने वाली बात यह है कि बाकी देशों की तरह क्या भारत भी बैलट पेपर मतदान प्रणाली पर वापस लौटता है की नहीं।

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