आदिवासी समाज की सहमति के बिना पेड़ो को काटना भावना पर कुठाराघात
आदिवासी समाज की सहमति के बिना पेड़ो को काटना भावना पर कुठाराघात Social Media
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आदिवासी समाज की सहमति के बिना पेड़ों को काटना उनकी भावना पर कुठाराघात : हेमन्त सोरेन

News Agency

रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए उस कानून पर गहरी आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि आदिवासियों और वनों पर निर्भर रहने वालों की सहमति सुनिश्चित किए बिना निजी डेवलपर्स वनों को काट सकेंगे। मुख्यमंत्री ने आग्रहपूर्वक इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने के लिए प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। उन्होंने आज पत्र के माध्यम से कहा है कि झारखण्ड में 32 प्रकार के आदिवासी रहते हैं, जो प्रकृति के साथ समरसतापूर्वक जीवन जीते हैं। ये पेड़ों की पूजा और रक्षा करते हैं। जो लोग इन पेड़ों को अपने पूर्वजों के रूप में देखते हैं, उनकी सहमति के बिना पेड़ों को काटना उनकी भावना पर कुठाराघात करना जैसा होगा। वन अधिकार अधिनियम, 2006 को परिवर्तित कर वन संरक्षण नियम 2022 ने गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 वनों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों और वनों पर निर्भर अन्य पारंपरिक लोगों को वन अधिकार प्रदान करने के लिए लाया गया था। देश में करीब 20 करोड़ लोगों की प्राथमिक आजीविका वनों पर निर्भर है और लगभग 10 करोड़ लोग वनों के रूप में वर्गीकृत भूमि पर रहते हैं। ये नए नियम उन लोगों के अधिकारों को खत्म कर देंगे, जिन्होंने पीढ़ियों से जंगल को अपना घर माना है। जबकि, उन्हें उनका अधिकार अब तक नहीं दिया जा सका है।

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