मैं यदि इस वर्दी को डर के साथ पहनकर निकल रही हूँ, तो मैं सामने किसी को क्या सेफ्टी दे सकती हूँ।महिला पुलिस कर्मी
राज एक्सप्रेस। ये शब्द हैं महिला पुलिसकर्मी के। वर्दी पहने हाथों में बैनर लिए दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर खड़ी है, जिसमें 'We Want Equal Justice' लिखा है। जस्टिस या न्याय मांगने वाली यह इकलौती पुलिस कर्मी नहीं है। बल्कि दिल्ली के सभी पुलिस कर्मचारी वर्दी पहने हाथों में बैनर लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं। सबको सुरक्षा देने वाली पुलिस कर्मचारियों की जान आज खतरे में हैं।
महिला कर्मचारी आगे कहती हैं पुलिस के साथ गलत होता है तो उनका साथ देने वाला कोई नहीं होता। कानून सबके लिए बराबर है तो हमारे साथ अन्याय क्यों? पुलिस सुरक्षा भी दे, काम भी करे, हमारे ही लोगों पर हमला हो और हम पर ही जांच की सुई जलाई जाए ये कैसा न्याय है। वर्दी पहनकर चलने में अब डर लगता है, डर लगता है वर्दी में देखकर कोई हमपर हमला न कर दे, क्योंकि उसके बाद पुलिस वालों की सुनने वाला कोई नहीं है, जबकि दूसरों को सुनने वाले सब हैं। इसलिए हमें बराबर का इंसाफ चाहिए।
यह पहली दफा है जब पुलिस विभाग ऐसे इंसाफ के लिए प्रदर्शन कर रही है। इनके इंसाफ मांगने का तरीका अहिंसक है। पुलिस की यह हालत 2 दिन पहले देश की राजधानी में घटी एक घटना के बाद हुई। दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट के बाहर गलत पार्किंग को लेकर विवाद शुरू हुआ। पार्किंग में एक वकील ने गाड़ी गलत जगह पार्क कर दी थी। जिसे वहां से हटाने के लिए पुलिस कर्मी ने कहा। दोनों में कहा-सुनी हुई, हाथापाई हुई और फिर बड़े विवाद में तब्दील हो गई। पुलिस वैन जला दिया गया, मामला इतना बढ़ गया था कि पुलिस को एक्शन लेना पड़ा।
मामले में हाई कोर्ट का जजमेंट भी आया है जिसमें एक जगह लिखा गया है कि मामले पर डेंढ महीने तक कार्रवाई होगी और वकीलों को जाँच के दायरे से दूर रखा जाएगा। मौके पर मौजूदा लोगों ने वकील पक्ष की गलती बताई है। पुलिस की नाराज़गी का मुख्य कारण कोर्ट का जजमेंट ही है। क्योंकि बात ये भी सामने आई है कि मामला जब कोर्ट में था तभी एडशिनल डीसीपी, एडिशनल कमिश्नर का तबादला कर दिया गया जबकि दो एसआई को सस्पेंड कर दिया गया।
पुलिस कर्मियों के इस प्रदर्शन में उनके परिवार वाले भी उनका समर्थन करने आए हैं। गीता के पति पुलिस विभाग में एसआई हैं उनका कहना है कि पुलिस वालों के भी परिवार होते हैं, पुलिसवालों पर आए दिन हमले हो रहे हैं, वो असुरक्षित हैं। उनकी सुरक्षा बढ़ाने की मांग को लेकर मैं पुलिस कर्मियों का समर्थन करने आई हूँ।
दोनों पक्षों पर हो कार्रवाई
घटना के बाद से वकीलों का प्रदर्शन हिंसात्मक रहा है। कड़कड़डूमा कोर्ट में वकीलों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया, इसके बाद उत्तर प्रदेश के कानपुर में वकील ने पुलिस जवान की पिटाई कर दी। गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया, जिसके बावजूद भी कार्रवाई पुलिस कर्मियों पर हो रही। पुलिस वालों की मांग है कि कार्रवाई दोनों पक्षों पर हो, किसी एक को कसूरवार ठहराना गलत है।
पुलिस मुख्यालय के बाहर धरना दे रहे एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि हमारा मनोबल कम हुआ है। हमारे साथियों के साथ ठीक नहीं हुआ हम सिर्फ इस वक्त बराबरी का इंसाफ चाहते हैं। हमारे तरफ से कोई प्रोटेस्ट नहीं है, ये एक साइलेंट मूवमेंट है।
पुलिस कर्मियों पर सदियों से हो रहे हमले
बरसों से पुलिस कर्मियों पर अत्याचार होते आ रहे हैं। उनपर होने वाले हमले को या तो नज़रअंदाज कर दिया जाता है या मौन रख लिया जाता है। पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या हम नहीं भूल सकते।
पुलिस पर हो रहे हमले के बारे में आप सर्च करेंगे तो कम लंबी- चौड़ी सूची आपके सामने खुल जाएगी। अब सवाल यहाँ उठता है कि पुलिस कर्मचारियों पर इतने हमले हो रहे हैं तो सरकार शांत क्यों है। क्यों नहीं इस पर कार्रवाई करती है?
आईपीएस ऑफिसर कर रहे खुलकर समर्थन
दिल्ली की उस घटना के बाद पुलिस कर्मचारियों के सुर से सुर मिलाने आईपीएस अधिकारी भी आगे आए हैं। कई आईपीएस अधिकारियों ने पुलिस विभाग के समर्थन में ट्विट किया है। उन्होंने लिखा है पुलिसकर्मियों के लिए मानवाधिकार के नियम लागू होने चाहिए, उनका भी परिवार है । ऐसे में पुलिस जवानों पर हमला करने वाले वकीलों पर भी एक्शन होना चाहिए।
आईपीएस ऑफिसर असलम खान ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वकीलों का झुंड एक पुलिसवाले को बुरी तरह से पीट रहे हैं। ये वीडियो शेयर करते हुए ऑफिसर असलम ने लिखा -
आईपीएस ऑफिसर डी रूपा ने विभाग के समर्थन में ट्विट किया -
नौकरी में मिलने वाले अधिकारों की बात करें तो मध्यप्रदेश पुलिस ने अपने स्वर पहले ही बुलंद कर लिए थे पुलिस विभाग ने पिछले महीने ही सोशल मीडिया पर #मध्यप्रदेशपुलिससुधार आंदोलन छेड़ दिया था, लेकिन उनकी आवाज़ भी दबा दी गई।
#मध्यप्रदेशपुलिससुधार आंदोलन
पिछले महीने सोशल मीडिया पर #मध्यप्रदेशपुलिससुधार कैंपेन की शुरूआत हुई। इस कैंपेन का उद्देश्य पुलिस कर्मियों की ड्यूटी को सरल, तनाव मुक्त, अवसाद-मुक्त एवं सुरक्षित बनाने पर था।
इस कैंपन के जरिए पुलिस कर्मचरियों ने मांगो की सूची तैयार की थी और पूरा नहीं होने पर भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में प्रदर्शन करने की धमकी भी दी थी। अभियान से जुड़ने वाली सिपाही समेत 4 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था। तो क्या इसका मतलब यह निकाला जा सकता है पुलिस विभाग मांग नहीं कर सकता?
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