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दिल्ली

नई संसद के उद्घाटन समारोह से कांग्रेस समेत 19 सियासी दलों ने बनाई दूरी, आखिर इससे किसका होगा फायदा ?

Aniruddh pratap singh

राज एक्सप्रेस । भारत विविधताओं का देश है। इस विशाल देश में किसी भी ओर 100 किलोमीटर चले जाइए, आपको भाषाई और संस्कृतिक स्तर पर अंतर दिखाई दे जाएगा। जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे यह अंतर बढ़ता जाएगा। कुछ ज्यादा दूरी तय करने पर आपको भ्रम हो सकता है कि मैं किसी दूसरे देश में तो नहीं आ गया। इतने बहुसांस्कृति और विविधतापूर्ण समाज का उदाहरण अन्यत्र खोजना मुश्किल है। यही वजह कि भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है। गौर करने की बात यह है तमाम विविधताओं के बावजूद सांस्कृतिक स्तर पर पूरा देश एक है और सभी लोगों के राष्ट्रीय लक्ष्य एकदम स्पष्ट हैं। उत्तर भारत और दक्षिण भारत सांस्कृतिक स्तर पर इतने भिन्न दिखाई देते हैं कि कई बार विदेश होने का भ्रम उत्पन्न हो सकता है। सुदूर हिमाचल प्रदेश के किसी गांव और अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण समाज में बहुत अंतर है, लेकिन वे फिर भी एक सूत्र में बंधे हुए हैं। कोई सूक्ष्म अंतर्राधारा है, जो उन्हें एक बनाए रखती है।

विविधता के बाद भी पूरा देश एक

किसी राष्ट्रीय आपदा का समय हो, सीमा पर मिलने वाली कोई चुनौती हो या कोई अन्य राष्ट्रीय महत्व का अवसर, आपको पता चल जाएगा कि तमाम सांस्कृतिक भिन्नताओं के बावजूद भारत एक है। आज नए संसद भवन के उद्घाटन में हिस्सा न लेकर कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। वे सत्ता केंद्रित राजनीति की जिस परंपरा पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही हैं, उसका किसी भी स्थिति में समर्थन नहीं किया जा सकता। भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन एक राष्ट्रीय गरिमा का का अवसर है। यह राष्ट्रीय गरिमा का अवसर है। यह देश की पहली इमारत है जिसे मुगलों या अंग्रेजों ने नहीं देश के नागरिकों ने बनवाया है। इस पर हम सभी को गर्व होना चाहिए। लेकिन इसमें भी विपक्षी दलों ने एक पेंच निकाल लिया कि नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से क्यों नहीं कराया जा रहा। इसी आधार पर कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने आज होने वाले उद्गाटन समारोह में हिस्सा नहीं लिया है।

राष्ट्रीय गौरव का विषय है नई संसद

नया संसद भवन आजादी के बाद बनी पहली राष्ट्रीय महत्व की इमारत है। विपक्षी दलों को इस इमारत के उद्घाटन में हिस्सा लेना चाहिए था, ताकि लोगों के बीच संदेश जाता कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर पक्ष और विपक्ष के राजनीतिक दल एक हैं। यकीन जानिए, इससे उनका कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि देशवासियों का भरोसा कायम होता कि वैचारिक रूप से भले ही विपक्षी दल अलग हों, लेकिन जहां तक राष्ट्रीय महत्व की बात है, वे सत्ता के साथ आने में संकोच नहीं करेंगे। अब उन्हें विचार करना चाहिए कि विपक्षी दलों ने आखिर एकतरफा तरीके से कैसे तय कर लिया कि इस कार्यक्रम का उद्घाटन किससे कराया जाना चाहिए? बेशक राष्ट्रपति संवैधानिक पद है और अगर द्रौपदी मुर्मू लोकतंत्र के इस मंदिर का उद्घाटन करतीं तो इसमें कोई गलत बात नहीं थी, लेकिन अगर ''पूर्व परंपरा'' का निर्वहन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस इमारत का उद्घाटन करते हैं तो क्या देश की विपक्षी पार्टियों को इसका विरोध करना चाहिए।

इस पर गौर करे कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल

आशा है कांग्रेस को याद होगा लार्ड माउन्टबैटन ने 1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को राजदंड सौंपा था। उस समय किसी ने डा. राजेंद्र प्रसाद का नाम नहीं लिया था। राजदंड का मतलब है देश को नेतृत्व देने का अधिकार और अगर प्रधानमंत्री होने के नाते आज के समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे लोकसभा में स्थापित करते हैं तो इसमें गलत क्या है? देश के 11 राज्य सरकारों को नियंत्रित करने वाली 19 विपक्षी पार्टियों के आज के कार्यक्रम के बरिष्कार के निर्णय को किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। विपक्षी दलों के सामने आज यह साबित करने का अवसर था कि वे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर वे केंद्रीय नेतृत्व के साथ आने में संकोच नहीं करेंगी। ऐसा करने से निश्चित ही देशवासियों का राजनीति, राजनेताओं और क्षेत्रीय दलों पर भरोसा कायम होता, जोकि दुर्भाग्य से आज किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिकता नहीं रह गया है।

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