राज एक्सप्रेस। आज भारत के वर्तमान और 30वें विदेश मंत्री एस.जयशंकर का 68वां जन्मदिन मना रहे है। पीएम मोदी समेत कई नेताओं ने दी उनको बधाई और आज वे इंदौर में भारतीय प्रवासी दिवस के समारोह में शिरकत कर रहे हैं। 38 वर्षों से भारत की सिविल सर्वेंट के तौर पर सेवा कर रहे है। एस.जयशंकर को 2019 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
नई दिल्ली में हुआ जन्म
डॉ.सुब्रमण्यम जयशंकर का जन्म नई दिल्ली में 1955 में हुआ था। जयशंकर के पिता का नाम के. सुभ्रमण्यम और माता का नाम सुलोचना जयशंकर था। जयशंकर के पिता व्यापक रूप से सम्मानित रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ थे, जिन्हें भारत के परमाणु सिद्धांत के वास्तुकार के रूप में भी जाना जाता था। 2011 में उनके पिता का निधन और 2020 में उनकी मां का निधन हो गया। विदेश मंत्री जयशंकर की पत्नी का नाम क्योकों सोमेकावा है और वह एक जापानी महिला हैं। क्योको और जयशंकर का जन्म एक ही दिन पड़ता हैं। जयशंकर और क्योको के 3 बच्चे है जिनका नाम अर्जुन, ध्रुवा और मेधा हैं।
JNU से की पीएचडी
जयशंकर ने अपनी स्कूली शिक्षा द एयर फ़ोर्स स्कूल, नई दिल्ली से पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से रसायन विज्ञान में स्नातक हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए और एम.फिल किया है और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की है,उन्होंने परमाणु कूटनीति में विशेषज्ञता हासिल की है।
1977 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल हुए
वह 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए। उन्हें आईएफएस रहते हुए 38 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है, जिसमें वह अपने राजनयिक करियर में सिंगापुर में उच्चायुक्त (2007-09) और चेक रिपब्लिक (2001-04) ,चीन (2009-2013) और अमेरिका (2014-2015) में भारत के राजदूत के तौर पर सेवा की। जयशंकर ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दूसरे पीएम मोदी मंत्रालय में विदेश मंत्री
रिटायरमेंट के बाद जयशंकर ग्लोबल कॉर्पोरेट अफेयर्स के अध्यक्ष के रूप में टाटा संस में शामिल हुए। 30 मई 2019 को जयशंकर ने दूसरे मोदी मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली और उन्हे विदेश मंत्री बनाया गया। जयशंकर कैबिनेट मंत्री के रूप में विदेश मंत्रालय का नेतृत्व करने वाले पहले पूर्व विदेश सचिव हैं।
डॉ. एस जयशंकर के पुरस्कार और उपलब्धियां:
भारत और चीन के बीच डोकलाम संकट को समाप्त करने में जयशंकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने दोनों देशों को अरुणाचल प्रदेश में युद्ध के कगार पर ले लिया था।
बीजिंग में अपने कार्यकाल के दौरान, जयशंकर ने भारत को व्यापार, सीमा और सांस्कृतिक संबंधों में चीन के साथ संबंध सुधारने में मदद की।
वह चीन में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले भारतीय राजदूत हैं और उन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक, व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते और अन्य पहलों पर बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर काम किया।
विश्व पटल पर सीधी बात करते जयशंकर
विदेश मंत्री के तौर पर जयशंकर हमेशा निडरता से विश्वपटल पर भारत का पक्ष रखते हुए नज़र आते हैं। उन्होंने हाल ही में अभी अपने यूरोप के दौरे में आतंकवाद और पाकिस्तान को लेकर अपना रुख पूरे तरीके से साफ किया और पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताया, वहीं वे कभी भी यूरोपी देश और अमेरिका पर तंज कसने से नहीं घबराते हैं। उन्होंने कई बार अंतराष्ट्रीय मंच से अमेरिका और यूरोपी देश की दोहरी मानसिकता पर और उनकी युद्ध नीतियों पर कड़े सवाल किए हैं।
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