मंदी के दौर में भी भारतीय दवा उद्योग के फायदे में रहने की उम्मीद
मंदी के दौर में भी भारतीय दवा उद्योग के फायदे में रहने की उम्मीद Rishabh Jat
भारत

मंदी के दौर में भी फायदेमंद रह सकता है-भारतीय दवा उद्योग

Author : प्रज्ञा

राज एक्सप्रेस। इस साल भारतीय दवा उद्योग की शुरूआत बेहतर नहीं रही। नियमन और मूल्य निर्धारण के चलते इस क्षेत्र में अस्थिरता बनी रही।

निफ्टी (Nifty), फार्मा और बीएसई (BSE) हेल्थकेयर इंडेक्स ने भी नकारात्मक रिटर्न्स दिए। छह सितम्बर 2019 को दोनों में क्रमशः सात और नौ प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

Money Control वेबसाइट के मुताबिक, इंडिया निवेश के रिटेल रिसर्च हैड धर्मेश कांत का कहना है कि, "ज़्यादातर दवा कंपनियां वापस पटरी पर आ चुकी हैं। उनके घरेलू और विदेशी पोर्टफोलियो एक बार फिर रणनीतिक रूप से संतुलित हैं। हम ऐसा मानते हैं कि वित्त वर्ष 21 में दवा उद्योग के लिए नए युग की शुरूआत होगी। यहां फिर से कम मूल्यांकन और व्यापार का पुनर्निमाण हमारे लिए फायदे की बात है।"

विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि, दवा उद्योग इस मंदी के दौर में फायदा पहुंचाने वाला उद्योग बन सकता है। घरेलू संचालन(Operations) को मजबूत कर और चीन से आने वाले बड़े अवसर का फायदा उठाकर फार्मा कंपनियां ऐसा कर सकती हैं।

अप्रैल-जून के बाद से प्रमुख दवा कंपनियों ने बेहतर कमाई की है। यहां तक कि जुलाई माह में घरेलू बिक्री में इस क्षेत्र ने दो अंकों की बढ़ोत्तरी भी दर्ज की थी।

चीन कैसे साबित होगा मददगार?

चीन के दवा उद्योग में बेहतर गुणवत्ता और नवीन केन्द्रित विकास कार्यक्रमों के चलते कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। हाल के वर्षों में नई दवाओं और क्लीनिकल ट्रायल्स को मिलने वाली मंजूरी से ये बात साफ है।

चीनी दवा उद्योग भारतीय दवा उद्योग से चार गुना बड़ा है और ये मल्टीनेशनल कंपनियों पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

चीन ने एक नया ड्रग अप्रूवल फ्रेमवर्क अपनाया है, जो जनता और चिकित्सकों के विश्वास को बढ़ावा देने पर केंद्रित है ताकि वो विदेशी कंपनियों के बजाय जेनरिक दवाओं पर ज्यादा ध्यान दें।

विश्लेषकों का मानना है कि चीन के इस कदम से भारत को काफी फायदा होगा। भारत में जेनरिक दवाइयों का बड़ा बाज़ार है और ये चीन के साथ व्यापार करने के लिए तैयार हैं। कई कंपनियां इसके लिए पहले से ही चीन से बातचीत कर रही हैं।

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