भोपाल, मध्यप्रदेश। राजधानी का सबसे पॉश इलाका चार इमली और 74 बंगला, यहां मंत्रियों से लेकर आईएएस और आईपीएस रहते हैं। इन व्हीआईपी इलाकों में रोजाना सप्लाई के साथ 2 से 3 घंटे तक पानी मिलता है। लेकिन यही लाईन जब शहर के दूसरे इलाकों में पहुंचती है तो नियमित छोड़िए, रोजाना पानी मिलना मुश्किल है। एक दिन बीच जरूर पानी मिलता है। ऐसे ही शहर के और भी इलाके हैं, जहां एक से दो दिन बाद ही पानी पहुंचता है, उसमें भी सप्लाई का शेड्यूल 45 मिनट से एक घंटा रहता है। शहर की 24 लाख आबादी को नियमित पानी देने के नाम पर 800 करोड़ रूपए अब तक खर्च हो चुके हैं। लेकिन उसके बाद भी लोगों को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा।
दरअसल हाल ही में शहरवासियों ने एक सप्ताह तक पानी की बड़ी परेशानी झेली। शहर के बुजुर्गों की माने तो पूरे 50 साल बाद इस तरह पानी का संकट देखा। नगर निगम के अधिकारियों की मनमर्जी और लापरवाही की वजह से यह संकट खड़ा हुआ। हालांकि अब लोगों को पानी मिलने लगा है। लेकिन जिस तरह निगम अधिकारी छाती पीट-पीटकर बता रहे हैं कि पहले से अधिक मात्रा में लोगों को पानी मिलने लगा है, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि शेड्यूल तक नहीं बदला। जिन इलाकों में दो दिन में पानी आता था, वहां हालात जस की तस हैं।
कोलार-नर्मदा और बड़ा तालाब पर निर्भर शहर :
शहर में नगर निगम के 85 वार्ड हैं। हर वार्ड के लिए अलग-अलग टंकियों से सप्लाई होती है। राजधानी की 24 लाख आबादी को तीन बड़े स्त्रोतों से यह पानी दिया जाता है। कोलार और नर्मदा परियोजना की हिस्सेदारी बराबर है, जबकि बड़ा तालाब और केरवा डेम से भी पानी लिया जाता है। वर्तमान में केरवा का वॉटर लेबल डाउन हो चुका है।
अभी भी पुराने तरीके से ही शहर में वॉटर सप्लाई :
शहर में वॉटर सप्लाई अभी भी पुराने तरीके से ही हो रही है। खास बात यह है कि एक टंकी से सुबह की सप्लाई 2 घंटे रहती है तो वहीं उसी टंकी से शाम के समय 45 मिनट से एक घंटा सप्लाई दूसरे इलाके में हो रही है। कोटरा इलाके में अभी भी कोलार सप्लाई से पर्याप्त पानी नहीं आ रहा।
फैक्ट फाईल :
36 एमएलडी कोलार परियोजना से
22 एमएलडी से अधिक बड़ा तालाब से
36 एमएलडी से अधिक नर्मदा परियोजना से
1.6 एमएलडी केरवा डेम से ले रहे हैं
कुल 95.6 एमएलडी
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