प्रोजेक्ट चंबल से पानी लाना : स्वीकृत हो चुके प्रोजेक्ट में फिर किया बदलाव
प्रोजेक्ट चंबल से पानी लाना : स्वीकृत हो चुके प्रोजेक्ट में फिर किया बदलाव Raj Express
मध्य प्रदेश

प्रोजेक्ट चंबल से पानी लाना : स्वीकृत हो चुके प्रोजेक्ट में फिर किया बदलाव

Author : राज एक्सप्रेस

हाइलाइट्स :

  • 2019 में तत्कालीन निगमायुक्त के निर्देश पर किया गया था बदलाव

  • 24 महीने की जगह 36 महीने में कार्य पूरा करने की रखी थी शर्त

  • प्रथम चरण में 10 प्रतिशत, बाकी तीन चरणों में 30-30 प्रतिशत किया जाना था काम

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। शहर की बढ़ती आबादी को पानी पिलाना नगर निगम के लिए चुनौती बन गया है। कम होती बारिश को देखते हुए चंबल नदी से पानी लाने के प्रस्ताव को स्वीकृत किया गया है। इस प्रोजेक्ट को तीन बाद बदला जा चुका है। हद तो यह है कि स्वीकृत हो चुके प्रोजेक्ट में भी बदलाव किए गए जिससे ग्वालियर को 150 की जगह मात्र 80 एमएलडी पानी प्रतिदिन मिल सकेगा। पहले जो प्रोजेक्ट बनाया गया था उसमें 2050 की आबादी को ध्यान में रखा गया। लेकिन वर्तमान प्रोजेक्ट को 2033 के आबादी को केन्द्र में रखकर बनाया गया है। इसके बाद फिर पानी लाने के लिए हाथ पैर मारने पड़ेंगे।

दरअसल चंबल नदी से पानी लाने की योजना 2017-18 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा सरकार के समय बनाई गई। उस समय अधिकारियों पर चुनाव से पहले टेण्डर कराने का दबाव था और आनन-फानन में टेण्डर अपलोड़ कर दिया गया। लेकिन टेण्डर खुले नहीं। आचार संहिता के चलते टेण्डर पर रोक लगा दी गई। इसके बाद सरकार बदली और कांग्रेस सत्ता में आई। चूंकि सरकार को श्रेय लेना था इसलिए प्रोजेक्ट में बहुत से बदलाव किए गए। तत्कालीन निगमायुक्त विनोद शर्मा ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बदलाव के बाद प्रोजेक्ट स्वीकृत भी कर दिया गया। लेकिन जब तक प्रोजेक्ट फाईनल होकर टेण्डर स्वीकृत होते तब तक सरकार बदल गई। भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही ग्वालियर के साथ मुरैना को भी चंबल का पानी दिलाने को प्राथमिकता दी। यही वजह रही कि पहले जब ग्वालियर को 150 एमएलडी पानी प्रतिदिन देना तय करके प्रस्ताव स्वीकृत किया गया उसे बाद में 140 एमएलडी का कर दिया गया। इसमें भी मुरैना को 60 एमएलडी और ग्वालियर को 80 एमएलडी पानी देने पर सहमति बनी। मुरैना के लिए 214 करोड़ रुपय का टेण्डर भी शासन द्वारा स्वीकृत कर दिया गया है। अभी ग्वालियर के लिए टेण्डर नहीं हो सके हैं।

कांग्रेस शासन काल में इस तरह बनाया गया था प्रस्ताव :

चंबल की तरह अमृत योजना का टेण्डर किया गया था। इसमें भी 6-6 महीने के चार चरण थे और 25-25 प्रतिशत काम पूरा करना था। प्रथम चरण में 25 काम पूरा करना संभव नहीं है। काम शुरू करने से पहले कई परेशानियां आती हैं और डिजाईन में बदलाव भी किए जाते हैं। फिर दोबारा डिजाईन बनवाकर उसे भोपाल भेजा जाता है और वहां से इंजीनियर कॉलेज में डिजाईन पहुंचती है। कॉलेज में डिजाईन स्वीकृत होती है, तब जाकर काम शुरू हो पाता है। इसके अलावा अन्य अड़चनें भी आती हैं। यही वजह रही कि अमृत का काम रफ्तार नहीं पकड़ पाया और ठेकेदारों को नोटिस भी जारी हो गए हैं। इस स्थिति को समझते हुए टेण्डर में बदलाव किया गया है।

कांग्रेस शासन काल में इस तरह किया गया था बदलाव :

  • टेण्डर में काम करने का समय 24 से बढ़ाकर 36 महीने किया गया है।

  • चंबल से पानी लाने में अतिक्रमण हटाने में भी समय लगेगा।

  • वन विभाग सहित अन्य विभागों से अनुमति भी लेनी होगी।

  • हाईवे के नीचे से पाईप लाईन निकालने के लिए भी स्वीकृति ली जाती है।

  • रेलवे लाईन के नीचे भी खुदाई करने के लिए दिल्ली से स्वीकृति लेनी होती है।

  • साईड क्लीयर करने में बहुत समय लगता है।

इस तरह मिलना था पैसा :

चंबल प्रोजेक्ट से पानी लाने का कार्य 398.46 करोड़ है और 298.84 करोड़ रुपये कर्ज लिया जाएगा। बाकी पैसा नगर निगम वहन करेगी।

  • 2018-19 में 32.83 लाख रुपए का काम होता, लेकिन राशि 24.62 करोड़ मिलती।

  • 2019-20 में 204.31 करोड़ का काम होता और पैसा 153.23 करोड़ मिलता।

  • 2020-21 में 161.32 करोड़ रुपए का काम किया जाता और पैसा 120.99 करोड़ मिलता।

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