भिलत देव का भव्य मंदिर और उसमे स्थापित उनकी मूर्ति
भिलत देव का भव्य मंदिर और उसमे स्थापित उनकी मूर्ति Raj Express
मध्य प्रदेश

बड़वानी : शिव कृपा से यशस्वी कीर्तिमान शिवप्रसाद पूज्य भिलट देव का पुण्य अवतरण हुआ

Author : राज एक्सप्रेस

नागलवाड़ी, मध्य प्रदेश। श्री भिलट देव की महिमा परम पूज्य भिलट देव की पुण्य अवतरण कथा के बारे में कहा जाता है कि विक्रम संवत 1220 में इनका प्राकट्य मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम रोलगांव में हुआ था। इनके पिता श्री का नाम राणा रेलण एवं ममतामई माता जी का नाम मैदा बाई था।

निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी की तरह ही आप गवली परिवार में गोपालन कर जीवन-यापन करते थे। आपका परिवार सुख-समृद्धि होते हुए भी संतान के नहीं होने से सूना-सूना रहता था। आपके माता-पिता सच्चे शिव भक्त थे, आस्थावान दंपत्ति की भक्ति साधना से पसन्न होकर एक दिन शिव जी ने दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा, निसंतान राणा दंपत्ति की आंखें झर-झर झरने लगी। भगवान से कहा आप सर्व ज्ञाता हो हमारे निसंतान होने के कलंक को गंगाधर मां गंगा की धार से धो दीजिए, तब शिवजी बोले हे भक्त युगल आपकी किस्मत में संतान का सुख तो नहीं है, लेकिन मेरे वरदान के फल स्वरूप एक तेजस्वी बालक का जन्म होगा।

लेकिन वह आपके पास जब तक रहेगा तब तक मैं चाहूंगा। कल्याणकारी शिव जी का वचन कालांतर में फलित हुआ। शिव कृपा से यशस्वी कीर्तिमान शिवप्रसाद पूज्य भिलट देव का पुण्य अवतरण हुआ।

राणा रेलर्न और पत्नि संतान सुख भोगने लगे समय चक्र अनवरत चलता रहा। संयोग से एक दिन भगवान शिव शंकर साधू वेश बनाकर राणा दंपत्ति की परीक्षा लेने आए तब अपने साथ बालक रूपी भिलट देव को उठाकर अपने साथ चौरागढ़ धाम ले गए। खाली पलने में एक नाग छोड़ गए इधर बालक को न पाकर दोनों व्याकुल भटकने लगे। तब आकाशवाणी के माध्यम से दयालु शिव जी ने कहा बालक आपको नहीं मिल पाएगा, लेकिन यह नाग देवता आपकी सुरक्षा में रहेंगे। आज से आपका यह सुपुत्र नागौर मानव रूप में सर्वत्र पूजित होगा। इधर चौरागढ़ धाम में जगत पिता शंकर एवं जगत माता पार्वती ने बालक को तंत्र-मंत्र एवं जादू टोने की शिक्षा देकर महिमावंत कर दिया।

कहा जाता है भिलट देव का जन्म समाज विरोधी तांत्रिक शक्तियों के विनाश के लिए हुआ था। उस समय समूचे भारत वर्ष में तंत्र बाद अपने चरम पर था माता शिव गोरा से शिक्षित दिक्षित होकर भिलट देव ने बंगाल जाने की सोची तब बाबा भोलेनाथ एवं पार्वती जी ने भैरव जी को साथ ले जाने को कहा, तब दोनों भाई भिलट एवं भैरव दोनों बंगाल का काला जादू देखने वहां पहुंचे, क्योंकि उस समय बंगाल में तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग अधिक होता था, अनेक तांत्रिकों का विनाश करते हुए भिलट देव बंगाल के काहुर नामक क्षेत्र में पहुंचे, वहां जाकर विख्यात तांत्रिक गंगा तेलन मियां, लाल फकीर, लुनिया चमार, कपूरिया धोबी, जैसे अनेक तांत्रिकों का विनाश किया एवं वहां के वर्तमान राजा गंधी की कन्या जिसका नाम राजल था। उसके साथ भीलट देव जी का विवाह सम्पन्न हुआ।

बंगाल विजय प्राप्त कर जब भिलट देव चौरागढ़ आए तब भिलट देव की सफलता से प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा तुम्हारे अवतरण को लेकर मेरा जो उद्देश्य था वह पूर्ण हुआ, वत्स अब तुम जनकल्याण और दुखियों की पीड़ा हरने पश्चिम निमाड़ मे जाकर राज करो। भिलट देव वहां से रवाना हुए जहां-जहां रुकते गए वहां - वहां उनके स्थान बनते गए एवं जिस स्थान पर रुक कर बाबा जी ने अपना कर्म किया वह स्थान भिलट देव एवं नाग देवता के कारण ग्राम का नाम नागलवाड़ी पड़ा।

यह बाबा भिलट देव की कर्मभूमि है एवं यहीं से 7 किलोमीटर दूर सतपुड़ा अंचल के शिखर पर बाबा जी ने तप किया एवं यहीं पर बाबा जी ने समाधि ली, इसलिए यह स्थान आज भिलट देव की तपोभूमि समाधि स्थल के नाम से जाना जाता है।

यहां आए प्रत्येक भक्त की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है, विशेषकर निसंतान दंपति की मनोकामना बाबाजी शीघ्र पूर्ण करते हैं। लगभग 200 वर्ष पूर्व की घटना है एक किन्नर ने बाबाजी से जि़द की आप महिलाओं को संतान देते हो, मुझ जैसे किन्नर को संतान दोगे तो मानूंगा, बाबाजी के आशीर्वाद से उस किन्नर को भी गर्भ रहा अंत में उसकी मृत्यु हो गई।

पूरे वर्ष बाबा जी के यहां भंडारा का आयोजन होता है :

तब से आज तक कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में रात्रि विश्राम नहीं करता है यह प्रमाणित है श्रावण माह की नाग पंचमी पर बाबाजी का भव्य मेला लगता है एवं बाबाजी के भक्तों के जन सहयोग से पूरे वर्ष बाबा जी के यहां भंडारा का आयोजन होता है। सभी के जन सहयोग से भिलट देव सेवा समिति भिलट देव कर्म भूमि एवं तपोभूमि समाधि स्थल पर होने वाले कार्यों का निर्वाह करती है।

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