मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर चर्चा जारी
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर चर्चा जारी Sudha Choubey - RE
मध्य प्रदेश

कांग्रेस के कई नेता म.प्र. अध्यक्ष के नामों पर कर रहें तर्क-वितर्क

Author : Sushil Dev

राज एक्सप्रेस। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के आठ महीने बाद भी मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष अब तक नहीं चुना गया है। केंद्रीय संगठन में भी इसे लेकर राज्य के शीर्ष नेताओं की कई दौर की वार्ता हो चुकी है। जैसे ही कोई नाम आता है, उस पर सहज सहमति नहीं बन पाती। कहने को तो पार्टी के अंदर सब ठीक-ठाक है, एकता है, सर्वसम्मति है। मगर जब नेता चुनने की बात होती है, तो यहां 'तेरा-मेरा' की लड़ाई फिर शुरू हो जाती है। इसमें सवर्ण और सामथ्र्यवान कुनबा तो आपस में लड़ भी लेते हैं, लेकिन वह जो पिछडे हैं, जो हाशिए पर जा चुके हैं या जिन्होंने पार्टी के लिए अपनी जिंदगी लगा दी है, अपनी आवाज भी नहीं उठा पाते। कहते हैं कि, कांग्रेस को रसूखदारों से उबरना चाहिए। पिछड़ों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। वह भी संगठन को बखूबी चला और निभा सकते हैं।

क्या है आम तर्क-वितर्क :

दिग्विजय सिंह के बाद भाजपा जब सत्ता में आईं थी, तो उमा भारती को लेकर आईं। तब भाजपा को यह पता था कि, किसी पिछड़े वर्ग की नेता को लाना प्रदेश में कितना फलदायी हो सकता है। उसके बाद पिछ़डे वर्ग से ही बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चैहान को मुख्यमंत्री बनाया गया। शिवराज ने लंबे समय तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई। केंद्र में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह भी पिछडे वर्ग से ही आते हैं, तो यह एक तरह का नजीर बनता दिखाई देता है कि, कांग्रेस को भी अपनी रणनीति में बदलाव कर लेना चाहिए। उसे कुछ खास लोगों (नेताओं) के बजाय आम लोगों के हाथों नेतृत्व देना चाहिए। बहुत लोग हैं, जो अवसर न मिल पाने की वजह से ठगा सा महसूस करते हैं और वक्त की नजाकत देखकर दूसरी पार्टी का हाथ थाम लेते हैं।

घोषणा कभी भी, उपाय जारी :

बहरहाल, प्रदेश अध्यक्ष को लेकर दिल्ली में राज्य और केंद्र के नेताओं के साथ बहस-मुबाहिसें जारी हैं। स्वयं मुख्यमंत्री लगातार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के संपर्क में है। नए अध्यक्ष के तौर पर बाला बच्चन का नाम सबसे आगे चलने की सूचना है, वह आदिवासी बैकग्राउंड से आते हैं। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते हैं। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के उम्मीदवार खुलकर सामने नहीं आया है, जबकि दिग्विजय सिंह भी इस मामले में अभी तक मजबूत दावेदारी पेश नहीं कर सके हैं। ऐसे में कई नामों की प्रतीक्षा कतार है, जैसे- अजय सिंह, सुरेश पचैरी, उमंग सिंगार, राजमणि पटेल, मोहन डाकुनिया आदि। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी किसी जमींनी कार्यकर्ताओं को मौका देगी क्योंकि जिस भाजपा ने हमें सत्ता से हटाया था उससे लड़ने के लिए वही कामयाब हो सकते हैं। डाकुनिया ने कहा कि, म.प्र का पिछड़ा वर्ग 50 फीसदी है, जो बहुत ही आशा से देख रहा है कि, अलाकमान इसे गंभीरता से लेगा और सड़क की लडाई में खुलकर उतरते हुए भाजपा को मात देगा।

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