डकैत का आत्मसमर्पण
डकैत का आत्मसमर्पण  Rajexpress
मध्य प्रदेश

डकैत का आत्मसमर्पण: IPS अधिकारी ने अपना बच्चा गोद में रख कर कहा "विश्वास नहीं हो तो यह आपके पास रहेगा गिरवी"

gurjeet kaur

राज एक्सप्रेस। एक IPS अधिकारी अपने बच्चे को महिला डाकू की गोद में रख कर उनसे कहता है कि अगर आपको विश्वास ना हो तो मेरे बेटे को गिरवी रख लीजिये। इस अधिकारी को  मध्यप्रदेश सरकार ने एंटी डकैत ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी थी। अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए यह अधिकारी इस हद तक चला गया कि उसने इस ऑपरेशन में परिवार के सदस्य यानी पत्नी और बच्चे तक को शामिल कर लिया। अपने अभियान में सफल होने के बाद इस अधिकारी ने अपनी पीठ थपथपाने की बजाए अपनी सफलता का श्रेय सरकार को दिया। यह उसके कद का बड़प्पन था। आपको बता दें कि यह आईपीएस अधिकारी भिंड जिले के उस समय के पुलिस अधीक्षक और एंटी डकैत ऑपरेशन के मुखिया राजेंद्र चतुर्वेदी थे।

कहानी शुरू होती है राजेंद्र चतुर्वेदी को सबसे खूंखार महिला डाकू फूलन देवी के आत्मसमर्पण कराने के टास्क से ... । यह टास्क उतना ही मुश्किल था जितना बीहड़ों में पहुंचना लेकिन आईपीएस राजेंद्र चतुर्वेदी भी अपनी धुन के पक्के थे। फूलन देवी का व्यक्तिव ऐसा नहीं था कि कोई भी उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए राजी कर ले। आपीएस चतुर्वेदी को भी इसके लिए कम पापड नहीं बेलने पड़े। वह एक दिन अपनी मोटरसायकल उठाकर फूलन देवी के ठिकाने की तरफ चल पड़े। ...आइये सिलसिलेवार जानते है आईपीएस राजेंद्र चतुर्वेदी ने कैसे खूंखार महिला डकैत फूलन देवी का आत्म समर्पण कराया।

बीहड़ चम्बल मध्यप्रदेश

फूलन देवी को पकड़ने में 2 राज्यों की लगी थी पुलिस  :

बेहमई नरसंहार के बाद बाद फूलन का नाम दिल्ली की सड़कों पर सुनायी देने लगा। मामला इतना बढ़ गया की 2 राज्यों की पुलिस  को फूलन को ढूंढ़ने के लिए लगाया गया। फूलन का गैंग मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में सक्रिय था। इस कारण दिल्ली से लगातार दोनों राज्यों पर दबाव बनाया जा रहा था। इस काम के लिए मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने  एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी को चुना। चतुर्वेदी ने इसके पहले भी डाकू मलखान सिंह को आत्मसमर्पण के लिए मनाया था।  इसके चलते इस ऑपरेशन के लिए चतुर्वेदी सबसे अच्छे विकल्प थे।

फूलन का गैंग मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में था सक्रिय

राजेंद्र चतुर्वेदी ने किस तरह की शुरुआत :

बहुत कोशिशों के बाद राजेंद्र चतुर्वेदी की मुलाकात फूलन की गैंग के एक सदस्य से होती है। राजेंद्र ने अपना आधा सफर मोटरसायकल से तय किया , कुछ दूर जाकर उनकी मोटरसायकल खराब हो जाती है बिना समय गवाए राजेंद्र ने बीहड़ों से फूलन के ठिकाने तक का सफर पैदल तय किया। राजेन्द्र एक बहुत बड़ा जोखिम उठा रहे थे। फूलन से मिलने पर उन्होंने आत्मसमर्पण की बात की जिसे सुनते ही फूलन राजेंद्र पर चिल्ला उठीं और उन्हें जान से मारने की धमकी तक दे डाली। मामला बढ़ता देख  गैंग के अन्य सदस्यों  ने फुलन देवी को शांत किया और  बीचबचाव किया।राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन को उनकी बहन (फूलन की बहन) की आवाज़ सुनायी और माँ की कुछ तस्वीरें भी दिखाईं जिससे उन्हें यकीन हो जाये। बावजूद इसके फूलन बहुत समय तक आत्मसमर्पण के लिए नहीं मानती हैं।

जब आईपीएस राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन की गोद में रखा अपना बच्चा :

आत्मसमर्पण की लाख कोशिशों के बाद भी जब फूलन को राजेंद्र चतुर्वेदी पर विश्वास नहीं हुआ तब वे अपनी पत्नी और बच्चे समेत फूलन के ठिकाने पर पहुंच गए। राजेंद्र चतुर्वेदी की पत्नी फूलन के लिए श्रृंगार का सामान लेकर आयीं थी जिसे देख फूलन देवी किसी आम महिला की तरह खुश हो गयीं। इस मुलाकात के दौरान राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन को विश्वास दिलाने के लिए अपना बच्चा उनके गोद में रखा और कहा कि अगर आपको विश्वास ना हो तो मेरे बच्चे को आप गिरवी रख लीजिये। इसके बाद फूलन देवी को राजेंद्र चतुर्वेदी पर विश्वास हुआ और उन्होंने आत्मसमर्पण के लिए हामी भरी।

आत्मसमर्पण से पहले जानिये फूलन से डाकू फूलन बनाने तक तक का सफर :

फूलन देवी का जन्म 1963 में उत्तरप्रदेश के  जालौन में एक छोटे से गांव पुरवा में हुआ था। फूलन देवी तथाकथित पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखती थी। जमीनी विवाद के चलते फूलन ने अपने ही चचेरे भाई पर ईंट से वार कर दिया था। फूलन के इस स्वभाव के चलते उनकी शादी उनसे उम्र में 30 साल बड़े पुत्तीलाल मल्लाह से करा दी गई थी, जो पास के गांव में ही रहता था। मायके वालों ने फूलन को जल्द ही ससुराल भेज दिया था। ससुराल में फूलन को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। एक बच्ची के लिए ये सब कितना पीड़ादायक हो सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

फूलन देवी का जन्म 1963 में उत्तरप्रदेश के गांव पुरवा में हुआ

यहाँ से शुरू होता है संघर्षों का सिलसिला :

ससुराल से प्रताड़ना झेलने के बाद फूलन मदद की उम्मीद से अपने मायके वापस लौटती है पर वहां भी उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। उल्टा यहां फूलन को झूठे इल्जाम लगाकर जेल भेज दिया जाता है। जैसे तैसे फूलन जेल से बाहर आयीं। कुछ समय बाद फूलन देवी का उठना - बैठना डाकुओं की गैंग के लोगों के साथ होने लगा। देखते ही देखते फूलन, डाकू गुर्जर सिंह की गैंग में शामिल हो गयी।

गैंग रेप का हुई शिकार :

फूलन अभी अपनी पिछली जिंदगी की कड़वी यादों से पूरी तरह बाहर भी नहीं आ पायीं थी कि उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी किस्मत पूरी तरह बदल कर रख दी। फूलन के गैंग ज्वाइन करने के बाद से ही गैंग के सरदार डाकू गुर्जर सिंह की फूलन पर गलत नज़र थी। उसने कई बार फूलन से जबरजस्ती करने की कोशिश भी की। गैंग के अन्य सदस्य विक्रम मल्लाह ने डाकू गुर्जर सिंह की हत्या कर दी और खुद गैंग का सरदार बन गया। इसके बाद फूलन और विक्रम गैंग के विस्तार कार्य में लग गए। डाकू गुर्जर सिंह की हत्या का बदला लेने के लिए दूसरी गैंग के 2 डाकू राम और लाला राम ठाकुर विक्रम मल्लाह की हत्या कर देते हैं।फूलन से बदला लेने के लिए ये लोग फूलन का अपहरण कर बेहमई गाँव ले आते हैं। बेहमई गाँव में अगले तीन हफ़्तों तक फूलन का सामूहिक बलात्कार किया जाता है।

बेहमई गाँव से पैदा हुई बैंडिड क्वीन फूलन देवी :

किसी व्यक्ति के जीवन की प्रारंभिक परिस्थितियां उसके चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाती हैं। बचपन में ससुराल में हुई बदसलूकी और बेहमई गाँव में हुई हैवानियत ने डाकू फूलन देवी को जन्म दिया। बेहमई गाँव से फूलन के साथी उसे जैसे तैसे बचाकर लाये। बेहमई गाँव की घटना के बाद फूलन ने खुद का गैंग बनाया। इसके बाद आयी वो तारीख जिसने फूलन देवी को पूरे देश में बैंडिड क्वीन के नाम से मशहूर कर दिया।

क्या हुआ था 14 फरवरी 1981, को  :

तारीख थी 14 फरवरी साल 1981, पुलिस की वर्दी पहने फूलन देवी जयकारे लगाते हुए अपने साथियों के साथ बेहमई गाँव पहुंची फूलन की आँखों में बदले की ज्वाला जल रही थी। फूलन और उसके साथियों ने पूरे गाँव को चारों और से घेर लिया। उस दिन गाँव में शादी का आयोजन था। फूलन ने लालाराम ठाकुर के बारे में खूब पूछताछ की। कोई पुख्ता जानकारी ना मिलने पर फूलन ने उस गाँव के 22 लोगों को एक कतार में खड़ा किया और गोलियों से भून डाला। ये सभी लोग ठाकुर जाति से ताल्लुक रखते थे। ये घटना बेहमई नरसंहार के नाम से अगले दिन पूरे देश में फ़ैल गयी।

अब जानिये कब और कैसे हुआ आत्मसमर्पण : 12 फरवरी 1983 ये तारीख कोई आम तारीख नहीं थी। बेहमई के बाद पूरे देश में जिस बैंडिड क्वीन की चर्चा थी वो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की उपस्थिति में आत्मसमर्पण करने वाली थी। ये आत्मसमर्पण बिना शर्त के नहीं था। फूलन ने सरकार के समक्ष कुछ शर्तें रखी थीं जिनमें शामिल था -

  • परिवार समेत उनके बकरी और गाय को सुरक्षित मध्यप्रदेश लाया जाएगा।

  • आत्मसमर्पण करने  वाले किसी भी सदस्य को फांसी की सजा नहीं दी जाएगी

  • फूलन के भाई को सरकारी नौकरी दी जाए

सरकार ने फूलन की सभी मांगों को मान लिया। इसके बाद मध्यप्रदेश में आत्मसमर्पण होना था वहां सुबह से ही मीडिया की भीड़ थी। उस दिन वहां 10 हज़ार 3 सौ पुलिस कर्मी मौजूद थे। फूलन देवी ने महात्मा गांधी और माँ दुर्गा के समक्ष अपने हथियार रख दिए। फूलन पर हत्या के 22 मामले,  लूटपाट के 30 और अपहरण के 18 मुकदमें दर्ज थे। फूलन देवी के अगले 11 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजरे। इसके बाद आईपीएस राजेंद्र चतुर्वेदी सरकार के बेहद करीब रहे और समय-समय पर उन्हें सरकार ने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। 

बैंडिड क्वीन फूलन का आत्मसमर्पण
फूलन देवी का जेल से सांसद तक का सफर

जेल से सांसद तक का सफर :

फूलन देवी ने अपने जीवन का बहुत लम्बा समय बीहड़ों में गुजरा था । 11 साल की सजा काटने के बाद उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फूलन पर लगे  सारे इल्जाम वापस ले लिए। साल 1994 में जेल से रिहा होने के बाद फूलन देवी ने अपने जीवन की नयी शुरुआत की।  फूलन देवी ने जेल से निकलकर बौद्ध धर्म अपना लिया और उमेद सिंह से शादी कर ली। इसके बाद फूलन ने राजनीति में हाथ आजमाया। फूलन ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। साल 1996 में फूलन देवी उत्तरप्रदेश की मिर्ज़ापुर सीट से सांसद बनीं। 1998 के चुनाव में वो हार गयीं थी। परन्तु साल 1999 में फिर से मिर्ज़ापुर सीट से सांसद बनकर लौटीं ।

फूलन देवी और उमेद सिंह

फूलन देवी की ह्त्या :

तारीख 25 जुलाई साल 2001 को 1 बजकर 30 मिनट पर शेर सिंह राणा नाम के एक युवक ने फूलन देवी  को उनके दिल्ली आवास के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी। दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में फूलन देवी को मृत घोषित कर दिया गया। पुलिस द्वारा मामले की जाँच किये जाने पर शेर सिंह राणा ने बताया की उसने ये हत्या बेहमई नरसंहार का बदला लेने के लिए की थी। इसके साथ ही फूलन देवी जिसने लंबे समय तक चम्बल के बीहड़ों में राज़ किया और 3 बार सांसद भी निर्वाचित हुईं, उनकी जीवनलीला समाप्त हो गई।

फूलन देवी

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