डाकू कुसमा नाइन
डाकू कुसमा नाइन  Raj Express
मध्य प्रदेश

महिला डाकू जिसने रिटायर्ड ADG का अपहरण कर मारी गोली, 15 लोगों को एक साथ मौत के घाट उतारा गांव को लगा दी आग

gurjeet kaur

Stories of Female Dacoit: साल था, 1984 पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या की चर्चा गरम थी। ठीक इसी समय दिल्ली से लगभग 869 किलोमीटर दूर बीहड़ के एक गांव मईअस्ता में 'मल्लाह' जाति से सम्भन्ध रखने वाले 15 लोगों की निर्मम हत्या  कर दी जाती है , इतना ही नहीं इन लोगों के घर को भी जला दिया गया था। इस घटना की चर्चा मईअस्ता नरसंहार के रूप में पूरे देश में होने लगती है। इस हत्याकाण्ड को किसने अंजाम दिया यह जानने से पहले उस कहानी को जानिए जिसकी वजह से यह हत्याकाण्ड हुआ।

कहानी शुरू होती है तब, जब बीहड़ों में 2 महिलाएं आमने -सामने आती हैं। पहली मुलाकात में ही इन दोनों महिलाओं के बीच तनाव शुरू हो गया था। इसके परिणाम स्वरूप बीहड़ों में दुश्मनी के नए किस्से शुरू हो गए। दुश्मनी भी ऐसी वैसी नहीं, ये दुश्मनी थी उस समय की सबसे खतरनाक महिला डाकू फूलन देवी और कुसुमा नाइन के बीच। कहानी आगे बढ़े उससे पहले ये जानना जरूरी है की कौन थी कुसुमा नाइन जिसने बीहडों की बैंडिड क्वीन फूलन देवी से दुश्मनी मोल ली थी।

डाकू कुसमा नाइन

कौन थी कुसुमा नाइन:

साल 1964 में उत्तरप्रदेश के जालौन जिले में टिकरी गांव के प्रधान के घर एक बेटी ने जन्म लिया। ये अपने परिवार की एकलौती बेटी थी। बच्ची का नाम परिवार वालों ने कुसुमा रखा। कुसुमा का स्वभाव बचपन से ही गुस्सैल और अड़ियल किस्म का था। टिकरी गांव प्रधान की बेटी कुसुमा आगे चलकर बीहड़ों की सबसे खूंखार डाकू बनी।

घर छोड़ कर भाग गई थी कुसुमा:

कुसुमा स्कूल में थी। उस समय उनकी उम्र करीब 13-14 साल रही होगी उनकी जिंदगी में एंट्री हुई, माधव मल्लाह की। माधव मल्लाह ही वो कड़ी है जो आगे चलकर कुसुमा को बीहड़ों से जोड़ने का काम करता है। स्कूल में पढ़ते हुए ही कुसुमा को माधव से प्यार हो गया। कुसुमा अपना घर, परिवार, पढ़ाई छोड़ कर माधव के साथ दिल्ली भाग गई। कुसुमा के पिता गांव के प्रधान थे। पुलिस के साथ उनकी अच्छी खासी पहचान थी। प्रधान ने पुलिस में शिकायत की तो पुलिस ने कुसुमा को ढूंढ़ना शुरू कर दिया। पुलिस ने माधव और कुसुमा को दिल्ली में पकड़ लिया। इसके बाद कुसुमा को सही सलामत माता-पिता के सुपुर्द कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर पुलिस ने माधव पर डकैती का केस लगाकर उसे जेल भेज दिया। इसके बाद कुछ समय के लिए माधव और कुसुमा के रास्ते अलग-अलग हो गये।

बदनामी के डर से कुसुमा की शादी करा दी गई :

गांव का प्रधान होने के चलते कुसुमा के पिता को बदनामी का डर था। इसके कारण पिता ने कुसुमा की शादी पड़ोस के गांव करेली में रहने वाले केदार नाई नाम के व्यक्ति से करवा दी। कुसुमा को ससुराल भेज दिया गया। दूसरी तरफ माधव मल्लाह की कहानी भी आगे बढ़ रही थी। जेल से छूटकर माधव ने डाकुओं की गैंग ज्वाइन कर ली थी। माधव जिस गैंग में शामिल हुआ वो कोई आम गैंग नहीं थी। ये गैंग थी बीहड़ों की बैंडिड क्वीन कही जाने वाली फूलन देवी की। फूलन की गैंग में अधिकतर मल्लाह जाति के लोग थे इसलिए माधव मल्लाह फूलन के करीबी विक्रम मल्लाह की मदद से गैंग का हिस्सा बन गया।

कुसुमा का अपहरण :

 साल,1977 माधव ने अब गैंग में अच्छी जगह बना ली थी। इसके बाद माधव एक बार फिर कुसुमा की जिंदगी में लौटा। माधव अपने साथियों के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा, उसके पति केदार और ससुराल वालों से मारपीट की और कुसुमा को अपने साथ बीहड़ों में ले आया।

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अब वो क्षण आ गया था जिसके बाद ये कहानी नया मोड़ लेने वाली थी। बीहड़ों में 2 महिलाएं आमने-सामने थीं...।

माधव, कुसुमा को अपने साथ रहने के लिए बीहड़ों में ले आया था। यहां कुसुमा की मुलाकात माधव की गैंग की प्रमुख डाकू फूलन देवी से हुई। गैंग में हर कोई फूलन की सुनता था। माधव भी फूलन की जी हजूरी किया करता था। इन सब के चलते कुसुमा खुद को उपेक्षित महसूस करने लगी। कुसुमा के अंदर पनप रही उपेक्षा की यह भावना धीरे-धीरे बगावत में बदल रही थी।

कुसुमा ने की बगावत :

फूलन और लालाराम की पुरानी दुश्मनी थी। लालाराम को मारने के लिए फूलन ने कुसुमा को उसके पास भेजा लेकिन बगावत की भावना से भरी कुसुमा ने अपनी ही गैंग को धोखा दे दिया और लालाराम से हाथ मिला लिया। कुसुमा की अब सबसे बड़ी दुश्मन फूलन देवी थी। फूलन से बदला लेने के लिए कुसुमा किसी भी हद तक जा सकती थी। बदले की भावना में वो माधव को भी भुला चुकी थी। लालाराम और फूलन की गैंग के बीच अक्सर मुठभेड़ होती रहती थी। ऐसी ही एक मुठभेड़ में विक्रम और माधव मारे गए। इस घटना के बाद कुसुमा की लालाराम की गैंग में पूछ परख बढ़ गई।

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फिर आई तारीख 14 मई 1981 फूलन देवी ने बेहमई गांव में 22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा कर तब तक गोलियां चलाई जब तक कि एक-एक की मौत नहीं हो गई। पूरे देश में इस नरसंहार की चर्चा थी। फूलन अपना बदला ले चुकी थी पर इस घटना की प्रतिक्रियात्मक घटना होना अभी बाकी थी। इसके लिए लालाराम ने कुसुमा को हर तरह के हथियार चलाना सिखाया। लाला राम के साथ मिलकर उसने अपहरण की कई वारदातों को अंजाम दिया जिनमें से एक अपहरण ‘सीमा परिहार’ का था। यह नाम भी आगे चलकर बीहड़ों में काफी मशहूर हुई। खैर लौटते हैं कुसुमा पर…, अब कुसुमा बेहमई कांड का बदला लेने के लिए तैयार थी और मौके की तलाश में थी।

इसी बीच साल 1982 में राजेंद्र चतुर्वेदी के प्रयासों से फूलन देवी आत्मसमर्पण कर देती है। अब बीहड़ों में एक ही महिला डाकू रह गई थी, कुसुमा नाइन। कुसुमा इतनी बेखौफ हो गयी थी कि पुलिस अधिकारीयों का भी अपहरण करने से पीछे नहीं हटती थी। कुसुमा के स्वभाव में क्रूरता बढ़ती जा रही थी। एक बार वो अपने पहले पति केदार के घर गई और बिना किसी वजह के ही अपने ससुराल वालों को बुरी तरह पीट दिया। इतना ही नहीं कुसुमा ने उत्तरप्रदेश के जालौन जिले में एक महिला को उसके बच्चे समेत जिंदा जला दिया था हालांकि ये क्रूरता की सीमा है पर अभी वो घटना होनी बाकी थी जिसके बाद डाकू कुसुमा नाइन ने क्रूरता की हदों को भी पार कर दिया।

अब इस कहानी में वो घटना होने वाली है जिससे हमने कहानी की शुरुआत की थी...

बेहमई 2.0

साल 1984, गांव मईअस्ता कुसुमा नाइन हथियार लेकर बेहमई नरसंहार का बदला लेने अपने साथियों के साथ वहां पहुंची। उस दिन मईअस्ता गांव में मृत्यु तांडव कर रही थी। फूलन देवी 'मल्लाह' जाति से ताल्लुक रखती थी। उसकी गैंग के अधिकतर लोग भी 'मल्लाह' ही थे। कुसुमा ने मईअस्ता गांव में इन्ही मल्लाह जाति के लोगों को निशाना बनाया। उसने गांव के 15 मल्लाह जाति के लोगों को कतार में खड़ा किया और बेहमई नरसंहार की तरह एक-एक पर तब तक गोलियां चलाईं जब तक उनकी मौत नहीं हो गई। इतना ही नहीं इन लोगों के घर को भी जला दिया गया। कुसुमा ने 2 लोगों की तो ऑंखें तक नोंच ली थी और उन्हें दर्द में जिन्दा छोड़ दिया था। क्रूरता की इस रेस में कुसुमा ने अब फूलन को सच में पीछे छोड़ दिया था।

यमुना-चम्बल की शेरनी :

हालांकि ये कोई ऐसी घटना नहीं है जिसकी प्रशंसा की जाए पर डाकुओं की गैंग में अपनी इस क्रूरता के चलते कुसुमा के साथी उसे यमुना-चम्बल की शेरनी कहने लगे। कुसुमा लालाराम से भी आगे निकल गई थी जिसकी वजह से दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा था। एक दिन लालाराम की कुसुमा से किसी बात को लेकर बहस हो गई तब लालाराम ने कहा कि, मैंने तुझे आसमान तक पहुँचाया है। इसके जवाब में कुसुमा ने कहा कि, अब तुम्हारी इतनी औकात नहीं की आसमान से नीचे ला पाओ। इसके बाद कुसुमा ने लालाराम की गैंग भी छोड़  दी ।

इस कहानी में उस किरदार की एंट्री होने वाली है जिसने कुसुमा को आत्मसमर्पण का रास्ता दिखाया

कुसुमा की मुलाकात रामाश्रय तिवारी उर्फ़ फक्कड़ बाबा से होती है। फक्कड़ बाबा को डाकुओं का गुरु कहा जाता था। कुसुमा लालाराम की गैंग से निकलने के बाद दिशा विहीन थी तो जाकर फक्कड़ बाबा की गैंग में जा मिली। कुसुमा का नाम पहले से ही बीहड़ों में मशहूर था इसके चलते उसने बहुत जल्द फक्कड़ बाबा की गैंग में अपनी अलग जगह बना ली और फक्कड़ बाबा की राइट हैंड बन गई। फक्कड़ बाबा के साथ मिलकर कुसुमा ने कई अपहरण की वारदातों को अंजाम दिया। अपहरण की इन  वारदातों में ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण काफी मशहूर रहा इसके लिए आगे चलकर कुसुमा और फक्कड़ बाबा को सजा भी हुई।

रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण:

कुसुमा की हिम्मत दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी। एक मुठभेड़ में उसने 3 पुलिस कर्मियों  की  ह्त्या कर दी थी।  अब कुसुमा लेटर पैड के माध्यम से  फिरौती की मांग किया करती थी। फिरौती न मिलने पर लाश घर भिजवा देती थी। ऐसा ही एक अपहरण था रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का। साल 1995 दिन 4 जनवरी, कुसुमा और उसके साथियों ने हरदेव आदर्श शर्मा का उस समय अपहरण कर लिया था जब वो एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए जा रहे थे। कुसुमा ने लेटर पैड में लिखकर भेजा, 'अगर पापा को बचाना चाहते हो तो 50 लाख रुपए फिरौती लेकर बीहड़ों में मिलो।' ये काफी बड़ी राशि थी। आदर्श शर्मा के परिवार वालों को पैसों का इंतजाम करने में समय लग रहा था, लेकिन कुसुमा अब और इंतज़ार नहीं कर सकती थी। उसने आदर्श शर्मा को गोली मारकर उनके शव को इटावा शहर के सहसो गांव के पास सड़क पर फेंक दिया।

इस घटना के बाद पुलिस के लिए पानी सिर से ऊपर चला गया था। पुलिस ने स्पेशल टीम बनाकर कुसुमा को बीहड़ों में ढूंढ़ना शुरू कर दिया। कुसुमा पर 35  हज़ार का ईनाम रखा गया था। पुलिस ने कुसुमा और फक्कड़ बाबा को बीहड़ों में खूब ढूंढा लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई। कुसुमा और फक्कड़ बाबा को यह अच्छी तरह पता था कि, अब ज्यादा समय तक बीहड़ों में छुप पाना संभव नहीं है। दोनों ने निर्णय लिया आत्मसमर्पण का।

फक्कड़ बाबा और डाकू कुसमा नाइन

फक्कड़ बाबा अपहरण और डकैती किया करता था लेकिन वक्त के साथ उसका झुकाव आध्यात्म की तरफ हो रहा था। कुसुमा, फक्कड़ बाबा से काफी प्रभावित थी। पहले दोनों ने अपनी गैंग के सदस्यों के साथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया था लेकिन मुख्यमंत्री की व्यस्तता के चलते ये नहीं हो पाया। फिर साल 2004 में दोनों ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले में अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।

कुसमा नाइन और फक्कड़ बाबा

फिलहाल कुसमा नाइन और फक्कड़ बाबा रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा मर्डर केस में जेल में उम्र कैद की सजा काट रहें हैं। कहते हैं जेल में कुसुमा, डकैत से सन्यासन बन चुकी है। बाबा फक्कड़ भी जेल के अन्य कैदियों के बीच प्रवचन दिया करता है। इस तरह बीहड़ों में आतंक की पर्याय बन चुकी कुसुमा नाइन की कहानी का अंत एक डाकू के रूप में सलाखों के पीछे पहुँच कर हो गया और इन्ही सलाखों के पीछे सन्यासी कुसमा का जन्म हुआ।

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