पेयजल संकट
पेयजल संकट RE-Gwalior
मध्य प्रदेश

Gwalior News: पेयजल योजनाओं पर 430 करोड़ खर्च होने के बाद भी जल आपूर्ति टैंकरो के भरोसे

Pradeep Tomar

ग्वालियर। शहर में पेयजल को लेकर कई योजनाओ पर काम हो चुका है ओर इसके चलते कई सौ करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन इसके बाद भी हालत जो थे वहीं बने हुए है ओर पानी के लिए टेंकरो का सहारा ही लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अब पेयजल के लिए अमृत-1 से लेकर अमृत-2 पर करीब 430 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन जब सिर्फ तिघरा डेम पर ही पानी के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है तो फिर अमृत योजना में पानी कहां से आ जाएगा। अब पेयजल योजना पर किए गए खर्च को लेकर कांग्रेस कई तरह के  सवाल उठा रही है।

शहर में हर घर में तीसरे मंजित तक बिना टिल्लू पंप के तिघरा का पानी पहुंचाने के लिए अमृत योजना लागू की गई थी। इस योजना पर काम हुई, लेकिन तीसरी तो छोड़ो पहली मंजिल तक भी पानी नहीं पहुंच रहा है। वैसे योजना शुरू होने से पहले दावा किया गया था कि इस योजना के पूरा होने पर शहर के हर घर में पानी आसानी से पहुंच जाएगा। अब स्थिति यह है कि योजना पूरी भी हो गई लेकिन शहर की पेयजल की समस्या जो थी वैसी है बनी हुई है।

योजना से पहले गर्मी के मौसम में चार माह तक हर वार्ड में पानी पहुंचाने के लिए टेंकरो का सहारा लिया जाता था, लेकिन यह सोचा था कि योजना पूरी होने पर टेंकरो पर होने वाले खर्चे की बचत होगी, लेकिन ऐसा फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है। सूत्रो का कहना है कि इस बार भी गर्मी के मौसम में पौने दो करोड़ खर्च कर टैंकर से पानी पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। अब सवाल यह है कि 430 करोड़ अमृत योजना पर खर्च करने के बाद भी टेंकरो पर करोड़ो की राशि अगर खर्च करना पड़ेगी तो फिर योजना का फायदा क्या...? 

करोड़ों खर्च होने के बाद भी घर में पानी का संकट

शहर में पिछले एक दशक से पीने की पानी की समस्या के निराकरण के लिए कई योजनाओ पर काम किया जा रहा है। अब सवाल यह है कि योजनाओ पर काम तो किया गया और हर सड़क को खोदकर पाइप लाइन तो डाल दी गई, लेकिन पानी कहां से आएंगा इस पर कोई विचार नहीं किया गया, क्योंकि खाली पाइप लाइन डालने मात्र से तो पानी की समस्या हल होने वाली नहीं है। जब शहर की आबादी काफी कम थी ओर स्टेट समय था उस समय से ही तिघरा डेम से पानी की सप्लाई की जा रही है अभी भी उसी पर पानी के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है। शहर में  तिघरा डेम से  90 फीसदी आबादी को पानी की सप्लाई की जाती है। लीकेज होने के कारण साल में तीन माह का पानी तो बर्बाद हो जाता है। गर्मी का असर जब काफी तेज हो जाता है तो एक दिन छोड़कर पानी सप्लाई किया जाता रहा है। तिघरा डेम का निर्माण शहर के लोगों की प्यास बुझाने व आसपास के गांवों में सिंचाई के लिए पानी देने के उद्देश्य से वर्ष 1917 में कराया गया था, लेकिन तिघरा डेम उस समय बीच में ही ठह गया जिस कारण उसका पुन: 1929 में निर्माण कराया गया था तभी से उसी पर पानी के लिए निर्भर रहना पड़ रहा है। शहर में एडीबी योजना पर पैसे खर्च हुए और फिर अमृत योजना पर कुल मिलकर 430 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन पानी के लिए फिर भी टेंकरो का सहारा।

शहर में पानी की किल्लत होने लगी शुरू

शहर में एक भी ऐसा कोई कोना नहीं है जहां पानी की किल्लत नहीं है। डीडी नगर के सामने  आदित्यपुर से लेकर जडेरुआ और मुरार इलाके की अनेक कॉलोनियों और गुढ़ा के आसपास की बस्तियों में पीने के पानी की कोई माकूल व्यवस्था नहीं है। सबसे बड़ी बिडंबना ये है कि इनमें से अनेक इलाकों में अमृत योजना में पानी की लाइने भी डल चुकीं है।  इन इलाकों में लोगों का कहना है कि उन्हें तो अपने पैसे से ही टैंकर मंगवा कर काम चलाना पड़ रहा है। यही कारण है कि कई करोड़ की राशि खर्च किए जाने के बाद भी टेंकरो पर खर्च का दायरा बढ़ता जा रहा है।

यह कह रहे आंकड़े

  • 2020 में नगर निगम ने 103 टैंकर किराए पर लिए थे  इस पर 90 लाख रुपए खर्च किया था

  • 2022 में एडीबी का हकाम हुआ  लेकिन इसके बाद भी 115 टैंकर लेकर 96 लाख रुपए खर्च हुए

  • 2023 में 135 टैंकरों पर 1.71 करोड़ खर्च होने का अनुमान

यह है स्थिति...

  • एडीबी योजना में 27 टंकी बनीं

  • अमृत योजना में 42 टंकियां बनीं

  • शहर में 2389 बोरवेल, 1713 हेण्डपम्प 

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