अवैध शराब
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मध्य प्रदेश

अधिकारियों की जेबें गरम कर चल रहा अवैध शराब का खुला कारोबार

Author : Priyanka Yadav

हाइलाइट्स :

  • शराब कारोबार में ठेेकेदारों और विभाग की सांठगांठ से छतरपुर बना प्रदेश में सिरमौर

  • आबकारी अधिकारी के संरक्षण में खुलेआम ढाबों पर परोसी जा रही शराब

  • अवैध शराब दुकानों से ही बिकवाई जा रही

  • मुनाफा कमाने के फेर में ठेकेदार दुकानों से आसपास के गांवों में भेज रहे मदिरा

राज एक्सप्रेस। मध्यप्रदेश में अवैध शराब के कारोबार में छतरपुर जिला नाम कर रहा है। जिला आबकारी विभाग अवैध शराब के विक्रय को बढ़ावा देने के लिए ठेकेदारों से मदद ले रहा है और ठेकेदार अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए अवैध शराब विक्रय के नये-नये तरीके इजाद कर रहे हैं। जिसके चलते जहां पर शराब की दुकानें भी नहीं हैं वहां पर अघोषित रूप से शराब दुकानें संचालित हो रही हैं।

चाय, पान की छोटी होटलें, ढाबा एवं गुमटियां शाम होते ही मदिरा दुकानों में तब्दील हो जाती हैं। यह कारोबार जिले के किसी एक स्थान पर नहीं वरन छोटे-छोटे गांव से लेकर तहसील मुख्यालयों में दिनों-दिन फैल रहा है। ठेकेदार तथा जिला आबकारी अधिकारियों की सांठ-गांठ से शासन को अरबों रूपये का चूना लगाया जा रहा है। छतरपुर जिले में आबकारी विभाग अवैध शराब विक्रय को रोकने के बजाय अवैध शराब विक्रय को खुला संरक्षण देने में जुटा है।

शासन को करोड़ों रूपये का चूना लगाकर आबकारी विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी अपनी काली कमाई के स्त्रोतों से इजाफा करने में ठेेकेदारों के माध्यम से उन गांवों एवं मुहल्लों में अवैध शराब का विक्रय कराने में सहयोगी बने हुए हैं जहां शराब दुकानें स्वीकृत ही नहीं हैं।

खुलेआम ढ़ाबों पर बिक रही शराब

छतरपुर के आसपास 10 से 40 किमी तक सैंकड़ों की तादाद में ढाबे हैं जहां आपको हर ब्रान्ड की शराब 24 घंटे उपलब्ध मिलेगी और इन दुकानों पर अवैध शराब का खुलेआम परिवहन शहर की दुकानों से किया जाता है। अवैध शराब परिवहन की जानकारी कई बार गाड़ी नंबर के साथ छतरपुर के आबकारी अधिकारी शैलेष जैन को दी गई, लेकिन ठेकेदारों से मिली भगत के कारण ढाबों पर कार्रवाई नहीं की जाती है।

सूत्रों की मानें तो

प्रत्येक ढाबा मालिक से प्रभारी मंत्री के नाम आबकारी विभाग 5 से 10 हजार रूपये प्रतिमाह नजराना वसूल कर रहा है।

मजाल है जो साहब उफ भी करें

जी हां ऐसा हम नहीं कहते अपितु यह जिले के ठेकेदारों और माफियाओं की ही मुंह जुबानी है । उनका तो साफ कहना होता है कि, जब साहब को हर महीने समय पर उनका नजराना पहुंचा दिया जाता है तो भला साहब क्यों हमारे काम में दखल अंदाजी करेंगे। देखा भी ऐसा ही जाता है कि, आबकारी विभाग में जाकर कोई लाख शिकायत कर लें, पर उन शिकायतों पर कार्यवाही मानो चिड़िया उड़ ही साबित होती है।

ऐसा नहीं है कि, उक्त आला अधिकारी हमेशा ही अपने कार्यालय की चार दिवारी की कैद में बैठे रहते हों ऐसा भी देखा जाता रहा है कि, इन्हें जब भी मौका मिला है, इन्होनें खामोशी के साथ चौका ही जड़ा है। मजाल है कि, फिर कोई इनकी गिरफ्त से छूट पाया हो। हां यह बात अलग है कि, इनके चौका का लाभ विभाग को भले ही न मिला हो, लेकिन इनके स्वयं के लिए हमेशा ही फायदेमंद रहा है या रहता है।

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