एमवायएच फायर फाइटिंग स्टेशन
एमवायएच फायर फाइटिंग स्टेशन Mumtaz Khan
मध्य प्रदेश

Indore : एमवायएच के फायर फाइटिंग स्टेशन को कंपनी ने लावारिस छोड़ा

Mumtaz Khan

इंदौर, मध्यप्रदेश। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के एनआईसीयू में हुए अग्निकांड के बाद एमवायएच में पिछले लंबे समय से फायर फाइटिंग स्टेशन बनाने की कवायद की जा रही थी। इसके लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा स्वशासी मद से करीब दो करोड़ की राशि स्वीकृत करते हुए पीडब्लूडी की पीआईयू इससे बनाने के लिए आदेशित किया था।

एमवायएच में फायर फाइटिंग स्टेशन स्थापित हो गया है, लेकिन गत छह माह से यह लावारिस पड़ा था। जिस कंपनी को पीआईयू ने ठेका दिया था, वो कंपनी अस्पताल से अपना काम कर इसे लावारिस छोड़कर जा चुकी है। फायर फाइटिंग स्टेशन अस्पताल के पिछले हिस्से में वाटर पंप के पास बना हुआ है। पिछले दिनों अस्पताल प्रबंधन ने चार कर्मचारियों की यहां ड्यूटी लगाई है, जो फायर फाइटिंग स्टेशन आपरेटिंग के लिए कितने योग्य हैं, यह वक्त आने पर पता चलेगा।

दो वर्ष तक कंपनी की थी जिम्मेदारी :

अस्पताल सूत्रों का कहना है कि जो अनुबंध हुआ था, उसके मुताबिक दो वर्षों तक कंपनी फायर फाइटिंग स्टेशन का मेटेनेंस करेगी और उसके व्यक्ति आपरेटिंग के लिए यहां उपस्थित रहेंगे और अस्पताल के स्टाफ को ट्रेंड करेंगे, ताकि कभी अस्पताल में आग लगती है, तो उस पर समय रहते काबू पाया जा सके। वर्तमान में हालत यह है कि कंपनी अपना काम करके जा चुकी है और छह माह से फायर स्टेशन में ताले लटके हुए थे। कंपनी और कॉलेज प्रशासन के बीच क्या अनुबंध हुआ था। इसकी जानकारी न तो अस्पताल प्रशासन को है और न ही कॉलेज प्रशासन को। इतना ही नहीं पीडब्ल्यूडी ने भी इससे अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब जिन चार कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई है, उन्हें फायर फाइटिंग स्टेशन संचालन का एक दिन का भी अनुभव नहीं है और न ही उनकी सही तरीके से ट्रेनिंग हुई है। कंपनी के एक व्यक्ति ने सामूहिक रूप से एक-दो घंटे की ट्रेनिंग दी थी, बस वही उनका अनुभव है।

लिफ्टमैन, इलेक्ट्रिशियन की ड्यूटी :

मिली जानकारी के मुताबिक जिन चार लोगों की पिछले दिनों फायर फाइटिंग स्टेशन पर ड्यूटी लगाई गई है, उनमें तीन लिफ्टमैन और एक इलेक्ट्रीशियन है। नियमों के मुताबिक इसमें कम से कम एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जिसे फायर फाइटिंग स्टेशन संचालन का अनुभव हो, लेकिन ऐसा नहीं है। इन कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें अस्पताल के अंदर आग लग जाती है, तो इसकी कंपनी ने भी ट्रेनिंग नहीं दी थी। केवल पंप के पास मैदान में ही थोड़ी सी जानकारी दी थी कि किस तरह से आग बुझाई जाती है। जबकि अस्पताल छह मंजिला है और बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है। इस अस्पताल में हर समय 2 हजार से ज्यादा लोग मौजूद होते हैं। यहां अति गंभीर मरीज, नवजात बच्चे, बुजुर्ग आदि 24 घंटे 7 दिनों भर्ती होते हैं। ऐसे में एक-दो घंटे की ट्रेनिंग प्राप्त यह कर्मचारी कैसे आग पर काबू पाएंगे।

सेंसर का नहीं दिया गया डेमो :

अस्पताल के अंदर वार्ड, आईसीयू में जो सेंसर और वाटर स्प्रिंकलर लगे हैं। इसकी जानकारी ट्रेनिंग के दौरान कंपनी ने नहीं दी। न ही अस्पताल के अंदर डेमो दिया गया। सेंसर काम कर रहे हैं या नहीं वाटर स्प्रिंकलर जो लगे हैं, वो भी ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं, इसकी कोई प्रशिक्षण न ही जानकारी दी गई है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि वक्त आने पर यह कर्मचारी कितने अच्छे तरीके से काम कर पाते हैं या नहीं।

यह कहना है जिम्मेदारों का :

इस संबंध में एमवायएच अधीक्षक डॉ. पीएस ठाकुर से चर्चा की गई, तो उन्होंने बताया कि कंपनी और कॉलेज प्रबंधन के बीच करार हुआ है, इसकी उन्हें ठीक से जानकारी नहीं है। हमने चार कर्मचारियों की राउंड द क्लॉक ड्यूटी लगा दी है। वहीं एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. संजय दीक्षित ने बताया कि उन्हें भी ठीक से इसकी जानकारी नहीं है, क्योंकि कंपनी से पीडब्ल्यूडी की पीआईयू यूनिट ने फायर फाइटिंग स्टेशन बनाया है और उसके श्री मकवाना को जानकारी है। पीआईयू के श्री मकवाना से चर्चा की गई, तो उनका कहना था कि कंपनी की सिर्फ दो वर्ष तक मेटेनेंस की जिम्मेदारी है। कोई टूट-फूट होती है, तो वह रिपेयर कर देगी। उसके कर्मचारी यहां तैनात नहीं रहेंगे। कंपनी ने नगर निगम के जिम्मेदारों के सामने अस्पताल के कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी है। इसी के चलते नगर निगम ने एनओसी दी है।

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