कोरोनाकाल में रक्षक बनकर सामने आईं नर्सेस
कोरोनाकाल में रक्षक बनकर सामने आईं नर्सेस Raj Express
मध्य प्रदेश

कोरोनाकाल में रक्षक बनकर सामने आईं नर्सेस, परिजनों को खोया फिर भी ड्यूटी पर डटी रहीं

राज एक्सप्रेस

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। कोरोनाकाल में हम सभी को नर्सेस की अहम भूमिका देखने को मिली थी। जब लोग अपनो को हाथ लगाने से डर रहे थे। तब सिर्फ नर्सों ने ही उन्हें सहारा दिया। कई लोगों को अपनी जान पर खेलकर बचाया। इसके लिए उन्हें अपने बच्चों और परिवार से दूर रहना पड़ा। इतना ही नहीं इस संक्रमण काल में कई नर्सों की मौत हुई वहीं कुछ ने अपने परिजनों को भी खो दिया। उसके बाद भी वह अपने कार्य से पीछे नहीं हटीं। 24 घंटे की ड्यूटी भी की और परिवार की देखभाल भी की। 12 मई को विश्व नर्सेस डे के अवसर पर कुछ ऐसी ही नर्सेस को समर्पित राज एक्सप्रेस की यह प्रस्तुती :

क्यों मनाया जाता है नर्सेस डे :

हर साल 12 मई को इंटरनेशनल नर्सेस डे मनाया जाता है । इस दिन फेलोरिंस नाइटिंगेल का जन्म हुआ था। उन्हें मार्डन नर्सिंग का संस्थापक माना जाता है और उनके जन्मदिन को इंटरनेशनल नर्सेस डे के रूप में मनाया जाने लगा। साल 1974 इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स द्वारा अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाने की घोषणा कर दी गई। यह दिन नर्सों के प्रति अपना आभार जताने का है। इनके सहयोग और सेवा के बिना स्वास्थ्य सेवाएं अधूरी हैं।

तैयार नहीं हो पा रहा ट्रेंड स्टाफ नर्स :

नर्सिंग छात्र संगठन के नेता उपेन्द्र गुर्जर, भूपेन्द्र गुर्जर और राजकुमार त्यागी का कहना है कि जिलेभर में संचालित होने वाले नर्सिंग कॉलेजों के फर्जीवाड़े की वजह से जिले को और प्रदेश को ट्रेंड नर्सिंग स्टाफ नहीं मिल रहा। इसकी वजह है कि कॉलेज संचालकों के पास अस्पताल नहीं है। वह सिर्फ कागजों में ही अस्पताल संचालित कर रहे हैं। इस वजह से छात्र ट्रेनिंग नहीं ले पाते और हमें ट्रेंड स्टाफ नहीं मिल पाता।

नौकरी जाने के बाद करना पड़ा परेशानी का सामना :

कोविड-19 की पहली, दूसरी और तीसरी लहर में कोरोना मरीजों की सेवा करने वाले आउटसोर्स कर्मचारियों को शासन ने राजस्व ना होने की बात कहकर हटा दिया। आउटसोर्स नर्स सोनम पाल ने बताया कि कोरोनाकाल में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल को कोविड सेंटर बनाया गया है। इस दौरान मैंने जान पर खेलकर मरीजों की सेवा की। लेकिन कोरोना मरीजों की संख्या कम होते ही हमें नौकरी से बाहर कर दिया। इससे मुझे आर्थिक रूप से काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

निजी अस्पताल के नर्सेस की भूमिका भी रही अहम :

ऐसा नहीं है कि कोरोनाकाल में सिर्फ शासकीय अस्पतालों में ही मरीजों का उपचार हुआ है। निजी अस्पतालों में भी कोरोनाकाल में नर्सेस ने अपनी अहम भूमिका अदा की। लक्ष्मीबाई कॉलोनी स्थित कल्याण हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ.राघवेन्द्र शर्मा ने बताया कि शिवकुमार, चंचल नामदेव, हुकुम सिंह रावत, अवध अली, जसवंत सिंह हॉस्पिटल में नर्सिंग स्टाफ के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने दिन-रात कोविड मरीजों की सेवा की। स्वयं भी संक्रमित हो गए, लेकिन स्वस्थ होते ही फिर से अपनी सेवा देने वापस आ गए। इनके परिश्रम को भी भूला नहीं जा सकता।

इन समस्याओं से जूझ रहे नर्सिंग ऑफिसर :

  • नर्सिंग ऑफिसर के लिए चेंजींगरूम व ड्यूटी रूम की व्यवस्था नहीं है।

  • हॉस्पिटल में स्टाफ के लिए पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है।

  • नर्सेंस के रहने के लिए क्वाटर नहीं हैं।

  • कई वर्षों से प्रमोशन नहीं हुए।

  • वेतनमान नहीं बड़ा है, जबकि अन्य राज्यों में बढ़ गया है।

  • नर्सेस की कमी है, इससे मौजूद नर्सों पर वर्कलोड अधिक रहता है।

  • जेएएच में झूलाघर नहीं है।

  • अस्पताल में सुरक्षा का अभाव है।

कोरोना में संघर्ष की कहानी, नर्सेस की जुबानी

पहली लहर में पता भी नहीं था क्या करना है क्या नहीं। मेरी भी तबीयत खराब हो गई थी । तीन-चार दिन से खाना पीना छूट गया था। ठीक रक्षाबंधन वाले दिन मुझे हॉस्पिटल से फोन आया कि कोई स्टाफ नहीं है तो मैं दौड़ते-दौड़ते अस्पताल पहुंची। वहां मुझे भी चक्कर आ गए। जब मैंने अपना कोविड टेस्ट कराया तो उसमें मैं संक्रमित निकली। अब मुझे इस बात की चिंता होने लगी कि मैं अभी अपनी 6 साल की बच्ची से मिलकर आ रही हूं और अपनी बहनों से। कहीं मेरी वजह से वह भी संक्रमित ना हो गई हों। हालांकि भगवान का शुक्र रहा की बच्ची की कोविड टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन पति संक्रमित निकले। मैंने और मेरे पति ने सुपर स्पेशलिटी में भर्ती होकर अपना उपचार कराया।
सुनीता राजपूत, स्टाफ नर्स, जीआर मेडिकल कॉलेज
कोरोना की दूसरी लहर में मेरी ड्यूटी कमलाराजा अस्पताल के जनरल वार्ड में चल थी। इसी बीच मेरे पति संजय सेन संक्रमित हो गए। उन्होंने कुछ दिनों तक कोरोना से संघर्ष किया, लेकिन वह जंग हार गए।
रंजना कोमल, स्टाफ नर्स, जीआर मेडिकल कॉलेज
मैं कोरोनाकाल की शुरूआत से ही सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में एचडीयू-5 की इंचार्ज रही हूं। कोविड की पहली, दूसरी और तीसरी लहर से तो मैं बच गई, लेकिन चौथी लहर मैं स्वयं संक्रमित हो गई। मुझे डर था कि मेरी वजह से मेरी ढाई साल की बच्ची कोरोना की चपेट में ना आए जाए। इसलिए मैंने उसे अपने से अलग करके उसके दादा-दादी के पास छोड़ रखा है। अब मुझे जब भी समय मिलता है मैं वहीं उससे मिलने चली जाती हूं।
वीना चौधरी, स्टाफ नर्स, जीआर मेडिकल कॉलेज
कोरोनाकाल में हमने स्टाफ नर्स लता प्रभारी और लीसी पीटर को खो दिया था। ऐसे में काम करने में डर भी लग रहा था, लेकिन हम फिर भी अपने कार्य पर डटे रहे और कार्य किया।
भावना सेंगर, स्टाफ नर्स, जीआर मेडिकल कॉलेज

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