नगरपालिका परिषद का अध्यक्ष पद महिला की गोद में
नगरपालिका परिषद का अध्यक्ष पद महिला की गोद में Social Media
मध्य प्रदेश

श्योपुर : महिला की गोद में गई श्योपुर सीट

Author : राज एक्सप्रेस

श्योपुर, मध्य प्रदेश। अंतत: वही हुआ है जिसका कयास महिला आरक्षण प्रस्तावों के लागू हो जाने के बाद से उत्सुक आम व खास जनजीवन द्वारा बढ़-चढ़कर लगाया जा रहा था। आगामी समय में प्रस्तावित नगरीय निकाय चुनावों के लिऐ अध्यक्ष पदों के आरक्षण की प्रक्रिया के शुरूआती दौर में ही श्योपुर नगरपालिका परिषद का अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग की महिला के लिऐ सुरक्षित हो गया है और इसी के साथ भावी नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में किसी महिला उम्मीदवार का नगर के प्रथम नागरिक पद पर आसीन होना भी तय हो गया है। इस वर्ष अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रही नगरपालिका की नई सदी की शुरूआत महिला नेतृत्व में होना भी इस आरक्षण विधान ने सुनिश्चित कर दिया है जिसने राजनैतिक इ'छाशक्ति वाले परिवारों की महिलाओं को उत्साहित करते हुऐ पुरूष समाज के उन अनगिनत दावेदारों की उम्मीदों का गुब्बारा फोड़ दिया है जो विगत चार महीनों से कलफ लगे कुर्ते-पाजामों में सुशोभित होकर सार्वजनिक समागमों व मंचों की शोभा बढ़ा रहे थे तथा अघोषित तौर पर परिषद की अध्यक्षी का ताज पहनने वालों में अग्रणी माने जा रहे थे।

खबर मिलते ही शुरू हुआ बधाई का दौर :

सोमवार की सुबह जैसे ही श्योपुर नगरपालिका परिषद का अध्यक्ष पद अनारक्षित महिला वर्ग के खाते में जाने की खबर जिला मुख्यालय तक पहुंची, सियासत में दखल और रूचि रखने वालों के दूरभाष और मोबाइल व्यस्त होते देर नहीं लगी। क्षेत्रीय राजनीति में साम-दाम-दण्ड-भेद चारों लिहाजों से दबदबा रखने वाले उन नेतागणों के घरों तक समर्थकों और शुभचिंतकों की बधाइयां पहुंचने का सिलसिला भी देखते ही देखते चल निकला, जिनके पास चुनावी मैदान में उतारने के लिऐ जाने-पहचाने मोहरे घर की चारदीवारी से लेकर बाहरी दुनिया तक पहले से तैयार हैं। ज्ञातव्य है कि श्योपुर नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिऐ चंद चेहरे जहां पहले से दावेदार के रूप में चर्चाओं में बने हुऐ थे वहीं यह भी तय माना जा रहा था कि यदि आरक्षण की गोटियों ने महिला आरक्षण प्रस्तावों का समर्थन कर दिया तो इन दावेदारों की जगह उनकी पत्नियां मैदान में उतर आएंगी। अब जबकि अध्यक्ष पद महिला उम्मीदवार की गोद में जा गिरा है योग्य पत्नियों की उपलब्धता वाले तमाम नऐ-पुराने नेताओं का जोश भी उफान मारता नजर आने लगा है। अब सिर्फ इतना खुलासा होना बाकी है कि आखिर इस महासंग्राम के मैदान में अपनी गृहलक्ष्मियों को सामने लाने का हौसला कितने संजो पाते हैं? उम्मीद है कि यह भी अगले कुछ दिनों में साफ हो ही जाऐगा कि किसका सामना किसके साथ होगा।

कई की उम्मीदें टूटीं, कुछ की सलामत :

नगरपालिका का अध्यक्ष पद अनारक्षित वर्ग की महिला के लिऐ आरक्षित हो जाने के बाद जहां पहले से आरक्षित वर्ग की उत्साही महिलाओं व उनके पतियों की उम्मीदें सलामत बची हुई हैं वहीं दूसरी ओर सामान्य तथा आरक्षित वर्ग के उन तमाम इच्छाधारियों के अरमान ठण्डे पड़ गऐ हैं जो पिछली बार की अधूरी हसरतों के कैनवास पर इस बार कामयाबी का रंग भरना चाहते थे तथा इसके लिऐ लगातार दिन-रात एक किऐ हुऐ थे। हालांकि अध्यक्ष पद सामान्य महिला के लिऐ सुरक्षित हो जाने के बाद आरक्षित समुदाय की महिलाओं के लिऐ मैदान में उतरकर चुनौती दे पाना और कामयाबी का ख्वाब देख पाना उतना आसान नहीं होगा तथापि यह माना जा रहा है कि सामान्य महिला प्रत्याशियों के मुकाबलों से जुड़े परिणाम को प्रभावित करने की मंशा से कुछ ऐसे प्रायोजित चेहरे मैदान में लाऐ जा सकते हैं जो अपनी तैयारियों और सक्रियता के कारण पिछले कई महीनों से लगातार चर्चाओं में बने रहे हैं। जहां तक समाज में व्याप्त पुरूष प्रधानता का सवाल है सियासत के खेल में दखल रखने वाले अधिकांशत: नेताओं को अध्यक्ष पद महिला के खाते में जाने का अधिक मलाल नहीं है। इस विचारधारा के नेताओं व उनके समर्थकों का मानना यह है कि चालक की सीट पर भले ही भाभीजी विराजित दिखें स्टेयरिंग से लेकर क्लिच, गीयर, ब्रेक सब भाई साहब के कब्जे में ही रहने हैं।

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