चन्दन तस्कर वीरप्पन की कहानी
चन्दन तस्कर वीरप्पन की कहानी Syed Dabeer Hussain - RE
भारत

जानिए उस कुख्यात चन्दन तस्कर की कहानी, जिसने 97 पुलिसवालों सहित 150 लोगों की ली थी जान

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। एक समय ऐसा भी था जब दक्षिण भारत में वीरप्पन के नाम से मशहूर कुख्यात चन्दन तस्कर कूज मुनिस्वामी वीरप्पन का जबरदस्त खौफ था। बड़ी-बड़ी मुछों वाला वीरप्पन कई सालों तक सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी चुनौती बना रहा था। उसने हाथी दांत की तस्करी के लिए कई हाथियों की जान ली तो वहीं दूसरी तरफ चंदन तस्करी के लिए करीब 150 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इनमें आधे से ज्यादा तो पुलिसकर्मी थे। तो चलिए जानते हैं 18 जनवरी 1952 को पैदा हुए कूज मुनिस्वामी वीरप्पन की पूरी कहानी।

10 साल की उम्र में की हत्या :

वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि उसने 10 साल की उम्र में ही एक तस्कर का कत्ल कर दिया था। ये उसका पहला अपराध था। इसके अलावा उसने वन विभाग के तीन अफसरों को भी मारा था। इसके बाद वीरप्पन जंगल में भाग गया। वह 17 साल की उम्र में हाथियों का शिकार करने लगा था। उसने हाथी दांत की तस्करी के लिए कई हाथियों की हत्या कर दी। इसके अलावा वह जंगल में रहकर चंदन की तस्करी भी करने लगा था।

97 पुलिसवालों की हत्या :

देखते ही देखते वीरप्पन सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया। साल 1987 में वीरप्पन उस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया जब उसने एक फॉरेस्ट अफसर को किडनैप कर लिया। इसके बाद एक पुलिस टीम को उड़ा दिया, जिसमें 22 लोगों की जान चली गई। इस तरह वीरप्पन ने तस्करी के लिए करीब 150 लोगों की जान ली। इनमें 97 पुलिसकर्मी थे। साल 2000 में वीरप्पन ने कन्नड़ फिल्मों के हीरो राजकुमार को किडनैप कर लिया। वीरप्पन ने राजकुमार की रिहाई के बदले 50 करोड़ रूपए की मांग की थी।

साढ़े पांच करोड़ रूपए का इनाम :

तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार के लिए वीरप्पन एक बड़ी मुसीबत बन चुका था। दोनों सरकारों ने मिलकर उस पर साढ़े पांच करोड़ रूपए का भारी भरकम इनाम रखा था। हालांकि इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ तो साल 2003 में जयललिता ने वीरप्पन को मारने के लिए एक अफसर विजय कुमार को नियुक्त किया। विजय ने सबसे पहले एसटीएफ के साथियों को वीरप्पन की गैंग में शामिल कराया। इसके बाद से उन्हें वीरप्पन को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी मिलने लगी।

ऐसे मारा गया वीरप्पन :

एक बार वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने के लिए जा रहा था। उसकी गैंग में शामिल एसटीएफ के साथियों ने वीरप्पन को एंबुलेंस से सलेम के हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार किया। इसके बाद एंबुलेंस चला रहे एसटीएफ के एक कर्मी ने रास्ते में पहले से खड़े पुलिसकर्मियों की गाड़ी के बीच ले जाकर एंबुलेंस रोक दी और भाग गया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने वीरप्पन से सरेंडर करने के लिए कहा लेकिन वीरप्पन ने गोलियां चलाना शुरू कर दी। इसके बाद पुलिस ने भी जवाबी फायरिंग की, जिसमें वीरप्पन मारा गया।

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