सुप्रीम कोर्ट ने ’भूलने के अधिकार’ को भी ‘निजता का अधिकार’ माना
सुप्रीम कोर्ट ने ’भूलने के अधिकार’ को भी ‘निजता का अधिकार’ माना Syed Dabeer Hussain - RE
भारत

सुप्रीम कोर्ट ने ’भूलने के अधिकार’ को भी ‘निजता का अधिकार’ माना, जानिए क्या है मामला?

Vishwabandhu Pandey

राज एक्सप्रेस। भारत की शीर्ष अदालत ने यौन अपराध से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान ’भूलने के अधिकार’ (Right to be Forgotten) को निजता के अधिकार का ही एक हिस्सा माना है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यौन अपराध की शिकार महिला की अपील पर सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के व्यक्तिगत विवरण को छिपाने का आदेश भी जारी किया है। तो चलिए हम जानते हैं कि आखिर ‘भूल जाने का अधिकार’ क्या है? और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी टिप्पणी में क्या कहा है?

‘भूल जाने का अधिकार’ :

दरअसल वर्तमान समय में हम सभी से जुड़ी कोई ना कोई जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइट या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर मौजूद अपनी व्यक्तिगत जानकारी को हटवाना चाहता हैं, तो इसके लिए वह व्यक्ति जिस अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। उसे ही ‘भूल जाने का अधिकार’ कहते हैं। यानि यह अधिकार किसी व्यक्ति की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार देता है, जब उस जानकारी की वस्तुस्थिति हो चुका हो या फिर वह जानकारी प्रासंगिक नहीं रह जाती।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी :

पीड़ित महिला की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, ‘भूलने का अधिकार भी निजता के अधिकार (Right to Privacy) का ही एक हिस्सा है। याचिकाकर्ता के साथ-साथ प्रतिवादी की पहचान से संबंधित विवरण और केस नंबर के साथ हटा दिया जाना चाहिए। इससे सर्च इंजन पर यह विवरण दिखाई नहीं देगा। दरसल पीड़ित महिला ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि, ‘यदि मामले का विवरण सार्वजनिक होता है तो उसे शर्मिंदगी और सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ेगा।

मौलिक अधिकार :

बता दें कि 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ‘निजता के अधिकार’ को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि, ‘किसी भी व्यक्ति को अपने अनुसार अपनी निजी जानकारी के संरक्षण का अधिकार है।’

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