‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में जाने जाते थे स्वामी स्वरूपानंद
‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में जाने जाते थे स्वामी स्वरूपानंद Social Media
भारत

आजादी के लिए गए जेल, कभी ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में जाने जाते थे स्वामी स्वरूपानंद

Vishwabandhu Pandey

राज एक्सप्रेस। हिंदुओं के सबसे बड़े धर्म गुरु और ज्योतिर्मठ व शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया है। लंबे समय से बीमार चल रहे शंकराचार्य ने नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। शंकराचार्य के निधन से संत समाज सहित हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ो लोगों में शोक की लहर छा गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य बड़े नेताओं ने भी उनके निधन पर दुःख जाहिर किया है।

धर्म के लिए छोड़ा घर :

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में हुआ था। उनके बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था। शंकराचार्य को बचपन से ही धर्म-कर्म से खासा लगाव था। यही कारण है कि उन्होंने महज 9 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर धार्मिक यात्राएं शुरू कर दी थी। उन्होंने काशी जाकर ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा भी प्राप्त की।

आजादी के लिए गए जेल :

साल 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान किया तो 19 साल के स्वामी स्वरूपानंद ने भी उसमें हिस्सा लिया। उस समय उनकी छवि क्रांतिकारी साधु की बन गई थी। अंग्रेजों की खिलाफत के चलते उन्होंने 9 महीने वाराणसी और 6 महीने मध्यप्रदेश की जेल में सजा भी काटी।

1981 में बने शंकराचार्य :

साल 1950 में स्वामी स्वरूपानंद दंडी संन्यासी बने। उन्होंने ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंडी संन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद से ही उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाना गया। साल 1981 में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को शंकराचार्य की उपाधि मिली।

राम मंदिर के लिए किया संघर्ष :

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। हालांकि उनका राम मंदिर का मॉडल विश्व हिंदू परिषद के मॉडल से अलग था। वह कंबोडिया स्थित अंकोरवाट मंदिर की तरह राम का भव्य मंदिर बनवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने बकायदा उसका एक माडल भी बनवाया था।

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