राजनाथ सिंह
राजनाथ सिंह Raj Express
उत्तर प्रदेश

एक सैनिक परिवार, जाति और पंथ जैसी सोच से कहीं ऊपर उठकर पूरे राष्ट्र के बारे में सोचता है: राजनाथ सिंह

Priyanka Sahu

हाइलाइट्स :

  • कानपुर में वायु सेना स्टेशन पर सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस समारोह

  • समारोह को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया संबोधित

  • Navy का कोई sailor हिंद महासागर की गहराइयों में हमारी सुरक्षा कर रहा: राजनाथ सिंह

उत्‍तर प्रदेश, भारत। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज रविवार को कानपुर में वायु सेना स्टेशन पर सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस समारोह को संबोधित किया और कहा कि, यह किसी संयोग से कम नहीं है कि हम अपने ex-servicemen, यानि veterans के सम्मान के लिए कानपुर जैसी जगह पर एकत्र हुए हैं। इस देश के सैन्य इतिहास की श्रेणी में कानपुर अपना एक अलग ही महत्व रखता है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- 1857 में जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई, तो उस समय पेशवा नानासाहेब ने कानपुर के बिठूर से ही विद्रोह का नेतृत्व किया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जिस आजाद हिंद फौज का गठन किया, उसकी पहली महिला कैप्टन रही, लक्ष्मी सहगल जी का भी कानपुर से बड़ा आत्मीय नाता रहा। उन्होंने तो अपने जीवन का आखिरी क्षण भी कानपुर में ही बिताया।

आज हम अपने ex-servicemen, यानि veterans के बीच हैंI यहां कई सारे civilians भी उपस्थित हैं। जब केंद्र में हमारी सरकार आई तो देश के गृह मंत्री के रूप में और विशेष कर रक्षा मंत्री के रूप में तो सशस्त्र बलों के साथ मेरा बड़ा आत्मीय नाता रहा। कई बार तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरे पिछले जन्मों के कुछ संचित पुण्य होंगे कि मुझे हमारे सैनिकों के साथ इतना आत्मीय संबंध बनाने का मौका मिला।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
  • आज veteran’s day है, आज भी जब मैं आप सबके बीच उपस्थित हूं तो मुझे वह gratitude feel हो रहा है जो इस देश के नागरिकों को अपने सैनिकों के प्रति होता है। इस देश का हर नागरिक, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो, वह अपने सैनिकों के प्रति एक विशेष स्नेह रखता है। इसलिए आज veteran's day के अवसर पर मैं कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से अपने सभी पूर्व सैनिकों को, देश की उनकी सेवा के लिए नमन करता हूं।

  • सैनिकों के साथ हमारा आत्मीय संबंध तो है ही, लेकिन हम यदि कभी एक सैनिक के perspective से सोचें, तो हमें देश के प्रति उनके emotions की गहराइयों में उतरने का मौका मिलेगा। उदाहरण के लिए, सेना का कोई जवान कारगिल की चोटियों पर तैनात है, तो Navy का कोई sailor हिंद महासागर की गहराइयों में हमारी सुरक्षा कर रहा है, तो वहीं कोई air warrior किसी सुदूर air base में हमारे वायु क्षेत्र की सुरक्षा कर रहा है।

  • एक सैनिक परिवार, जाति और पंथ जैसी सोच से कहीं ऊपर उठकर पूरे राष्ट्र के बारे में सोचता है। वह जानता है कि, उसकी जाति, उसके परिवार व उसके पंथ, इन सब का अस्तित्व इस राष्ट्र के अस्तित्व से है। यदि यह राष्ट्र सनातन रहा, तो यह सारी चीज भी सनातन रहेगी। इसलिए इस राष्ट्र के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए, इस राष्ट्र की जीवंतता को बनाए रखने के लिए उसे वह नैतिक बल मिलता है, जिस कारण वह मौत का भी सामना करने को तैयार रहता है। उस सैनिक का सबसे बड़ा धर्म यह हो जाता है, कि मैं रहूं या ना रहूं, मेरा देश रहना चाहिए। क्योंकि इस देश की निरंतरता में वह भी जीवित रहेगा, उसका नाम भी जीवित रहेगा।

  • एक राष्ट्र के रूप में हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए, कि हम उस सैनिक के साथ तथा उसके परिवार के साथ, ऐसा व्यवहार करें, कि आने वाली कई पीढियों तक, जब भी कोई व्यक्ति सैनिक बने, तो उसके मन में यह भाव रहे, कि यह देश उसे अपना परिवार मानता है। यह देश उसे किसी भी मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ने वाला। उसे यह लगे, कि उससे पहले जो लोग सैनिक रह चुके हैं, और उन्होंने राष्ट्र के लिए जो अपना सब कुछ समर्पित किया, उसके लिए उन्हें पूरा राष्ट्र कृतज्ञता से नमन कर रहा है।

  • पूर्व सैनिकों के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाती है। आपने ध्यान दिया होगा, कि जब से हम सरकार में आए हैं, तब से हमने पूर्व सैनिकों पर विशेष ध्यान दिया है। चाहे वह वन रैंक वन पेंशन लागू करने की बात हो, या फिर उनके लिए health care coverage provide करने की बात हो, उनके re-employment की बात हो, या फिर समाज में उनके सम्मान की बात हो, हम लगातार अपने veterans का ख्याल रखने की ओर, और ज्यादा समर्पित होते जा रहे हैं।

  • 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध का ही उदाहरण लीजिए। इस war में, पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने भारत के सामने surrender कर दिया था। भारत उनके साथ चाहे जैसा सुलूक कर सकता था। पर हमारी संस्कृति देखिए, हमारा tradition देखिए, कि भारत ने उन सैनिकों के प्रति पूरी तरह मानवतावादी रवैया अपनाया, और आगे चलकर उन सैनिकों को पूरे सम्मान के साथ उनके देश भेज दिया। शत्रु सैनिकों के साथ भी ऐसे व्यवहार को, मैं मानवता के स्वर्णिम अध्यायों में से एक मानता हूँ।

  • मुझे स्वयं भी कई बार जब विदेशी दौरों पर जाने का अवसर मिलता है तो मैं वहाँ भारतीय सैनिकों के साथ-साथ विदेशी सैनिकों के memorial में भी जाता हूँ, क्योंकि यह बात हमारी चेतना में बसी हुई है कि हम किसी भी योद्धा का सम्मान करते हैं। और बात जब भारतीय veterans की आती है, तो उनके लिए सम्मान के साथ-साथ अपनापन भी आ जाता है।

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