लेखक जिन्होंने हिंदी को दी नई पहचान
लेखक जिन्होंने हिंदी को दी नई पहचान Akash Dewani - RE
भारत

विश्व हिंदी दिवस: लेखक जिन्होने हिंदी को दी नई पहचान, जो जाने जाते है दुनिया भर में

Akash Dewani

राज एक्स्प्रेस। 2006 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने हिंदी के प्रसार एवं प्रचार के लिए 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी। भारतवर्ष में कुछ ऐसे नायब हीरे थे, कुछ ऐसे हिंदी साहित्य के महान लेखक थे, जिन्होंने हिंदी भाषा को एक नई पहचान दी, जिन लेखकों की वजह से लोगों को हिंदी से प्रेम हुआ और वह लोग जिन्होंने अपने जीवन को हिंदी साहित्य को ही अपनी जिंदगी समझा। आइए जानते हैं 5 ऐसे लेखकों के बारे में।

भारतेंदु हरिश्चंद्र

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल
भारतेंदु हरिश्चंद्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। आज जो हम हिंदी बोलते है इसे ही हरिश्चंद्र हिंदी कहा जाता हैं। भारतेंदु ने अपना जीवन हिंदी साहित्य के विकास के लिए समर्पित कर दिया और पत्रकारिता, नाटक और कविता के क्षेत्र में प्रमुख योगदान दिया।

उन्होंने ब्रिटिश शासन पर कटाक्ष करने के लिए बड़ी चतुराई से हिंदी रंगमंच का इस्तेमाल किया, जैसा कि उनके नाटक 'अंधेर नगरी' में स्पष्ट है। भारत का सूचना और प्रसारण मंत्रालय हिंदी जनसंचार में मौलिक लेखन को बढ़ावा देने के लिए 1983 से 'भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार' देता है। 1870 से 1885 को भारतेंदु युग कहा जाता हैं। हरिशचंद्र को भारतेंदु की पदवी दी गई थी जिसका अर्थ होता है भारत का चांद, इसी के बाद उन्हे भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम से पहचाना जाने लगा।

भारतेंदु हरिश्चंद्र

मुंशी प्रेमचंद

सौंदर्य को आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती है। कोमलता गहनों का भार सहन नहीं कर सकती।
प्रेमचंद

प्रेमचंद एक भारतीय लेखक थे जो अपने आधुनिक हिंदुस्तानी साहित्य के लिए प्रसिद्ध थे। प्रेमचंद हिंदी और उर्दू सामाजिक कथा साहित्य के प्रणेता थे। वे 1880 के दशक के अंत में समाज में प्रचलित जाति पदानुक्रम और महिलाओं और मजदूरों की दुर्दशा के बारे में लिखने वाले पहले लेखकों में से एक थे। वह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं, और उन्हें बीसवीं सदी की शुरुआत के हिंदी लेखकों में से एक माना जाता है।

प्रेमचंद हिंदी के पहले ऐसे लेखक माने जाते है जिनकी रचनाओं में यथार्थवाद प्रमुखता से दिखाई देता था। उनकी कृतियों में गोदान, कर्मभूमि, गबन, मानसरोवर, ईदगाह, दो बैलों की कथा शामिल हैं। उन्होंने 1907 में सोज-ए-वतन नामक पुस्तक में अपनी पांच लघु कहानियों का पहला संग्रह प्रकाशित किया।

मुंशी प्रेमचंद

महादेवी वर्मा

जीवन को खतरे में डालने वाले सत्य से जीवन बचाने वाला झूठ कहीं अच्छा है।
महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा एक प्रसिद्ध हिंदी कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और आधुनिक युग की "मीरा" के रूप में जानी जाती थी। वह जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और सुमित्रानंदन पंत के साथ छायावाद के चार संस्थापकों में से एक थीं। महादेवी वर्मा ने लेखन और निबंध हिंदी में "नारीवादी" लेखन की शुरुआत की थी। 'श्रृंखला की कड़ियां' उनका एक सर्वश्रेष्ठ संग्रह माना जाता है, जिसमें उन्होंने भारतीय महिलाओं की स्थिति, उनकी दयनीय स्थिति का कारण और इस समस्या के समाधान की ओर इशारा किया। उन्होंने अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से औरतों की दिक्कतों, उनके वैवाहिक जीवन और उनकी आंतरिक तकलीफों के बारे में बहुत सी रचनाएं की थी।

उनकी सबसे ज्यादा विख्यात रचनाएं है हिंदू स्त्री का पत्नीत्व जिसमे शादी को गुलामी से तुलना की गई थी। ’छा’ जैसी कविताओं के माध्यम से, उन्होंने महिला कामुकता के विषयों और विचारों की खोज की, जबकि उनकी लघु कथाएँ जैसे कि ’बिबिया’ से महिलाओं के शारीरिक और मानसिक शोषण के अनुभवों के विषय पर चर्चा करती हैं।

महादेवी वर्मा

मैथिलीशरण गुप्त

जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती है रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर हैं, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं।।
मैथिलीशरण गुप्त

मैथलीशरण गुप्त जिन्हे दद्दा के नाम से भी जाना जाता था वह राज्य सभा के सदस्य रह चुके हैं।सरस्वती सहित विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ लिखकर गुप्त ने हिंदी साहित्य की दुनिया में प्रवेश किया। 1910 में, उनका पहला प्रमुख काम, 'रंग में भंग' इंडियन प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था। भारत भारती के साथ, उनकी राष्ट्रवादी कविताएँ भारतीयों के बीच लोकप्रिय हुईं, जो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनकी अधिकांश कविताएँ रामायण, महाभारत, बौद्ध कहानियों और प्रसिद्ध धार्मिक नेताओं के जीवन के कथानकों के इर्द-गिर्द घूमती हैं।

वे अपनी खड़ी बोली के लिए जाने जाते थे यानी बृजभाषी बोली के लिए। जबकि उनकी प्रसिद्ध रचना 'यशोधरा', जो गौतम बुद्ध की पत्नी के इर्द-गिर्द घूमती है। 'भारत भारती' (1912), उनकी राष्ट्रवादी कविताओं की पुस्तक ने उन्हें भारतीयों के बीच अपार लोकप्रियता दिलाई। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान व्यापक रूप से उद्धृत उनकी पुस्तक भारत-भारती (1912) के लिए, उन्हें महात्मा गांधी द्वारा 'राष्ट्र कवि' की उपाधि दी गई थी।

मैथिलीशरण गुप्त

माखनलाल चतुर्वेदी

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक
माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। भारतीय स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने सरकार में एक पद की तलाश करने से परहेज करते हुए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ और महात्मा गांधी द्वारा देखे गए शोषण मुक्त, न्यायसंगत समाज के समर्थन में बोलना और लिखना जारी रखा। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं- वेणु लो गूंज धारा, हिम कीर्तिनी, हिम तरंगिणी , युग चरण और साहित्य देवता और उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताएँ दीप से दीप जले, कैसा चांद बना देता हैं और पुष्प की अभिलाषा।

माखनलाल चतुर्वेदी

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