बसंत पंचमी
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बसंत पंचमी : जानिए माता सरस्वती के उस अनोखे मंदिर के बारे में, जहां चढ़ती हैं पेन-कॉपी

Vishwabandhu Pandey

राज एक्सप्रेस। आज पूरे देश में बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व रहता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मां सरस्वती का जन्म हुआ था। यही कारण है कि हर साल इस दिन बसंत पंचमी मनाई जाती है। इस दिन माता सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भक्त उन्हें दूध, पंचामृत, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू सहित कई चीजों का भोग लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में माता सरस्वती का एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है, जहां उन्हें कॉपी और पेन चढ़ाया जाता है। तो चलिए जानते हैं उस अनोखे मंदिर के बारे में।

मार्कंडेश्वर धाम :

दरअसल यह अनोखा मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले की पिण्डवाडा तहसील के अजारी गांव में स्थित है। इसे मार्कंडेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर करीब 1400 साल पुराना है। इस मंदिर को पूर्व बसंतगढ़ राज्य के तत्कालीन राजा ब्रह्मदत्त द्वारा स्थापित किया गया था।

मार्कंडेश्वर धाम

भक्त चढ़ाते है कॉपी-पेंसिल :

मार्कंडेश्वर धाम में लोग अपने बच्चों की वाणी, शिक्षा और बुद्धि के लिए मन्नतें मांगने आते हैं। यानी जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर है या जिनका मानसिक विकास रुका हुआ हैं, उनके माता-पिता यहां आकर मन्नत मांगते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद जल्द ही पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त सरस्वती माता के चरणों में कॉपी-किताब और पेंसिल चढ़ाते हैं।

गूंगे-बहरे भी हो जाते हैं ठीक :

मार्कंडेश्वर धाम को लेकर लोगों की आस्था है कि यहां आने से बच्चों की आवाज से जुड़ी समस्या भी ठीक हो जाती है। ऐसे बच्चे जो बोलने में हकलाते या तुतलाते हैं, यहां आने से उनकी वाणी सही हो जाती है। बच्चों की वाणी सही हो जाने पर भक्त यहां माता को चांदी की जीभ चढ़ाते हैं।

कई तपस्वियों की रही है साधना स्थली :

बता दें कि मार्कंडेश्वर धाम कई तपस्वियों की साधना स्थली भी रही है। यहां बाल ऋषि मार्कंडेय, महाकवि कालीदास और जैन संत आचार्य हेमचंद्र सूरी महाराज सहित कई तपस्वी साधना कर चुके हैं। इनके अलावा देश के कई नामी कलाकार, कवि, साहित्यकार भी माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा रावल ब्राह्मणों के पास है। उनका परिवार सैकड़ों सालों से इस मंदिर की पूजा ओर सेवा करता आया है।

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