नहाए-खाए के साथ कल से शुरू होगा छठ पर्व
नहाए-खाए के साथ कल से शुरू होगा छठ पर्व सांकेतिक चित्र
मैडिटेशन एंड स्पिरिचुअलिटी

Chhath Puja : नहाए-खाए के साथ कल से शुरू होगा छठ पर्व

राज एक्सप्रेस

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। भगवान सूर्य की उपासना का चार दिवसीय पर्व छठ पूजा 8 नवंबर को नहाए-खाए के साथ शुरू होगी। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्य उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं तथा परिवार को सुख शांति और धन धान्य से परिपूर्ण करती हैं। इस दिन व्रती स्नान आदि कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं।

बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश सोनी के अनुसार छठ पर्व का प्रारंभ 8 नवंबर दिन सोमवार को नहाए-खाए के साथ शुरू होगा। इसके अगले दिन 9 नवंबर मंगलवार को खरना करके व्रत शुरू किया जाएगा। 10 नवंबर बुधवार को छठ व्रत का मुख्य पूजन होगा। इसके अगले दिन सप्तमी 11 नवंबर गुरुवार को प्रात: सूर्योदय के समय जल देकर छठ पर्व का समापन होगा।

प्रकृति प्रेम का त्यौहार है छठ :

छठ को प्रकृति का सौंदर्य भी कहा जाता है। इसमें पूजा पाठ से लेकर प्रसाद तक में प्रकृति की चीजों का ही उपयोग किया जाता है। पूजा में मौसमी फल तथा फसलों को ही शामिल किया जाता है। नई फसल के साथ गन्ना चढ़ाया जाता है और गुड़ को आटे में मिलाकर ठेकुआ बनाए जाते हैं। सूर्य के अर्घ्य के समय बांस से बने सूप का उपयोग किया जाता है। सूप से वंश की वृद्धि होती है तथा वंश की रक्षा होती है। गन्ना आरोग्यता का कारक है। ठेकुआ समृद्धि का कारक है। वहीं मौसमी फल, फल की प्राप्ति का कारक होता है।

36 घंटों का रखा जाता है छठ व्रत :

छठ व्रत धारी लगातार 36 घंटों का कठोर व्रत रखते हैं। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाए खाए के साथ मनाया जाता है। बांस की टोकरी में सूप रखकर अस्ताचल सूर्य को पानी में खड़े होकर जल दिया जाता है।

महाभारत, रामायण से जुड़ी है कथा :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की क्योंकि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। उनकी कृपा से ही वह महान योद्धा बने। इसीलिए आज भी छठ पर्व पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है, वहीं छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा के अनुसार जो राम सीता से संबंधित है। माना जाता है कि माता सीता तथा भगवान राम ने भी सूर्य देव की आराधना की थी। इस कथा के अनुसार श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास कर लौटे थे। तब राम सीता ने इस व्रत को किया था। राम सूर्यवंशी थे। उनके कुल देवता सूर्य देवता थे। रावण वध के बाद जब राम जीतकर अयोध्या लौटने लगे तो उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुलदेवता सूर्य की उपासना करने का निश्चय किया और व्रत रखकर डूबते सूर्य की पूजा की। यह तिथि कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि थी। अपने राजा राम के द्वारा इस पूजा के करने के बाद अयोध्या की प्रजा ने भी यह पूजा आरंभ कर दी। तभी से छठ पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।

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