स्वामी विवेकानंद ने दिलाई भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान
स्वामी विवेकानंद ने दिलाई भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान Syed Dabeer Hussain - RE
मैडिटेशन एंड स्पिरिचुअलिटी

स्वामी विवेकानंद ने दिलाई भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान, जानिए कैसी थी उनकी राह?

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। दुनियाभर में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान से अपनी पहचान बनाने वाले स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। वे भारत के ऐसे तेजस्वी व्यक्ति थे जिन्होंने पूरी दुनिया को भारत की संस्कृति से अवगत कराया। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था और उनका निधन 4 जुलाई 1902 में हुआ। हालांकि महज 39 साल की उम्र में ही स्वामी इस दुनिया को छोड़कर चले गए, लेकिन इतने अल्प समय में भी उन्होंने खुद की एक अनूठी पहचान स्थापित की। आज भी स्वामी विवेकानंद के विचार युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत का कारण बनते हैं। उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आपको बताते हैं उस घटना के बारे में जिसने उन्हें बदलकर रख दिया।

माता-पिता का रहा प्रभाव

स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। बचपन में लोग उन्हें नरेन के नाम से भी जानते थे। वे बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और तेज दिमाग वाले रहे। नरेन पर उनकी माँ का आध्यात्मिक प्रभाव पड़ा जिसके चलते वे बचपन से ही अध्यात्म की ओर बढ़ गए थे। वहीं उनकी पिता कलकत्ता हाई कोर्ट में एक वकील थे, जिस कारण आधुनिक दृष्टिकोण की ओर भी उनका झुकाव रहा। हालांकि शुरुआत में वे बहुत चंचल स्वभाव के थे लेकिन उम्र बढ़ने के साथ ही उनमें पौराणिक और व्यावहारिक ज्ञान की समझ गहरी होती चली गई और वे सन्यासी बनने की ओर अग्रसर होने लगे।

वेश्या ने निकाला मन का डर

जब वे सन्यासी बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे, तब एक समय ऐसा आया जब जयपुर के राजा ने उन्हें अपने महल बुलाकर सम्मानित करना चाहा। लेकिन इस कार्यक्रम में देश की सबसे बड़ी वेश्या भी मौजूद थी। जैसे ही स्वामी को इस बारे में पता चला उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। बहुत आग्रह करने पर भी स्वामी खुद को वेश्या के सामने नहीं ला पा रहे थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि पूर्ण सन्यासी की राह में कहीं वेश्या को देखकर उनकी यौन इच्छाएँ ना जाग जाएं। जैसे ही यह बात वेश्या ने सुनी तो उसने एक गाना गया। जिसमें उसने कहा, वह जानती है कि वह स्वामी के लायक नहीं है। वह पापी है, रास्ते की गंदगी है। लेकिन वे तो एक संत हैं। वे क्यों वेश्या से डर रहे हैं?

इसके बाद स्वामी विवेकानंद को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे समझ गए कि यदि वे वेश्या के सामने जाने का डर मन से निकाल देंगे तो सन्यासी बनने की राह पर आगे बढ़ जाएंगे। इसके बाद वे कमरे से बाहर आए और वेश्या को प्रणाम करते हुए कहा कि आपकी आत्मा शुद्ध है। अब यदि में आपके साथ अकेला भी रहूँ तो मुझे कोई डर नहीं है।

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