Mother’s Day
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Mother’s Day : जिसने की थी मदर्स डे की शुरुआत, वह खुद ही करना चाहती थी इसे खत्म, जानिए कारण

Vishwabandhu Pandey

Mother's Day Special : कहा जाता है कि इस दुनिया में मां और उसके बच्चे का रिश्ता सबसे खास होता है। मां का हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्व होता है। मां होती है जो अपने बच्चे को जीवन में आगे बढ़ना सिखाती है। इस दुनिया में मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता है। मां के इसी समर्पण को सम्मान देने के लिए हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को Mother's Day यानी मातृ दिवस मनाया जाता है। बच्चे अपनी मां के प्रति विशेष प्यार और सम्मान जाहिर करके उन्हें इस बात का अहसास कराते हैं कि वह उनके जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हैं।

वैसे तो दुनियाभर के बच्चे हर साल मदर्स डे का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस महिला ने कभी मदर्स डे मनाने की शुरुआत की थी, आगे चलकर वह खुद ही इस दिन के विरोध में उतर आई थी और लोगों से मदर्स डे नहीं मनाने की अपील करने लगी थी। चलिए जानते हैं पूरा मामला।

कैसे हुई थी मदर्स डे की शुरुआत?

दरअसल मदर्स डे की शुरुआत एना जार्विस (Anna Jarvis) ने की थी। एना की मां एक स्कूल टीचर थी और वह चाहती थी कि मां के सम्मान में भी एक दिन होना चाहिए। साल 1905 में अपनी मां के निधन के बाद एना ने उनकी यह ख्वाइश पूरी करने की ठानी। साल 1908 में एना ने पहली बार मदर्स डे मनाया। लोगों को एना का विचार बहुत पसंद आया और लोग भी मदर्स मनाने लगे। साल 1914 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने मां के सम्मान में मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने की घोषणा की। उसके बाद से यह दिन और भी देशों में मनाया जाने लगा।

मदर्स डे के विरोध में उतरी एना

जिस एना ने कभी मदर्स डे मनाने की पहल की थी, आगे चलकर वह खुद ही इसे मनाने के खिलाफ सड़कों पर उतर गई थी। इसका कारण यह है कि एना ने मदर्स डे पर अपनी मां के मनपसंद फूल महिलाओं को बांटे थे। उनको देखकर अन्य लोग भी इस दिन ऐसा करने लगे। धीरे-धीरे यह ट्रेंड बन गया। इससे मदर्स डे पर बाजार में इन फूलों की भारी डिमांड होने लगी और लोग इसकी कालाबाजारी करने लगे। मदर्स डे के नाम पर लोगों को फूल, चॉकलेट, गिफ्ट्स महंगे दामों पर बेचे जाने लगे। मदर्स डे का बाजारीकरण देख एना को बहुत बुरा लगा और उन्होंने मदर्स डे सेलिब्रेट करना बंद कर दिया। उन्होंने अन्य लोगों से भी यह दिन नहीं मनाने की अपील की। इस दिन के खिलाफ उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया, लेकिन वह सफल नहीं हुई। साल 1948 में एना ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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