मेयर के पत्र पर संविधान का हवाला देते हुए मोइत्रा का रिएक्‍शन
मेयर के पत्र पर संविधान का हवाला देते हुए मोइत्रा का रिएक्‍शन Social Media
पॉलिटिक्स

मीट पर बवाल- मेयर के पत्र पर संविधान का हवाला देते हुए मोइत्रा ने दिया यह रिएक्‍शन

Priyanka Sahu

दिल्ली, भारत। इन दिनों चैत्र नवरात्रि पर्व की धूम है, इस दौरान मां अम्‍बे जगदम्‍बे के भक्‍त श्रद्धा भाव से व्रत रखते हैं। यहां तक कि कुछ लोग नवरात्रि में लहसुन-प्‍याज तक नहीं खाते हैं, लेकिन इस बीच देश की राजनीति में हलाल मीट पर विवाद मचा हुआ है और मांस की दुकानों पर पाबंदी व मीट बैन जैसी खबरें चर्चा में बनी हुई हैं।

दरअसल, दक्षिण दिल्ली नगर निगम निगम की मेयर मुक्केश सूर्यन का एक पत्र सामने आया है, जो नवरात्र के दौरान मांस की दुकानों पर पाबंदी को लेकर है। इस दौरान उन्‍होंने कहा है कि, ''जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए 2 अप्रैल से 11 अप्रैल तक नवरात्रि पर्व के 9 दिनों की अवधि के दौरान मांस की दुकानों को बंद करने के लिए कार्रवाई करने के लिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए जा सकते हैं।''

चूंकि नवरात्र के दौरान दिल्ली के 99 फीसदी घरों में यहां तक कि लहसुन-प्याज तक नहीं खाया जाता है, इसलिए हमने दक्षिण दिल्ली में मांस की दुकानें बंद रखने का फैसला किया है। जो दुकान खोलेगा उस पर भारी जुर्माना लगेगा।
मेयर मुक्केश सूर्यन

संविधान उन्हें जब मर्जी हो तब मीट खाने की इजाजत देता है :

मेयर के इस पत्र को लेकर नेताओं का रिएक्‍शन का दौर जारी है। एमसीडी के अधिकारियों ने कहा है कि, ''मेयर का औपचारिक आदेश नहीं मिला है।'' तो वहीं, तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे चुनौती दी है। मीट दुकानों पर बैन की खबरों के बीच TMC सांसद मोइत्रा ने ट्वीट भी किया और लिखा-

संविधान मुझे अपनी मर्जी से जब चाहूं मीट खाने की इजाजत देता है, उसी तरह दुकानदारों को भी अपना कारोबार करने की इजाजत है।
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा

इस मामले को जम्मू-कश्मीर के पूर्व CM व नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला का भी रिएक्‍शन आया है, उन्‍होंने ट्वीट कर कहा कि, ''यह ठीक है। रमजान के दौरान हम सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच कुछ नहीं खाते हैं, इसलिए कश्मीर में हर गैर मुस्लिम पर्यटक को सार्वजनिक रूप से, खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कुछ भी खाने की इजाजत नहीं होना चाहिए। यदि दक्षिण दिल्ली में बहुसंख्यकवाद जायज है तो जम्मू-कश्मीर के लिए भी यह सही होगा।''

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