America China News
America China News Social Media
राज ख़ास

अमेरिका 52 हजार अमेरिकी सैनिकों में से 9,500 को एशिया में करेगा तैनात

Author : राज एक्सप्रेस

अमेरिका ने यूरोप से अपनी सेना हटाकर एशिया में तैनात करने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत वो जर्मनी से करने जा रहा है। अमेरिका का यह कदम चीन की दादागिरी के खिलाफ है। उसे लगता है कि चीन को नहीं रोका गया तो वह बादशाहत मजबूत कर लेगा।

चीन की एशिया में बढ़ती दादागीरी के खिलाफ अमेरिका ने कड़ा रुख अपनाया है। अमेरिका ने यूरोप से सेना हटाकर एशिया में तैनात करने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत वो जर्मनी से करने जा रहा है। अमेरिका जर्मनी में तैनात 52 हजार अमेरिकी सैनिकों में से 9,500 सैनिकों को एशिया में तैनात करेगा। अमेरिका यह कदम ऐसे समय उठा रहा है कि जब चीन ने भारत में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है, तो दूसरी ओर वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन और साउथ चाइना सी में खतरा बना हुआ है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉपिओ ने चीन को भारत और दक्षिणपूर्व एशिया के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, और फिलीपीन जैसे एशियाई देशों को चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर अमेरिका दुनिया भर में अपने सैनिकों की तैनाती की समीक्षा कर उन्हें इस तरह से तैनात कर रहा है कि वे जरुरत पडऩे पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का मुकाबला कर सकें। अमेरिका हिंद महासागर स्थित सैन्य ठिकाने डियोगार्शिया पर पहली बार में 9500 सैनिकों को तैनात करेगा। इसके अलावा ताइवन भी अपने यहां सैना तैनाती के लिए जगह दे सकता है।

बता दें कि अमेरिका के सैन्य ठिकाने जापान, दक्षिण कोरिया, डियोगार्शिया और फिलीपींस में है। अमेरिका का एशिया में सेना तैनात करने का फैसला अनायास नहीं है। एशिया में जिस तरह से चीन का दखल बढ़ रहा है, वह अमेरिका को परेशान करने वाला है। एशिया क्षेत्र हमेशा से अमेरिका को आकर्षित करता रहा है। फिर वह चाहे तेल हो या बाजार। अमेरिका को लगता है कि अगर चीन को नहीं रोका गया तो वह अपनी बादशाहत मजबूत कर लेगा। तभी तो पिछले दिनों लद्दाख में भारत-चीन तनाव के समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बिना बुलावे के मध्यस्थता के लिए तैयार हो गए थे और पूरे मामले में दिलचस्पी ले रहे थे। अगर सेना तैनात करने के परिदृश्य पर नजर डालें तो पता चलेगा कि चीनी कयुनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग के लिए गुजरा साल एक से अधिक कारणों से बदतर रहा है।

इस दौरान चीन को गिरती आर्थिक वृद्धि और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ी अड़चनों के साथ हॉन्गकॉन्ग संकट से भी जूझना पड़ा। फिर कोरोना वायरस की वजह से भी भी चीन पूरी दुनिया के निशाने पर है। चीन के प्रति न केवल ट्रंप की अगुआई वाले अमेरिकी प्रशासन बल्कि पश्चिमी देशों का नजरिया भी बदला है। वे चीन पर आर्थिक दबाव डालते हुए संतुलित संबंधों की मांग करते रहे हैं। पश्चिम एशिया में खुद अमेरिका भी प्रासंगिकता के लिए जद्दोजहद करता नजर आ रहा है। वहीं चीन भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाता जा रहा है। अमेरिका के उलट चीन के ताल्लुकात ईरान के साथ-साथ अरब देशों और इजरायल से भी अच्छे हैं। चीन न केवल ईरान का तीसरा बड़ा सैन्य सहयोगी और इसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।

ताज़ा ख़बर पढ़ने के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। @rajexpresshindi के नाम से सर्च करें टेलीग्राम पर।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

SCROLL FOR NEXT