बंगाल चुनाव : ममता दीदी के समक्ष इस बार सत्ता बचाने की सबसे बड़ी चुनौती
बंगाल चुनाव : ममता दीदी के समक्ष इस बार सत्ता बचाने की सबसे बड़ी चुनौती Social Media
राज ख़ास

बंगाल चुनाव : ममता दीदी के समक्ष इस बार सत्ता बचाने की सबसे बड़ी चुनौती

Author : राज एक्सप्रेस

राज एक्सप्रेस। पिछले दिनों चुनाव आयोग ने देश के चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों की घोषणा की, जो कोरोना काल में दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया होगी। इसमें लगभग 18 करोड़ मतदाता 824 सीटों के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। यह हमारी समृद्ध सामाजिक विविधता का ही परिचायक है कि एक साथ बांग्ला, असमिया, तमिल और मलयाली भाषा बोलने वाले लोग विवेक से सरकारें बहाल करेंगे। सबसे लंबी चुनावी प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में होगी, जहां 294 सीटों के लिए आठ चरणों में चुनाव होंगे। सबसे बड़ा चुनावी दंगल भी पश्चिम बंगाल में ही देखने को मिलेगा। तीन दशकों से भी ज्यादा समय से राज्य की सत्ता पर काबिज वाम मोर्चे को उखाड़ फेंकने वाली और एक दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज ममता दीदी के समक्ष इस बार सत्ता बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि उनकी टक्कर भाजपा से है।

भले ही अभी राज्य में भाजपा के तीन विधायक ही हैं, मगर ममता दीदी के शासन में ही भाजपा ने राज्य में मजबूत पकड़ बना ली है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 42 में से 18 सीटों पर कब्ज़ा जमाकर सबको हैरान कर दिया था। जबकि इस बार विधानसभा चुनाव से पहले वह तृणमूल के कुछ बड़े नेताओं को भी पाले में लाने में सफल रही है। यही कारण है कि मां, माटी, मानुष के नारे पर राजनीति करने वाली ममता को बंगाल की बेटी होने की दावेदारी पेश करनी पड़ी है। चुनावी बिसात पर एक ओर जमीन की बेटी और उनका क्षेत्रीय दल है, जो बांग्ला अस्मिता के जरिये अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है, तो दूसरी तरफ भाजपा की पूरी राष्ट्रीय ताकत बंगाल का दुर्ग जीतने की कोशिश में लगी हुई है। पर भाजपा की मुश्किल यह है कि उसके पास ममता बनर्जी की टक्कर का कोई स्थानीय चेहरा नहीं है। ऐसे में, उसे सबको साथ लेकर चलना है, ताकि प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव लड़ा जाए और जीतने पर केंद्रीय नेतृत्व किसी को मुख्यमंत्री बना सके। लेकिन यह मॉडल बंगाल की राजनीति के लिए नया है, क्योंकि 1970 के दशक में कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के बाद बंगाल ने ऐसी राजनीति नहीं देखी।

ज्योति बसु बेशक कद्दावर कम्युनिस्ट नेता थे, मगर उनके व्यक्तित्व और राजनीतिक प्रबंधन में बंगाली नेता होने की बात सबसे प्रमुख थी। बहरहाल, अब यह देखना होगा कि ममता के खिलाफ सत्ता-विरोधी रुझान कितना है, और कांग्रेस व वाम मोर्चे की सीटों में कितने पर भाजपा सेंध लगा पाती है। स्थानीय मतदाता इस बार के चुनाव को ममता बनाम अमित शाह के रूप में देखते हैं। कुल मिलाकर, इस बार बंगाल की लड़ाई बेहद अहम होने वाली है। यहां के परिणाम ऐसा नेरेटिव तय करेंगे, जिससे आगे की लड़ाई का रास्ता तय होगा। अगर बंगाल में ममता वापसी करती हैं तो यह उनके लिए उपलब्धि के समान होगा और अगर बढ़ी हुई सीटों के साथ भाजपा विपक्ष में रहती है तो भी यह उसके लिए बड़ी जीत होगी।

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