लापरवाही : हीरानंदानी सोसायटी में नकली वैक्सीन का मामला पहला मामला नहीं
लापरवाही : हीरानंदानी सोसायटी में नकली वैक्सीन का मामला पहला मामला नहीं Social Media
राज ख़ास

लापरवाही : हीरानंदानी सोसायटी में नकली वैक्सीन का मामला पहला मामला नहीं

Author : राज एक्सप्रेस

मुंबई की हीरानंदानी सोसायटी में 390 लोगों को कथित रूप से नकली टीका लगाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब फर्जी वैक्सीनेशन रैकेट से बॉलीवुड फिल्मों के प्रोड्यूसर्स भी अछूते नहीं रहे। कुछ प्रोडक्शन हाउस के मेंबर्स को हाल ही में टीका लगा था। लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उन्हें कौन सी वैक्सीन लगाई गई। इसी सिलसिले में बातचीत करते हुए फिल्म निर्माता व टिप्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मालिक रमेश तौरानी ने बताया कि उन्होंने 365 कर्मचारियों को 30 मई और 3 जून को टीका लगवाया था, लेकिन उन्हें अब तक सर्टिफिकेट नहीं मिला है। इसी तरह का मामला एक अन्य प्रोडक्शन हाउस मैचबॉक्स पिक्चर्स से जुड़ा हुआ है। एसपी इवेंट की ओर से 29 मई को इस प्रोडक्शन हाउस के करीब 150 कर्मचारी और फैमिली मेंबर्स को कोवीशील्ड का पहला डोज दिया था। इन सभी को कहा गया कि वे सर्टिफिकेट कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल से ले सकते हैं।

दो सप्ताह बाद उन्हें सर्टिफिकेट नानावटी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से मिला, जिसमें डोज लेने की तारीख 12 जून लिखी गई। टीकाकरण में इस तरह की लापरवाही का यह पहला उदाहरण नहीं है। इससे पहले यूपी के सिद्धार्थनगर के एक टीकाकरण केंद्र पर पहली खुराक में कोविशील्ड लगवा चुके 20 लोगों को दूसरी खुराक के रूप में कोवैक्सीन लगा देने का मामला सामने आया था। गनीमत है कि इनमें से सभी लोग अब तक स्वस्थ हैं, उन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया है। मगर सवाल अपनी जगह बना है कि टीकाकरण केंद्र पर तैनात कर्मचारियों से यह लापरवाही हुई कैसे। पिछले महीने शामली में भी तीन महिलाओं को कोरोना टीके की जगह कुत्ते के काटने पर लगाया जाने वाला एंटी रैबीज टीका लगा दिया गया। तब उस मामले पर लीपापोती करके रफा-दफा कर दिया गया था। इस वक़्त जब कोरोना की श्रृंखला तोडऩे के लिए टीकाकरण अभियान में तेजी लाने पर जोर दिया जा रहा है और अपेक्षा की जा रही है कि इसमें चिकित्साकर्मी सक्रिय योगदान देंगे, तब इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही स्वाभाविक रूप से ध्यान खींचती है।

मुंबई की हीरानंदानी सोसायटी का मामला हो या फिर रैबीज का इंजेक्शन लगाने का। हर जगह प्रशासन की नाकामी सामने आई है। टीका लगवाने के तुरंत बाद लोगों को पर्चा दिया जाता है, जिस पर टीके का विवरण दर्ज होता है। दूसरी खुराक लेते वक़्त पर्चा चिकित्सा कर्मियों को दिखाना पड़ता है, ताकि उन्हें अंदाजा लग सके कि पहले उन्होंने कौन-सा टीका लिया था। वहीं टीका लगने के कुछ घंटों में मोबाइल पर मैसेज से सरकार टीका लगने की पुष्टि करती है। अगर 24 घंटे तक मैसेज नहीं आया तो हीरानंदानी सोसायटी के लोगों को शिकायत करनी थी। टीकाकरण का काम सरकार ने प्रशासन और लोगों दोनों के ही भरोसे छोड़ रखा है। किसी भी एक स्तर पर लापरवाही दिक्कतें तो बढ़ाएगी ही।

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