भारत में पिछले साढ़े 6 सालों में सबसे ज्यादा महंगाई दर
भारत में पिछले साढ़े 6 सालों में सबसे ज्यादा महंगाई दर Social Media
राज ख़ास

भारत में पिछले साढ़े 6 सालों में सबसे ज्यादा महंगाई दर

Author : राज एक्सप्रेस

ऑक्सफ़ोर्ड इकोनॉमिक्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था में उम्मीद से ज्यादा रिकवरी का अनुमान जताया है। संस्था का कहना है कि दिसंबर में मॉनीटरी पॉलिसी रिव्यू मीटिंग में भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक दरों को होल्ड कर सकता है। ऑक्सफ़ोर्ड इकोनॉमिक्स ने चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में छह फीसदी से ज्यादा महंगाई दर रहने का अनुमान जताया है। संस्था ने कहा है कि ऑयल को छोडक़र अन्य सभी कैटेगरी में कीमतें बढऩे के कारण अटूबर में उपभोक्ता महंगाई कोविड-19 से पहले के स्तर पर पहुंच गई है। जबकि, चौथी तिमाही में महंगाई दर पीक पर पहुंच सकती है। सब्जी और अंडों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अटूबर-2020 में खुदरा महंगाई दर 7.61 फीसदी दर्ज की गई है। यह पिछले साढ़े छह सालों में सबसे ज्यादा महंगाई दर रही है। यह रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी ज्यादा है। इससे पहले के महीने यानी सितंबर 2020 में महंगाई दर 7.27 फीसदी रही थी। दीपावली का त्यौहार खत्म हो चुका है और अर्थव्यवस्था में बेहतरी की जो उम्मीद सभी ने लगा रखी थी, वह फिलहाल खत्म नहीं हुई है।

कोरोना काल से पहले तक दीपावली या फिर किसी भी पर्व-त्यौहार के मौके पर लोग खाने-पीने की वस्तुओं के साथ सामान की खरीदारी करके उत्सव को अपने लिए खुशनुमा बनाते रहे हैं। लेकिन इस बार पिछले कई महीनों से जैसी हालत बनी रही, उसमें खाने-पीने की जरूरी चीजों की कीमतें ही लोगों के लिए चुनौती बनती दिखी। हालत यह है कि रोजाना की थाली तक में कटौती होने लगी है, क्यूंकि सब्जी की ऊंची कीमतें बहुत सारे लोगों की पहुंच से बाहर हो गई हैं। सब्जियों और अंडों की कीमतों में उफान का सीधा असर मुद्रास्फीति की दर पर पड़ा है। बीते गुरुवार को जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक खुदरा मुद्रास्फीति की दर 7.61 फीसद पर पहुंच गई। पिछले छह साल में यह उच्चतम स्तर है। हालांकि बीते कुछ महीनों से इसमें बढ़ोतरी का क्रम बना हुआ था और सितंबर महीने में यह आंकड़ा 7.27 फीसद रहा था।

तब यह उम्मीद की गई थी कि सरकार इसे थामने के लिए जरूरी कदम उठाएगी, लेकिन हालत यह है कि खुदरा मुद्रास्फीति की दर लगातार दूसरे महीने भी सात फीसद से ऊपर बनी हुई है। महामारी से बचाव के लिए लागू लॉकडाउन का लोगों के रोजी-रोजगार पर या असर पड़ा है, यह सभी जानते हैं। अब भी न तो लोगों के सामने आमदनी के रास्ते सहज हुए हैं, न बाजार गति पकड़ रहा है। हालांकि उम्मीद थी कि लॉकडाउन में राहत के साथ धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के क्रम में लोगों को महंगाई की विकराल समस्या में कुछ राहत मिलेगी और खाने-पीने के सामानों तक उनकी आसान पहुंच बन सकेगी। लेकिन पिछले कुछ महीनों से लगातार बाजार का जो रुख दिख रहा है, उसमें राहत के संकेत कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। हालात और भी खराब होने की ओर इशारा कर रहे हैं।

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