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COVAXIN : प्रथम चरण के टीकाकरण के बाद कोई गंभीर परेशानी नहीं हुई

Author : राज एक्सप्रेस

भारत की स्वदेशी कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के प्रथम चरण के परिणाम सामने आ गए हैं। इस परिणाम ने लोगों के साथ-साथ कंपनी को भी राहत दी है। कंपनी की ओर से कहा गया है कि पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल में वैक्सीन ने शरीर में एंटीबॉडी बनाई है और इस दौरान कोई प्रतिकूल प्रभाव देखने को नहीं मिला है। कंपनी ने कहा कि प्रथम चरण के टीकाकरण के बाद कोई गंभीर परेशानी नहीं हुई और जो थीं वो दवा के बिना तेजी से ठीक हो गईं। इंजेक्शन जहां लगाया गया, उस जगह पर उठा दर्द भी खुद ब खुद ही ठीक हो गया। कोवैक्सीन उन तीन वैक्सीन में शामिल है जिनके आपातकालीन इस्तेमाल के लिए सरकार के पास आवेदन किया गया है। 11 अस्पतालों में अलग- अलग स्थानों, 375 स्वयंसेवियों को परीक्षण में शामिल किया गया था। टीके ने एंटीबॉडी तैयार करने काम किया।

गंभीर असर की एक घटना सामने आई, जिसका टीकाकरण से कोई जुड़ाव नहीं पाया गया। इसमें बताया गया है कि वैक्सीन को दो से आठ डिग्री के बीच तापमान पर रखा गया। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत इसी तापमान पर अलग-अलग टीकों को रखा जाता है। परिणाम के मुताबिक, प्रतिकूल असर का एक गंभीर मामला सामने आया। प्रतिभागी को 30 जुलाई को टीके की खुराक दी गई थी। पांच दिन बाद प्रतिभागी में कोविड-19 के लक्षण पाए गए और सार्स-कोव2 से उसे संक्रमित पाया गया। भारत बायोटेक की सयुंक्त निदेशक सुचित्रा इला ने बीते दिनों उम्मीद जताई थी कि सुरक्षा और क्षमता के आंकड़ों के साथ कोवैक्सीन अगले साल की पहली तिमाही में उपलब्ध हो जाएगी। स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने भी भरोसा दिलाया है कि अगले साल की पहली तिमाही तक टीका आ जाएगा। भारत में जिस तेजी से टीकों के परीक्षण चल रहे हैं, वे इसका संकेत हैं कि भारत कामयाबी हासिल करने के करीब है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारत बायोटेक ने जो टीका बनाया है, उसके दूसरे चरण का परीक्षण शुरू हो चुका है। इसमें संदेह नहीं कि कोरोना जैसी महामारी का टीका खोजना कोई आसान काम नहीं है। अमेरिका, चीन जैसे कई बड़े देश इस काम में जुटे हैं। रूस ने टीका बना लेने और परीक्षण के हर स्तर पर खरा उतरने का दावा किया है। अगले साल तक दुनिया के कई देशों के टीके बाजार में आने की संभावना है। टीका तैयार करने की प्रक्रिया की जटिल होती है और इसे कई तरह के परीक्षणों से गुजारना होता है। इसमें वक्त और पैसा दोनों ही काफी खर्च होते हैं। ऐसे में इस काम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता, वरना टीके की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। टीका चाहे जो भी बनाए, उसकी सफलता का मापदंड तो यही होगा कि वह अधिकतम कोरोना संक्रमितों को ठीक करे। अभी जिन टीकों पर काम चल रहा है, वे कितने सुरक्षित और कारगर होंगे, जल्द सामने होगा।

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