हीरा बा की की अंतिम यात्रा
हीरा बा की की अंतिम यात्रा Social Media
राज ख़ास

सीने में लाक्षागृह, अधरों पर कोलाहल

राज एक्सप्रेस

सोशल मीडिया के शोर में संवेदना रूपी द्रोपदी का सरेआम चीरहरण हो रहा है और वे लोग जो इससे दुखी और व्यथित हैं वो भीष्म पितामह की तरह खामोशी से तमाशा देख रहे हैं। दुर्योधन और शकुनी के दांव में फंसकर पांडव चुप हैं और धृतराष्ट्र के पुत्र मोह ने राजसभा के मुंह पर ताला डाला हुआ है। ऐसा ही कुछ महसूस हो रहा है जब एक मां के निधन के समाचार के बाद सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी परोसा जा रहा है।

राज एक्सप्रेस। कोई महिला बहुत सुंदर हो सकती है, वो हीरोइन या विश्वसुंदरी हो सकती है...लेकिन दुनिया की कोई भी खूबसूरत महिला मां से सुंदर और अच्छी नहीं हो सकती। मां किसी की भी हो उसे धरती पर ईश्वर का स्वरूप और प्रथम गुरु के रूप में माना जाता है। कोहरे की सर्द सुबह में रजाइयों में अंगड़ाई लेते उठने के बाद एक मां के निधन का समाचार चारों तरफ छाया रहा और ऐसा हो भी क्यों ना, क्योंकि यह मां साधारण नहीं देश के प्रथम सेवक की मां थी। ऐसी मां हीरा बा जिसने अपने अंश को शंतिपुन्ज बनाकर राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित कर दिया। जिनका बेटा आज ध्रुवतारे के समान देश और विश्व में ना सिर्फ चमक रहा है, बल्कि उसमें आम लोग एक शक्तिशाली विश्वनेता की छवि देख रहे हैं।

टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से सुबह-सुबह देश के पीएम नरेंद्र मोदी की मां हीरा बा के नहीं रहने का समाचार लोगों को मिला। उमीद थी कि अब अहमदाबाद में एक-दो दिन वीवीआईपी मूवमेंट रहेगा। देश के बड़े-बड़े राजनेता व ताकतवर लोग जाकर प्रधानमंत्री की मां को श्रद्धांजलि देंगे। बड़े नेताओं के घरों में किसी मौत के बाद इस तरह के दृश्य कोई नई बात तो नहीं हैं। ऐसा होता रहा है और शायद आगे भी होता रहेगा। मगर इससे उलट ऐसा कुछ नहीं हुआ और बड़े ही साधारण ढंग से उनकी अंत्येष्टि कर दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बेटे का फर्ज निभाते हुए मां की अर्थी को कांधा दिया और चरणों में जल समर्पित कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया।

दोपहर होने तक शवयात्रा से लेकर अंतिम विदाई तक की प्रक्रिया पूरी हो गई और मां को नम आँखों से विदा करने के कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्तव्य के पथ पर आगे बढ़ गए। उन्होंने तय कार्यक्रमों के तहत कोलकत्ता में पूर्वी भारत की पहली वंदे भारत ट्रैन को वर्चुअल हरी झंडी दिखाई और पश्चिम बंगाल के लिए 58 हजार करोड़ की कई योजनाओं का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कोलकत्ता नहीं पहुंच पाने का दुख भी जताया और रेलवे और अन्य क्षेत्रों में देश जिस तेजी से तरक्की कर रहा है, उसके बारे में भी बात की। परिजनों ने भी सबसे आग्रह किया कि सब अपना काम करें, यहीं सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

एक तरफ जहां शोक संदेशों की बाढ़ आ गई और नेताओं और आम लोगों ने अपने-अपने तरीके से श्रद्धा सुमन अर्पित करअपनी भावनाओं का इजहार किया, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर एक वर्ग ऐसा प्रकट हुआ जिसने इस गमगीन माहौल में भी मोदी पर अपने तरकश से एक के बाद एक तीर चलाना शुरू कर दिए। मां के निधन के बाद आयोजनों में भाग लेने को किसी ने इंवेट बताया तो किसी ने पब्लिसिटी की भूख। जिसके भीतर जो विष था वह विभिन्न तरीकों से बाहर आने लगा। सोशल मीडिया पर इस विषय को लेकर कई तरह के मीम बनाए गए। सोशल मीडिया के माध्यम से जिस तरह के विचार प्रकट किए गए, वह इस नाजुक मौके पर किसी तरह से भी सही नहीं ठहराए जा सकते हैं। कुछ का स्तर तो इतना गिरा हुआ था कि उसे लिखा भी नहीं जा सकता है।

इन सबके बीच एक बात तो सामने आई कि धर्म, समाज, संस्कृति, जीवन मूल्यों, परिवार की दुहाई देने वाले देश में संवेदनाओं का स्तर बहुत निचले स्तर पर आ रहा है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है। इसके पहले भी कई गंभीर व संवेदनशील मुद्दों पर सोशल मीडिया में ऐसा ही ऊटपटांग होता आया है। जिस देश में मृत्यु के बाद हम सबको स्वर्गीय, गौलोकवासी आदि शब्दों से संबोधित कर समान देते रहे हैं, उस देश में एक मां की मृत्यु पर भी इतनी असंवेदनशीलता कहीं ना कहीं खलती जरूर है। ऐसे अवसरों पर तो हमारी संस्कृति और सभ्यता में दुश्मन और खराब से खराब व्यक्ति को भी मृत्यु के बाद अच्छे शदों से संबोधित कर समान दिया जाता रहा है। पर पता नहीं या हुआ है और ऐसा क्यों हो रहा है यह समझ से परे है।

तारीफ करनी पड़ेगी कांग्रेस पार्टी की, जिसने संवेदनशीलता को महसूस किया और ना सिर्फ अफसोस जताया बल्कि देश केकई स्थानों पर आयोजन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबा को श्रद्धांजलि भी दी। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अस्पताल में भर्ती होने के समय से लेकर निधन के बाद स्पष्टरूप से यह जताया कि हम इस दुख की घड़ी में परिजनों के साथ पूरी तरह से खड़े हुए है। राहुल ने यहां तक लिखा कि मां और बेटे का रिश्ता अनमोल होता है। गम के इस समय में हम भी इस दुख को महसूस कर रहे है।

राहुल और प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने भी पूरी संवेदना दिखाते हुए अपने-अपने शदों में हीरा बा को याद किया। शायद यही इस देश की परंपरा है और इसे आगे भी बना रहना चाहिए। आजादी के 75 वें वर्ष में देखें तो यह तो साफ नजर आता है कि देश ने प्रगति की है। शासन किसी भी दल का रहा हो, हमने दलों की राजनीति से ऊपर उठकर देश को निर्णय लेते देखा है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी के समय पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जो बाद में नजीर बने। पक्ष-विपक्ष के बीच आपसी सामंजस्य व विरोधी दलों के बड़े नेताओं के आपसी स्नेह व प्यार की कई कहानियां आज भी राजनीतिक गलियारों में सुनाई देती हैं।

खैर जो होना था हो गया और आगे भी कभी-कभार ऐसा ही होता रहे। लेकिन सबको इस बात पर जरूर विचार करना चाहिए कि लोकतंत्र के कारण हमें विचार व्यत करने की जो आजादी मिली है, उसका सही तरीके से और शिष्टता के साथ कैसे उपयोग किया जाए। इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया से लेकर इलेट्रानिक मीडिया को आए दिन कठघरे में खड़ा किया जाता है। कौन सही है और कौन गलत, यह कहना तो मुश्किल है। आने वाले समय में भी सही-गलत के फैसले पर निर्णय लेना कठि नहीं रहेगा और बस बहस ही चलती रहेगी।

फिलहाल संवेदनाओं का चीरहरण हो रहा है। महाभारत काल में भी द्रोपदी का चीरहरण हुआ और भीष्म अपने प्रण के कारण, पांडव अपने धर्म के कारण मौन रहे। लगता है जीवन एक महाभारत ही है, जहां अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध चलता ही रहता है। आज के हालात को बयां करती हरिओम पंवार की ये पंक्तियाँ...

इच्छाओं के कुरुक्षेत्र में, हर एक भीष्म का प्रण घायल है।

हर सीने में लाक्षागृह है, अधर-अधर पर कोलाहल है।

संघर्षों की समरभूमि में, हमसे पूछो हम कैसे हैं।

कालचक्र के चक्रव्यूह में, हम भी अभिमन्यू जैसे हैं।

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