सिंधु जल संधि
सिंधु जल संधि Syed Dabeer Hussain - RE
राज ख़ास

क्या है सिंधु जल संधि? जिसे लेकर हमेशा छिड़ा रहता है भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद

Vishwabandhu Pandey

राज एक्सप्रेस। सिंधु जल संधि को दुनिया की सबसे उदार संधि के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी जल संधि है जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। लेकिन हाल ही सिंधु जल संधि भारत सरकार की तरफ से पाकिस्तान को एक नोटिस जारी करने के चलते चर्चा में आ गई है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब सिंधु जल संधि का नाम सुर्ख़ियों में आया हो। लेकिन इस बार दिए गए नोटिस पर भारत सरकार का कहना है कि पाक की कार्रवाइयों से इस संधि के प्रावधानों पर प्रभाव पड़ा है, जिस कारण भारत में नोटिस जारी किया है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर यह सिंधु जल संधि क्या है? यह संधि कितनी अहम है और दोनों देशों की इस संधि में क्या भूमिका है?

क्या है सिंधु जल संधि?

भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 में एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था। जिसे कराची में किया गया था। इस संधि पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के हस्ताक्षर हुए थे। जबकि इस संधि में मध्यस्थ की भूमिका विश्व बैंक ने निभाई थी।

क्यों अहम है यह संधि?

इस संधि से पाकिस्तान को बड़ा फायदा है। यदि किन्हीं कारणों से यह संधि टूट जाती है तो पाकिस्तान की सरजमीं के एक बड़े भूभाग पर रेगिस्तान बनने का खतरा मंडराने लग जाएगा। इसके साथ ही पाकिस्तान पर बड़ा कूटनीतिक दबाव भी बन सकता है। इसके अलावा करोड़ों लोग ऐसे होंगे जिन्हें पीने तक का पानी नहीं मिल पाएगा और साथ में अरबों रुपए की विद्युत परियोजनाएं भी ठप हो सकती हैं।

दोनों देशों की इस संधि में क्या भूमिका है?

इस संधि के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान के बीच 6 नदियों का बंटवारा किया गया है। जिनके नाम व्यास, रावी, सतलज, झेलम, चिनाब और सिंधु हैं। इस संधि में भारत सरकार के पास व्यास, रावी और सतलज नदी के कर नियंत्रण का अधिकार मिला है। जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम पर पाकिस्तान सरकार का नियंत्रण है। इन नदियों से दोनों देशों में विद्युत निर्माण, सिंचाई जैसे कई कार्य किए जाते हैं। इस संधि के अनुसार हर साल भारत की तरफ से पाकिस्तान को कुल जल का 80.52 फीसदी यानि 167.2 अरब घन मीटर पानी दिया जाता है। जिसके चलते इसे दुनिया की सबसे बड़ी उदार संधि भी कहा जाता है।

क्या है विवाद का कारण?

दोनों देशों के बीच भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। दरअसल साल 2007 के दौरान सिंधु की सहायक नदियों पर 330 मेगावाट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना का निर्माण शुरू हुआ था। जिसके बाद साल 2013 में चिनाब पर बनने वाले रातले पनबिजली संयंत्र की आधारशिला रखी गई। लेकिन पड़ोसी देश के द्वारा दोनों ही परियोजनाओं का विरोध करते हुए कहा गया कि भारत ने इस संधि का उल्लंघन किया है। साल 2015 में पाकिस्तान ने इस मुद्दे को विश्व बैंक में भी उठाया। हालांकि जल्द ही इस अनुरोध को भी वापस ले लिया गया। जिसके बाद साल 2017 के दौरान विश्व बैंक ने भारत को झेलम और चिनाब की सहायक नदियों पर निर्माण की अनुमति दी। जिसके उपरांत पीएम मोदी ने मई 2018 में किशनगंगा परियोजना का उद्घाटन किया।

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