मजदूरों का पलायन
मजदूरों का पलायन  Social Media
राज ख़ास

मजदूरों का पलायन आखिर किसलिए

Author : राज एक्सप्रेस

राज एक्सप्रेस। जो पैसे उनके पास थे, वे खत्म हो गए हैं। यही वजह है कि पलायन की रफ़्तार तेज होती जा रही है।लॉकडाउन के बाद जगह-जगह फंसे लोगों को घर पहुंचाने को लेकर सरकारों के बीच जद्दोजहद बनी है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि जो राज्य विभिन्न शहरों में फंस गए अपने लोगों को निकालना चाहते हैं, वे निकाल सकते हैं। इस फैसले से निस्संदेह खासकर मजदूरों ने राहत की सांस ली होगी। इससे विद्यार्थियों, पर्यटकों आदि की मुश्किलें भी आसान होती नजर आने लगी हैं। लाखों की संख्या में ऐसे लोग औद्योगिक इलाकों, महानगरों, शिक्षण संस्थानों में फंस गए हैं, जिनके पास न तो काम है और न खाने-पीने के लिए पैसा। वे किसी भी तरह अपने घर लौट जाना चाहते हैं। मगर कोरोना फैलने के डर से सरकारों ने उन्हें जाने से रोक रखा था। जो लोग पैदल ही अपने घरों की तरफ कूच कर गए थे, उन्हें पकड़ कर अलग-थलग रख दिया गया था।

हालांकि सरकारों ने जगह-जगह उनके भोजन वगैरह का इंतजाम किया, पर उससे उनकी मुश्किलें कम नहीं हुईं। पर्याप्त भोजन न मिल पाने, रहने का उचित प्रबंध न होने आदि की शिकायतें आम हैं। जो लोग अपने घरों में रह रहे हैं, उनके सामने भी गुजर-बसर की समस्या विकट है। यही वजह है कि विभिन्न जगहों पर ऐसे लोगों का गुस्सा भी फूटता देखा गया। हालांकि लॉकडाउन की घोषणा के साथ सरकारों ने यह भी अपील की थी कि मकान मालिक लोगों पर किराया देने का दबाव न डालें, जहां तक हो सके उनकी मदद करें। नियोक्ताओं से अपील की गई कि वे किसी को नौकरी से न हटाएं और न उनका वेतन काटें, पर जब उद्योग-धंधों के सामने खुद अस्तित्व का संकट पैदा हो गया हो, तो वे इस अपील पर कहां तक अमल करेंगे। लोगों को भी अब भरोसा नहीं रहा कि उनकी नौकरी और रोजगार का जरिया बचेगा या नहीं। इसलिए भी उनमें भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। जो पैसे उनके पास थे, वे खत्म हो गए हैं। भविष्य निधि वगैरह से भी पैसे निकलवा कर खर्च कर चुके। जो लोग रेहड़ी-पटरी का कारोबार, घरों में झाड़ू-पोंछा, रंगाई-पुताई, रिक्शा वगैरह चला कर गुजारा करते थे, उनके सामने संकट ज्यादा बढ़ा है। इसलिए वे किसी तरह घर लौटना चाहते हैं।

कुछ राज्य सरकारों ने अपने नागरिकों को विभिन्न शहरों से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, गृह मंत्रालय के ताजा फैसले के बाद बाकी सरकारें भी इस दिशा में कदम बढ़ाएंगी। यह समस्या सिर्फ प्रवासी मजदूरों तक सीमित नहीं है। बहुत सारे लोग पर्यटन या फिर इलाज वगैरह के लिए दूसरे शहरों में गए थे और अचानक बंदी होने और रेल-बसें रोक देने से वे वहीं फंस गए। अब उनके पास न तो पैसे हैं और न खाने-पीने का समुचित प्रबंध। वे भी अपने घर जा सकेंगे। बहुत सारे विद्यार्थी विभिन्न शहरों में रुके हुए हैं। वे अपने घर-परिवार में पहुंच कर निश्चिंतता की सांस लेना चाहते हैं। बहुत सारे विद्यार्थियों को उनके घर भेजा जा चुका है, मगर अब भी बहुत सारे विद्यार्थी फंसे हुए हैं। इस फैसले से उन्हें राहत मिलेगी।

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