अफगान त्रासदी
अफगान त्रासदी Syed Dabeer Hussain - RE
राज ख़ास

क्या बर्बरता और त्रासदी अफगान का भाग्य बन गयी है?

Author : Vinita gupta

21 सितम्बर को दुनियाभर ने वैश्विक शांति दिवस मनाया। इस मौके पर हम बात करते हैं, अफगान में मचे कोहराम की...

त्रासदियों से जूझता अफ़ग़ान :

पिछले महीने अफगानिस्तान में त्रासदियों का सिलसिला शुरू हुआ, पहले राजनैतिक त्रासदी हुई और अफगानिस्तान (Afghanistan) में 20 साल बाद फिर से तालिबान (Taliban) का कब्जा हो गया। रविवार 15 अगस्त 2021 को जब पूरा भारत देश आजादी का जश्न मना रहा था, अफगान तानाशाही राजनीती की आग में जल रहा था।

राष्ट्रपति अशरफ गनी का पलायन :

काबुल (Kabul) पर तालिबान के कब्जे के बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी अफगान से पलायन कर गए और अफगान को तालिबान ने हथिया लिया, हालाँकि अशरफ गनी ने इस पलायन के लिए एक न हजम होने वाला बयान दिया कि, देश को खून खराबे और कत्लेआम से बचाने के लिए ये कदम उठाया। जबकि वे अपने साथ बड़ी धनराशि और अन्य कीमती सामान ले गए, लेकिन पूरे अफगान को ऊपरवाले और तालिबान लड़ाकों के भरोसे छोड़ गए।

अफ़ग़ान के दिन पर दिन गिरते हालात :

इधर अफगान में दिन पर दिन हालात बद से बदतर होते चले गए। लोग डरे हुए और शंकित रहने लगे, जनता को भी पलायन के सिवा कोई रास्ता नहीं दिखा। तालिबान ने लोगों को देश से बाहर जाने का और अमेरिका सेना को तयशुदा समय दिया, जिससे वो देश की जनता को बाहर ले जा सके और इसी के साथ तालिबान में मानवीय त्रासदी का दौर शुरू हुआ। माताओं ने अपने नौनिहालों को अमेरिकी सेना को सौंपना शुरू कर दिया कि, शायद वो इस त्रासदी से बच कर जीवित रह पाएं।

अमन की बात खोखला तालिबानी ढकोसला :

अमन का ढकोसला करने वाले तालिबान ने यूँ तो कहा कि, देश में महिलाएं सुरक्षित हैं, लेकिन इसके बाद तालिबान का पाशविक चेहरा सामने आया। तालिबानी लड़ाकों ने 4 सितम्बर 2021 की रात महिला पुलिसकर्मी बानू नेगर की बर्बरता से हत्या कर दी, वह महिला सैन्य अधिकारी थी और 8 महीने की गर्भवती थी। हत्यारों ने न सिर्फ महिला की हत्या की बल्कि बेरहमी से उसका चेहरा भी बिगाड़ा। तालिबान की तानाशाही यही नहीं रुकी, कुछ समय बाद उसका नया फरमान आया और महिला न्यूज़ एंकर्स और विदेशी टीवी शोज को बैन कर दिया गया। तालिबान ने नयी सरकार का भी गठन किया और यह बयान दिया कि महिलाओं के हितों की रक्षा होगी पर महिला मंत्रियों को भी बैन कर दिया। तालिबान की सच्चाई दिखाने पर आततायी तालिबान लड़ाकों ने दो अमेरिकी पत्रकारों को बेरहमी से पीटा।

तालिबान का फैलता अत्याचार :

तालिबान लड़ाकों का ये अत्याचार प्रान्त दर प्रान्त फैला। इधर नॉर्वे (Norway) के राजदूत सिगवाल्ड हेग ने जानकारी दी कि अफगानिस्तान (Afghanistan) की राजधानी काबुल (Kabul) के नॉर्वे दूतावास (Norway Embassy) में 56 तालिबानी घुस गए। इस छोटे से दूतावास पर तालिबानियों ने कब्जा कर लिया और वहां रखीं वाइन की बोतलें और पुस्तकों को नष्ट कर दिया। नॉर्वे (Norway) के सबसे बड़े समाचार पत्र 'अफतनपोस्टन' (Aftanposten) की बात मानें तो तालिबानी लड़ाके बच्चों की किताबों को फाड़ने का प्रयास कर रहे थे। तालिबानियों की इस करतूत की इस अख़बार ने एक तस्वीर भी साझा की है।

अफ़ग़ान में नौकरीपेशा महिलाओं पर बैन :

अब हालात यह हैं कि, अफगानिस्तान के काबुल में नए तालिबानी मेयर हमदुल्लाह नोमानी ने शहर की कामकाजी महिलाओं को कुछ समय तक घर पर ही रहने का फरमान जारी कर दिया है, ताकि उनके स्थान पर पुरूषों को नौकरी दी जा सके। मेयर ने एक वीडियो में कहा, ''हमने उन महिलाओं को काम करने की अनुमति दी है जिनके काम पर पुरुषों को नहीं लगाया जा सकता है और जो काम पुरुषों का नहीं है। उदाहरण के तौर पर हम उन महिलाओं के बारे में बात कर रहे हैं जो शहर के महिला शौचालयों में काम करती हैं, जहां पुरुषों को जाने की अनुमति नहीं है।"

अफगान के दयनीय हालात :

बहरहाल अफगानिस्तान के मौजूदा हालात दयनीय हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद यहां की जनता भुखमरी की कगार पर पहुंच गयी है। पैसा नहीं होने के कारण दो वक्त का खाना जुटाने के लिए लोग काबुल की सड़कों पर अपने घरों का कीमती सामान बर्तन आदि बेच रहे हैं। उच्च शिक्षित उच्च वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों का भी यही हाल है।

भुखमरी की कगार पर अफ़ग़ान नागरिक :

अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों का पूववर्ती सरकार से कई महीनों तक भारी संघर्ष हुआ, जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों को कई महीनों से वेतन नहीं मिला। टोलो न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक कई कर्मचारी गुजर करने के लिए अपनी कार को टैक्सी के रूप में चला रहे हैं। काबुल निवासियों ने अपने बयानों में अपना दर्द जाहिर किया है। एक शिक्षक मोहम्मद नासिर ने कहा कि नौ सदस्यीय परिवार में वह एकमात्र कमाने वाले हैं। उन्होंने बताया कि, ''मैं इससे पहले 10,000 अफ्स खर्च करता था, लेकिन अब मुझे कोई वेतन नहीं मिल रहा और महंगाई आसमान छू रही है।" एक सैन्य संगठन में 18 साल काम करने वाले अकरमुद्दीन को पिछले सात महीने से वेतन नहीं मिला है। उन्होंने टोलो न्यूज से कहा, वे मेरा वेतन नहीं दे रहे हैं। घर के किराए और घरखर्चे के लिए मजबूरन टैक्सी चलानी पड़ रही है या घर का साजों-सामान बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है।

क्या होगा आगे...?

अगर अफगान के हाल नहीं सुधरे तो जल्द ही देश को मानव संकट का सामना करना पड़ सकता है।

अफ़सोस इस दिशा में अफगान सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम उठता दिखाई नहीं दे रहा। ..और अब सवाल ये आता है कि, क्या ये त्रासदी सचमुच इस देश का भाग्य बन गयी है! अफगान के हालात ये सवाल भी छोड़ते है कि अब आगे क्या...?

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