श्रीलंका के नए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे का भी शुरू हुआ विरोध
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे का भी शुरू हुआ विरोध Social Media
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श्रीलंका के नए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे का भी शुरू हुआ विरोध, जानिए क्यों लग रहे भारत पर आरोप?

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। पिछले कुछ समय से जारी राजनीतिक उठापटक के बीच रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) आर्थिक तौर पर दिवालिया हो चुके श्रीलंका (Sri Lanka) के नए राष्ट्रपति बन गए हैं। 225 सदस्यों वाली श्रीलंकाई संसद ने रानिल विक्रमसिंघे को नया राष्ट्रपति चुना है। विक्रमसिंघे को कुल 134 वोट मिले हैं, जबकि उनके विरोधी दुलस अल्हाप्परूमा को 82 वोट हासिल हुए। इनके अलावा अन्य उम्मीदवार अनुरा कुमारा दिसानायके को सिर्फ 3 वोट मिले। अब विक्रमसिंघे पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का बचा हुआ कार्यकाल पूरा करेंगे। हालांकि दूसरी तरफ विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद अब उनका भी विरोध शुरू हो गया है। साथ ही इस मामले में अब भारत (India) को भी घसीटा जा रहा है। तो चलिए हम जानते हैं कि रानिल विक्रमसिंघे कौन है? और जनता उनका भी विरोध क्यों कर रही है?

6 बार रहे प्रधानमंत्री :

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी के प्रमुख रहे हैं। उन्होंने लॉ की पढ़ाई की है। विक्रमसिंघे ने 70 के दशक में राजनीति में कदम रखा था जबकि 1977 में वह पहली बार सांसद बने थे। साल 1993 में विक्रमसिंघे पहली बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने थे। उसके बाद से वह अब तक छह बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बन चुके हैं।

क्यों हो रहा है उनका विरोध?

दरअसल इस समय श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके परिवार के खिलाफ भारी गुस्सा है। जनता के प्रदर्शन के चलते ही राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं विक्रमसिंघे को राजपक्षे का समर्थन हासिल है। चुनाव में विक्रमसिंघे को राजपक्षे की पार्टी के सांसदों का समर्थन मिला है। यहीं कारण है कि जनता उनका भी विरोध कर रही है।

भारत पर भी आरोप?

रानिल विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रदर्शनकारियों का एक दल इस मामले में भारत को भी बीच में घसीट रहा है। दरअसल विक्रमसिंघे को भारत समर्थक नेता माना जाता है। ऐसे में प्रदर्शनकारियों का कहना है कि विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति बनाने के पीछे भारत का हाथ है। हालांकि श्रीलंका में स्थित भारतीय उच्चायोग ने बयान जारी कर कहा है कि, ‘श्रीलंका की राजनीति में भारत के हस्तक्षेप की बात किसी की कल्पना की उपज है। भारत कभी भी किसी भी अन्य देश के आंतरिक मामलों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करता है।’

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