रूसी तेल पर कीमत फिक्स करने पर अड़े पश्चिमी देश
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रूसी तेल पर कीमत फिक्स करने पर अड़े पश्चिमी देश, राष्ट्रपति पुतिन बोले इसका नतीजा बुरा होगा

Kavita Singh Rathore

राज एक्सप्रेस। अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश रूस के तेल की कीमत पर प्राइस फिक्स करने की तैयारी कर रहे हैं। इसे लेकर ब्लूमबर्ग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक तेल की कीमत 65 /70 डॉलर प्रति बैरल रखी जा सकती है। इस माहौल के बीच रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने प्राइस की कीमत को फिक्स करने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, उन्होंने कहा कि, 'G-20 और यूरोपीय यूनियन के प्राइस कैप का ऊर्जा बाजार पर खराब असर देखने को मिलेगा।'

अमेरिकी वित्त मंत्रालय का कहना :

जानकारी के लिए बता दें कि मंगलवार को अमेरिकी वित्त मंत्रालय द्वारा जानकारी सामने आई थी कि, 'अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश रूसी तेल पर कीमत फिक्स करने पर काम कर रहे हैं। यह भी बताया गया था कि प्राइस के फिक्स होने के बाद इसे कुछ दिन में लागू भी कर दिया जाएगा।'

रूस के राष्ट्रपति पुतिन का बयान :

इस तरह की खबरों के बीच राष्ट्रपति पुतिन को यह बात बिल्कुल रास नहीं आ रही है। इसे लेकर उन्होंने कहा कि इससे ग्लोबल तौर पर बाजारों पर बुरा असर पड़ सकता है।

जानें क्या है प्राइस कैप :

अगर आप प्राइस कैप के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि यूक्रेन से युद्ध के चलते रूस काफी आर्थिक प्रतिबंध झेल रहा है। यह प्रतिबंध आम तौर पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए हैं। तेल पर कीमत फिक्स करना भी एक नया प्रतिबंध है। इस प्रतिबंध के तहत रूसी तेल की कीमत का निर्धारण तय होगा। जिसे यूरोपीय यूनियन तय करेगी। जबकि फिलहाल रूस अपनी बनाई हुई कीमतों पर तेल बेच रहा है।

क्या है कारण ?

तेल पर प्राइस कैप लाने का सबसे बड़ा मकसद यही है कि रूस की आय के जरिए को कम किया जाए जिससे यूक्रेन से चल रहे युद्ध में उपयोग की जा रही राशि में कमी देखने को मिले। सूत्रों के मुताबिक अगर तेल पर कीमत निर्धारित होती है तो इसे $65 से $70 प्रति बैरल के बीच रखा जा सकता है। यानी कि रूस ज्यादा कीमत पर तेल नहीं बेच पाएगा। आपको यह भी बता दें कि कीमत लागू होने के बाद अगर कंपनियां इस कीमत के अनुसार तेल नहीं लेती, तो सभी कंपनियों को शिपिंग, बीमा और वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी।

आखिर में आपको बताते चलें कि इस मुद्दे को लेकर भारतीय केंद्रीय पेट्रोल एवं नेचुरल गैस मंत्री हरदीप सिंह का नजरिया थोड़ा अलग है। उनका कहना है कि इस पर भारत का कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि अगर कीमत 60 से 70 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा होती है तो जरूर कुछ फर्क पड़ सकता है।

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