हिंदू धर्म में क्या होते हैं दिन के अलग-अलग पहर?

Shreya N

रात्री के पहले पहर को प्रदोष काल कहते हैं। यह अमूमन शाम के 6 से रात के 9 बजे तक का समय होता है। यह समय भगवान की पूजा-पाठ के लिए सर्वोत्तम होता है। इस समय सोना नहीं चाहिए। 

पहला पहर | Zeeshan Mohd - RE

रात का दूसरा पहर 9 बजे से मध्य रात्री 12 बजे तक होता है। इसे निशीथ काल कहा जाता है। इस समय फुल पत्तों को छूना या तोड़ना नहीं चाहिए।

दूसरा पहर | Zeeshan Mohd - RE

रात का तीसरा पहर मध्य रात्री से शुरू होकर भोर के प्रारंभ होने से पहले तक चलता है। अमूमन यह समय रात के 12 बजे से भोर के 3 बजे तक का होता है। इस समय में तांत्रिक क्रियाएं की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पहर में खाना और नहाना वर्जित होता है।

तीसरा पहर | Zeeshan Mohd - RE

रात का आखिरी पहर भोर 3 बजे से सुबह 6 बजे तक चलता है। यह रात्री का आखिरी पहर भी होता है। इसे उषा कहते हैं। इस पहर में नींद से उठकर, स्नान व पूजा करना बहुत लाभदायक माना जाता है।

चौथा पहर | Zeeshan Mohd - RE

दिन का पहला पहर सुबह सूर्योदय के समय शुरु होता है। यह अमूमन सुबह 6 से 9 बजे तक का समय होता है। इसे पूर्वान्ह कहते हैं। इस समय सोना नहीं चाहिए और घर में बिलकुल गंदगी नहीं रखनी चाहिए, इसलिए हम सुबह उठकर नहाते और सफाई करते हैं।

पांचवा पहर | Zeeshan Mohd - RE

सुबह 9 बजे से दोपहर 12 तक दिन का दूसरा पहर होता है। इसे मध्यान्ह कहते है। यह उस समय समाप्त होता है, जब सूर्य बिलकुल सर पर चढ़ जाता है। इस पहर में शुभ कार्य नहीं होते हैं।

छठा पहर | Zeeshan Mohd - RE

दिन के सातवें पहर को अपराह्न कहते हैं। यह पहर दोपहर 12 से दोपहर बाद 3 बजे तक चलता है। यह समय भोजन करने के लिए सबसे उत्तम होता है। वहीं इस समय सोना वर्जित होता है।

सातवां पहर | Zeeshan Mohd - RE

दिन का आखिरी पहर दोपहर बाद से शुरू होता है और सूर्यास्त तक चलता है। अमूमन यह समय 3 बजे से शाम 6 बजे तक रहता है। यह समय विश्राम करने का माना जाता है। इसे सायंकाल कहते हैं।

आठवां पहर | Zeeshan Mohd - RE

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