Deeksha Nandini
छत्तीसगढ़ में नई प्रजातियों के कृषिकरण का उद्देश्य पारंपरिक खेती के अतिरिक्त वाणिज्यिक कृषिकरण को बढ़ावा देना है।
प्रदेश में धान की फसल की कटाई के बाद सात अलग-अलग किस्मों को 50-50 एकड़ में रोपने की तैयारी है। यह औषधियां बीमारियों के लिए भी काफी असरकारक मानी जाती है।
औषधीय पौधे सैलेशिया, नन्नारी, मिल्क थिसल, पुदीना, यलंग-यलंग, सिट्रोडोरा और गुड़मार की खेती के लिए प्रदेश के विभिन्न जिलों के मौसम पर शोध किया जा चुका है।
काष्ठीय लता वाली झाड़ी है। इसके जड़ का उपयोग मोटापा कम करने और मुख्य रूप से डायबिटीज रोग को दूर करने के लिए किया जाता है। बाजार में जड़ की कीमत 400 रुपये प्रति किलो कीमत।
यह फसल अक्टूबर माह में लगाया जाता है। चार से पांच माह के भीतर तैयार हो जाता है। प्रति एकड़ से लगभग 30 से 50 किग्रा तेल प्राप्त किया जा सकता है। किसान प्रति एकड़ 50 हजार रुपये तक की आय प्राप्त कर सकते हैं।
सिट्रोडोरा एक वृक्ष प्रजाति है। चार से पांच वर्ष में जमीन से पांच फीट छोड़ कर तने को काट देने से आई पत्तियों का संग्रहण किया जाता है। इसका तेल एंटीसेप्टिक है।
यह 20 से 25 वर्ष तक फसल देता है। गुड़मार को शुगर और लीवर टानिक भी कहा जाता है। इसके पत्तों से बनी दवाएं काफी कारगर होती हैं।
यह खुशबूदार पौधा है। इसका उपयोग इत्र बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इसके तेल का उपयोग उच्च रक्त चाप दूर करने के लिए किया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है।
यह एंटी आक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसका उपयोग पेय के रूप में होता है। जड़ की कीमत प्रति किलो 350 रुपये हैं। पौधे 18 से 30 माह में तैयार हो जाता है। डेढ़ वर्ष में प्रति एकड़ छह लाख रुपये की आमदनी।
यह बहु शाकीय पौधा है। इसके बीज से बने उत्पाद का उपयोग लीवर की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। किसान प्रति एकड़ 50 से 60 हजार रुपये तक मुनाफा कमा सकते हैं।
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