Shreya N
1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध (Bangladesh Liberation War) के समय आर. एन काओ रॉ के चीफ थे। इनके नेतृत्व में रॉ के जासूसों ने पर्दे के पीछे रहकर जंग को अंजाम दिया। रॉ ने बांग्लादेश के मुक्ति बाहिनी संगठन को भी युद्ध के लिए तैयार किया था। इस युद्ध में भारत की जीत की एक बड़ी वजह इंटेलिजेंस की सफलता थी।
1971 की जंग में सैम मानेकशॉ भारतीय थल सेना के चीफ थे। पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच जंग के हालात तो, अप्रैल में ही बन गए थे, लेकिन मानेकशॉ का मानना था, कि मानसून युद्ध का सही समय नहीं है। इसलिए युद्ध दिसंबर में शुरू हुआ। फील्ड मार्शल ने युद्ध के शुरुआत से पहले ही जीत की गारंटी दे दी थी।
लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने अपने पराक्रम से ना केवल पूर्वी मोर्चे में दुश्मन को रोका, बल्कि अपने कई सिपाहियों की जान भी बचाई। उन्होंने 3 दिसंबर को भारी शेलिंग करने वाले दुश्मन के बंकर पर हमला बोल कर दुश्मनों को मार गिराया था। इस दौरान उन्होंने एक लाइट मशीन गन का मुंह बंद कर दिया था। एक आग उगलती मशीन गन पर भी उन्होंने ग्रेनेड से हमला कर दिया था। इस पराक्रम के लिए उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया था।
फ्लाइंग ऑफिसर सेखों के जिम्मे कश्मीर घाटी की हवाई सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। 14 दिसंबर को पाकिस्तानी एयर फोर्स ने श्रीनगर एयरबेस पर हमला किया। इस दौरान, सेखों ने दुश्मन के दो एयरक्राफ्ट को बेकाम कर दिया। बाद में चार दुश्मन विमानों ने उन्हें घेर लिया, पर सेखों ने उन्हें उलझाए रखा। अंत में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, पर कश्मीर एयरबेस सुरक्षित रहा। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।
पूना हॉर्स के अरुण खेत्रपाल 1971 के युद्ध में केवल 21 साल के थे। वह अपने टैंक से दुश्मन पर भारी वार कर रहे थे। उस युद्ध में बर्बाद हुए 10 पाकिस्तानी टैंकों में से 4 खेत्रपाल ने किये थे। बुरी तरह घायल होने के बाद भी वे पीछे नहीं हटे। इस दौरान एक टैंक के हमले से वे नहीं बच पाए और शहीद हो गए। इस शौर्य के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कर्नल सिंह को युद्ध के दौरान बसंतसर में एक पुल बनाने के लिए कहा गया था। यहां पाकिस्तान ने हमला कर दिया। उनकी पोस्ट के पास एक शेल आकर गिरा, जिसमें कई लोग घायल हो गए। फौरन वहां पहुंचकर, सिंह ने मशीन गन चलानी शुरू कर दी। इस दौरान कर्नल बुरी तरह घायल हुए, पर संघर्ष विराम तक पीछे नहीं हटे। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
4 दिसंबर की रात को ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने अपनी 100 फौजियों की टुकड़ी के साथ, 2000 से ज्यादा पाकिस्तानी सिपाहियों से राजस्थान की लोंगेवाला बोर्डर पोस्ट की सुरक्षा की थी। इस पराक्रम के लिए उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया था।
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