gurjeet kaur
राजराजा चोल के बेटे राजेंद्र, चोल साम्राज्य के उत्तराधिकारी थे। उनके शासनकाल को चोलों का स्वर्ण युग कहा जाता है। उनके काल में चोल साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। अगर राजराजा चोल के पिता अच्छे शासक थे तो राजेंद्र चोल को बेहतरीन शासक कहा जाता है।
चोल साम्राज्य की नींव विजयालय द्वारा रखी गई थी। उन्होंने 8 वीं शताब्दी में तंजौर पर अधिकार कर लिया था। उन्होंने पल्लवों को हराया और चोलों के उदय का नेतृत्व किया। माना जाता है कि, चोल साम्राज्य सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले शासक थे।
राजेंद्र चोल प्रथम ने सुदूर क्षेत्रों में अपने राज्य का विस्तार किया। वे दक्षिण भारत के पहले शासक थे जिन्होंने गंगा के मैदान तक अपने राज्य का विस्तार किया। इसके बाद उन्होंने न केवल गंगईकोंड की उपाधि धारण की बल्कि गंगईकोंड चोलपुरम नामक नगर की भी स्थापना की।
राजेंद्र प्रथम एक कुशल शासक थे। उन्होंने एक मजबूत और अद्वितीय नौसेना का गठन किया जो अपने समय की सबसे विकसित नौसेना थी। उनके पास 800 जहाज थे जिनमें हाथी, घोड़े और सैकड़ों सैनिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने की क्षमता थी। इस नौसैनिक शक्ति के चलते वे बंगाल की खाड़ी में दबदबा बनाने में सफल हुए। उनके समय में बंगाल की खाड़ी को चालों की झील कहा जाता था।
मजबूत नौसैनिक शक्ति के चलते राजेंद चोल प्रथम ने श्रीविजया साम्राज्य पर विजय हासिल की। दरअसल, श्रीविजया साम्राज्य के शासक राजा संग्राम चोलो के व्यापारिक जहाजों को निशाना बना रहे थे। इसके जवाब में राजेंद्र प्रथम ने अपनी नौसेना लेकर हमला कर दिया और दक्षिण एशिया तक राज्य का विस्तार कर दिया।
चालों के साम्राज्य में शासन का केंद्र बिंदु राजा ही होता था। चोल साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था जिसे मंडलम कहा जाता था। इन मंडलम को आगे नाडु (जिला) में विभाजित किया गया था।
चोल शासक वास्तुकला के संरक्षक और प्रवर्तक थे। अलग - अलग समय पर शासन करने वाले राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण कराया। चोलों द्वारा निर्मित बृहदेश्वर मंदिर, राजराजेश्वर मंदिर, गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर वास्तुकला के अद्वितीय उदाहरण हैं।
चालों ने न केवल कला और साहित्य को बढ़ावा दिया बल्कि व्यापार का भी खूब विकास हुआ। चोल साम्राज्य का चीन और अरब देशों से व्यापारिक संबंध थे। भारत से मसाले और अन्य सामान की इन देशों में खूब मांग थी।
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